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‘आइये देखें छत्तीसगढ़’ में आज हम आपको जानकारी दे रहे हैं…छत्तीसगढ़ के एक और बेहतरीन पर्यटन स्थल की। गंगवंशीय राजाओं की रियासत के शाही सफर का गवाह है कांकेर। साथ ही बस्तर के प्रवेश द्वार केशकाल की वादियों में बसे एक शानदार ईको पर्यटन केंद्र टाटामारी के बारे में भी आपको बताएंगे।

छत्तीसगढ़ में कांकेर एक महत्वपूर्ण गढ़ रहा है। कांकेर मध्य भारत के जंगलों मे बसा छत्तीसगढ़ का एक खूबसूरत शहर है, जो अपनी प्राकृतिक संपदा के लिए ज्यादा जाना जाता है। एक प्रकृति प्रेमी से लेकर साहसिक एडवेंचर के शौकीनों के लिए यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं। माना जाता है कि 8वीं शताब्दी में कांकेर में नागवंशी राजाओं का विशाल साम्राज्य हुआ करता था। बाद में 18वीं शताब्दी में गंगवंशीय शासकों ने यहां अपनी नींव रखी और राजा कान्हर देव ने यहां शासन शुरू किया। इनका शासनकाल यहां सबसे लंबा चला और आज भी इन्ही के वंशज कांकेर में निवासरत है। उदयप्रताप देव वर्तमान में कांकेर रियासत के राजा है।

कांकेर पैलेस

कांकेर का राज परिवार 18वी शताब्दी में शहर के बीच बनाए गए राज पैलेस में रहने आया था, तब से आज तक राज परिवार इस राज महल में ही निवासरत है। कांकेर में कांकेर पैलेस सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। महल के कई भाग अब हैरिटेज होटल के रूप में परिवर्तित कर दिए गए हैं। यह महल आज एक कांकेर की एक विरासत के रूप में है। 1937 में महल में कुछ पुनर्निर्माण करवाए गए। एक बगीचा भी बनवाया गया। कांकेर पैलेस को पहले राधानिवास बगीचा के नाम से भी जाना जाता था, जो आज कांकेर पैलेस के रूप में देश-विदेश मे ख्याति हासिल कर चुका है। 

दशहरे के दिन खुलता है जनता के लिए 

राज पैलेस आम जनता के लिए साल में सिर्फ एक दिन खुलता है, दशहरे के दिन राज पैलेस में लोगो की भीड़ जुटती है। यहां दशहरा देवी देवताओं की पूजा के साथ धूमधाम से मनाया जाता है । दशहरे के दिन पूर्व कांकेर रियासत में आसपास के करीब 40 गांव के आंगा देव यहां पहुचते है और राज परिवार के द्वारा उनकी पूजा अर्चना के बाद दशहरे की शुरुआत होती है। 

पर्यटकों के लिए विशेष व्यवस्था

राजमहल के दशहरा उत्सव में विदेशों से भी पर्यटक पहुचते हैं। पर्यटकों को पहले राज महल में ही ठहरना पड़ता था। लेकिन अब राज परिवार ने ही पैलेस के एक हिस्से को फार्म हाउस में तब्दील कर दिया है, ताकि बाहर से आने वाले पर्यटक यहां आसानी से रुक सके। मेहमानों की मेजबानी के लिए महल के दाहिने विंग में 5 कमरे, एनेक्सी में 2 और कॉटेज के बाहर 4 कमरे विकसित किए गए हैं। इनमें पर्यटकों के लिए शानदार लक्जरियस और आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। पर्यटकों के रुकने के लिए कांकेर पैलेस हैरिटेज एक बेहतरीन जगह है। 

डॉन फिल्म में इस्तेमाल हुई कार

राज पैलेस में शाही साजो सामान हर किसी को आकर्षित करने के लिए काफी है, साथ ही पुराने जमाने के वाहनों यानि विंटेज कारों के बेहतरीन कलेक्शन भी मौजूद है। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने डॉन फ़िल्म में जिस कार का उपयोग किया गया था उसे यहां के राज परिवार ने नीलामी में खरीदा है और ये आज भी यहां की शोभा बढ़ा रही है। राज महल में कई प्राचीन मूर्तियां भी हैं जो बेशकीमती है। कांकेर का राज पैलेस कई मायनों में पर्यटकों के लिए बेहतरीन पर्यटन स्थल, राज्य सरकार की कवायद और पर्यटन विभाग की कोशिशों के चलते ये पैलेस अब देश के साथ ही विदेशों से आने वाले पर्यटकों को भी आकर्षित कर रहा है। 

गढ़िया पहाड़

यहां एक और पर्यटन स्थल है जो गढ़िया पहाड़ के नाम से जाना जाता है। समुद्र तल से करीब 650 फ़ीट ऊंचे इस पहाड़ से कांकेरवासियो की गहरी आस्था जुड़ी है। गढ़िया पहाड़ कांकेर शहर की सबसे ऊंची चोटी है, यह क्षेत्र कभी कुण्डरा साम्राज्य के राजा धर्म देव की राजधानी हुआ करता था। यहां एक पुरानी गुफा भी मौजूद है, माना जाता है कि इसका इस्तेमाल राजपरिवार द्वारा आपातकालीन निकासी के लिए किया जाता था। गढ़िया पहाड़ के ऊपर एक तालाब है, इसकी भौगोलिक बनावट के चलते इसका पानी कभी सूखता नहीं है। स्थानीय बताते हैं कि रोजाना शाम ढलते ढलते इस तालाब का आधा पानी सोने और आधा चांदी के रंग में नजर आता है। गढ़िया पहाड़ में फांसी भांटा नाम का एक किला भी है। गढ़िया पहाड़ में हजारो साल पुराना शिवलिंग भी है। यहां कई प्राचीन मूर्तियां भी है, जिसमे माता शीतला का मंदिर भी शामिल हैं। 

केशकाल 

केशकाल घाटी को बस्तर का प्रवेश द्वार कहा जाता है। कोंडागांव जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर स्थित केसकाल की लगभग 5 किलोमीटर घाटी अपने 12 घुमावदार सड़क और प्राकृतिक सुंदरता के लिए हर पर्यटन प्रेमी की पहली पसंद है। केसकाल में एक पर्यटक को आकर्षित करने वाले सभी कारण हैं l दूर-दूर तक फैली हुई हरी-भरी घाटियाँ, कल-कल करते झरने, रहस्यमयी गुफाएं और केसकाल घाट को ये रोमांचक सफर, केसकाल को एक सम्पूर्ण पर्यटन ग्राम के रूप में स्थापित करती हैंl

टाटामारी ईको पर्यटन केंद्र 

केशकाल घाटी के ऊपरी पठार पर करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित टाटामारी, प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित शानदार पर्यटन स्थल है जो डेढ़ सौ एकड़ जमीन पर फैला हुआ है। टाटामारी पठार से घाटी की ऊंची चोटियों का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है। टाटामारी बीते कुछ सालों में ईको पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन चुका है। वर्तमान में टाटामारी ईको पर्यटन केंद्र में छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों से रोजाना 150 से 200 पर्यटक पहुंचते है। टाटामारी ईको पर्यटन केन्द्र के संरक्षण के लिए स्थानीय बेराजगार युवाओं को जोड़कर रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए गए हैं। हरियाली से आच्छादित पहाड़ों के मध्य स्थित टाटामारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अखंड ऋषि का तपोवन माना जाता है। यहां कई वर्षो से दीपावली लक्ष्मीपूजा के दिन श्रद्धालु विधि विधान से पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं| टाटामारी ईको पर्यटन केन्द्र के पठार क्षेत्र में वन्य प्राणियों के संरक्षण और विकास का काम भी किया जा रहा है ताकि भविष्य में पर्यटकों को जंगल सफारी का भी आनंद भी यहां मिल सके। 

टूरिज्म सर्किट के रूप में हो रहा विकसित

केशकाल में टाटामारी और पास ही में स्थित मांझीनगढ़ के मारी क्षेत्र को संयुक्त रूप से टूरिज्म सर्किट के रूप में विकसित किये जाने का प्रयास किया जा रहा है।  इसी के चलते मांझीनगढ़ में जंगल सफारी के अलावा टाटामारी में ईको ट्यूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए लगातार कोशिशें की जा रही है। इस परियोजना से प्रदेश ही नहीं बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों को इस क्षेत्र में पर्यटन का आनंद प्राप्त हो सकेगा। साथ ही निकट भविष्य में टाटामारी ईको पर्यटन केन्द्र क्षेत्र में पैराग्लाईडिंग एडवेंचर एक्टिविटी के साथ-साथ अन्य रोमांचक गतिविधियों जैसे रॉक क्लाईम्बिंग, रैंपलिंग, टायर वाक, कैम्प फायर प्रस्तावित है। इको पर्यटन के माध्यम से बस्तर की संस्कृति को देश-विदेश तक पहुंचाया जा सकें, इस दिशा में छत्तीसगढ़ पर्यटम विभाग और वन विभाग सतत् प्रयासरत है। टाटामारी में दो पहाडिय़ों को जोड़कर एक कांच के पुल का निर्माण भी किया जाना है। छत्तीसगढ़ में बनने वाला यह पहला कांच का पुल होगा।

पर्यटकों के रुकने के लिए शानदार इंतजाम

टाटामारी ईको पर्यटन केंद्र में पर्यटकों के रूकने के लिये भी शानदार इंतजाम हैं। प्राकृतिक माहौल में यहां सर्व सुविधायुक्त कॉटेज का निर्माण किया गया है। एक समय मे यहां माता के मंदिर के अलावा सिर्फ घने जंगल हुआ करते थे, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार और वन विभाग ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने में बहुत मेहनत की है जिसका नतीजा अब दिखने लगा है। यहां पर्यटन क्षेत्र विकास योजना के अंतर्गत यहां ठहरने के भी अच्छे इंतजाम किए गए है। यहां 04 कॉटेज, और 04 डोरमेट्री हैं। टाटामारी ईको पर्यटन केंद्र में जंगल में ट्रैकिंग, साईक्लिंग, आरचेरी, नाईट कैंपिंग की सुविधा भी उपलब्ध है। नाइट कैंपिंग के लिए गार्डन एरिया में ही टेंट की व्यवस्था की गई है, यहां आने वाले ज्यादातर पर्यटक इसी में ठहरना पसंद करते हैं, जो बेहद ही अफॉर्डेबल प्राइज में बुक किए जाते हैं। यहां रोजाना बड़ी संख्या में पर्यटक पहाड़ों में मनोरम दृश्य देखने पहुचते है। इससे न केवल इस जगह को पहचान मिली है बल्कि आसपास के लोगो को रोजगार भी मिल रहा है।

कैसे पहुंचा जाए

सड़क द्वारा : रायपुर से नियमित डीलक्स बस सेवाएं हैं। निजी कारें भी किराए पर उपलब्ध हैं।
हवाईजहाज से : समीपस्थ नियमित उड़ानें रायपुर को दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, चेन्नई, अहमदाबाद, भुवनेश्वर और इंदौर से जोड़ती हैं।
रेल द्वारा : रायपुर निकटतम रेलवे स्टेशन है। दैनिक रात की ट्रेनें इसे दिल्ली, कलकत्ता, मुंबई, भुवनेश्वर और भोपाल से जोड़ती हैं।

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