Chaitra Navratri 2024: हरियाणा-हिमाचल सीमा पर है माता का ये मंदिर, जानें इनकी अद्भुत कथा

Chaitra Navratri 2024
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हरियाणा-हिमाचल सीमा पर है माता का ये मंदिर।
Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि शुरू हो चुका हैं। इस त्यौहार पर लोग माता के मंदिरों में जा कर दर्शन करना पसंद करते हैं।

Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि शुरू हो चुका हैं, लोग इस त्यौहार होली के बाद नए साल के आने की खुशी में मनाते हैं। इस त्यौहार पर लोग माता के मंदिरों में जा कर दर्शन करना पसंद करते हैं। ऐसा एक माता का मंदिर हरियाणा-हिमाचल के सीमा पर स्थित है। सिरमौर जिले में 430 मीटर ऊंचे पहाड़ियों पर स्थित तीन देवियों का धाम है।

कहा जाता है कि लगभग 450 साल प्राचीन है और यहां पर मां त्रि-भवानी, बाला सुंदरी और ललिता, देवियां विराजमान हैं। त्रिलोकपुर से विख्यात इस गांव में नवरात्रि पर चौदह दिन का मेला लगता है। जहां पर लोगों की काफी संख्या में भीड़ उमड़ती है।

दर्शन के लिए स्पेशल बसें

हर साल नवरात्रि में हरियाणा और हिमाचल ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत से हजारों श्रद्धालु दर्शन करने क् लिए यहां आते हैं। जिले से भी हर रोज हजारों श्रद्धालु त्रिलोकपुर मेले में शामिल होते हैं। यहां जाने के लिए हरियाणा रोडवेज की ओर माता के भक्तों के लिए स्पेशल बसें भी चलाई गई है।

वहीं, प्राइवेट बसों, मैक्सी कैब और टूर एंड ट्रेवल कंपनियों की गाड़ियों से भी हजारों भक्तों को त्रिलोकपुर लेकर जाती है। साथ ही बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए एंबुलेंस की सुविधा, डिस्पेंसरी विश्राम गृह, फस्ट एड और सूचना केंद्र, पार्किंग जैसी सुविधा दी जाती है। इसके अलावा यात्रियों के रहने के लिए यात्री निवास और धर्मशाला की भी व्यवस्था होती है।

क्या है इस मंदिर की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि साल 1573 में एक दुकानदार रामदास उत्तर प्रदेश के देवबंद से नमक का बैग लाया था। दुकानदार दिनभर बैग से नमक बेचा करता था। लेकिन फिर भी उसका नमक कम नहीं होता था। यह अद्भुत चमत्कार देख वह अचंभे में रह गया। एक रात रामदास को स्वप्न में मां भगवती ने अपने बाल रूप में आई और कहा कि मैं पिंडी के रूप में तुम्हारी नमक की बोरी में आ गई और अब मेरा निवास तुम्हारे आंगन में स्थित पीपल के पेड़ की जड़ों में है।

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बाला सुंदरी माता

लोगों के कल्याण के लिए तुम यहां पर एक मंदिर का स्थापना करो। सुबह होने पर उस दुकानदार ने देखा कि बिजली की चमक और बादलों की गरज से पीपल का पेड़ जड़ से फट गया और माता साक्षात रूप में प्रकट हो गई हैं। इस घटना के बाद रामदास ने लोगों को रात के स्वप्न बारे बताया और तभी से पिंडी को मां बाला सुंदरी के स्वरूप में पूजी जाने लगी।

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कहा जाता है कि उस समय सिरमौर राजधानी के राजा महाराज प्रदीप प्रकाश थे। उन्होंने जयपुर राजस्थान से कारीगरों को बुलाकर तीन साल में इस मंदिर का निर्माण कराया। जो उत्तर-कारीगरी का एक अद्भुत उदाहरण है और यह वास्तुकला में भारत-फारसी शैलियों का मिश्रण है।

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