स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: मनुष्य के जीवन में संगति और स्वाध्याय का प्रभाव 

Swami Avdheshanand Giri ji maharaj Jeevan Darshan, Life Philosophy
X
स्वामी अवधेशानंद जी गिरि- जीवन दर्शन: क्या बाह्य व्यथाओं के कारण हमारे भीतर का सुख, शांति और आनंद नष्ट हो जाता है?
Jeevan Darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से आज 'जीवन दर्शन' में जानिए 'मनुष्य जीवन में संगति और स्वाध्याय का क्या प्रभाव रहता है? 

swami avadheshanand giri Jeevan Darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से आज 'जीवन दर्शन' में जानिए 'मनुष्य जीवन में संगति और स्वाध्याय का क्या प्रभाव रहता है?

मनुष्य के जीवन में संगति और स्वाध्याय का विशेष प्रभाव रहता है। जिस प्रकार जल में रहकर मछली को जल का प्रभाव स्वतः ही प्राप्त होता है, उसी प्रकार जिस संगति में हम रहते हैं, उसी का प्रभाव हमारे मन, वचन, व्यवहार और जीवन-दृष्टि पर पड़ता है। सत्संग अर्थात् सत्पुरुषों का संग जीवन में दिव्यता का संचार करता है। जब हम महापुरुषों के समीप बैठते हैं, उनकी वाणी सुनते हैं, उनके दिव्य चरित्र को आत्मसात कर पाते हैं, तो उनका व्यक्तित्व हमारी अन्तःचेतना में उच्च संस्कारों का बीजारोपण कर देता है। सत्संग से अंतःकरण की मलिनता धुलती है, संदेहों का अंधकार मिटता है और श्रद्धा, प्रेम, करुणा, धैर्य, सद्विवेक जैसे सद्गुणों का विकास होता है।

इसके विपरीत रूप से, कुसंग अर्थात् दुष्ट विचारों और दूषित प्रवृत्तियों से युक्त लोगों का संग; मनुष्य को अवसाद, ईर्ष्या, द्वेष, आलस्य और विकारों के गर्त में गिरा देता है। कुसंग से न केवल मन विकृत होता है, बल्कि जीवन की दिशा भी भटक जाती है। इसलिए सत्संग की आवश्यकता केवल धर्म के लिए नहीं, बल्कि समग्र जीवन-सुधार के लिए है। स्वाध्याय भी सत्संग का ही एक रूप है। जब हम शास्त्रों, महापुरुषों के ग्रन्थों और दिव्य साहित्य का अध्ययन करते हैं, तो हम परोक्ष रूप से उन महात्माओं का सान्निध्य प्राप्त करते हैं। स्वाध्याय के द्वारा हमारी बुद्धि निर्मल होती है, जीवन-दृष्टि व्यापक बनती है और साधना में निरन्तरता आती है।

undefined
swami avdeshanand giri

इसलिए विवेकशील व्यक्ति को अपने परिवेश के प्रति सजग रहना चाहिए। हमें बार-बार आत्म-निरीक्षण करना चाहिए कि हम किनके साथ उठते-बैठते हैं, किन बातों में समय गंवाते हैं और किस प्रकार के विचारों से अपने चित्त को पोषित कर रहे हैं। यदि संगति सकारात्मक, सात्त्विक और उत्थानकारी है, तो निश्चित ही जीवन में उन्नति होगी।

सत्संग जीवन-परिवर्तन का आधार है। जैसे मधुरस से भरे पुष्पों के समीप भ्रमर स्वतः आकर्षित होते हैं, वैसे ही सत्संग से सद्गुणों का विकास होता है और जीवन एक मधुर सुरभि बिखेरने लगता है। इसलिए सदा प्रयास करें कि महापुरुषों के वचनों, सत्पुरुषों की संगति और दिव्य ग्रन्थों के स्वाध्याय से जीवन को पवित्र और सार्थक बनाएं।

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo
Next Story