Holi Ka Mahatva: होली की पौराणिक कथा क्या है, इसका इतिहास और कहानी क्या है ? जानें

mythological stories of Holi
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होली का त्यौहार देश में सदियों से मनाया जाता है।
Mythological stories of Holi: होली का त्यौहार देश में सदियों से मनाया जाता है। इस पर्व की शुरुआत कब से हुई यह बताना थोड़ा मुश्किल होगा। लेकिन इस त्यौहार के बारे में अलग-अलग इतिहास पुराण और साहित्य के बारे में बताया गया है। इसके पीछे प्रचलित कथाएं क्या हैं? आइए जानते हैं।

Mythological stories of Holi: होली का त्यौहार देश में सदियों से मनाया जाता है। इस पर्व की शुरुआत कब से हुई यह बताना थोड़ा मुश्किल होगा। लेकिन इस त्यौहार के बारे में अलग-अलग इतिहास पुराण और साहित्य के बारे में बताया गया है। हर वर्ष फाल्गुन मास के धुरेड़ी से एक दिन पहले होलिका दहन और पूर्णिमा के दिन होली मनाई जाती है। इस दिन देश अबीर-गुलाल और रंग से तरबतर हो जाता है। हर कोई एक दूसरे पर प्यार का रंग बरसाता है।

क्या आप जानते हैं होली मनाने की परंपरा का रहस्य? क्यों और कब से मनाया जाता है यें रंग बरसाने का त्यौहार, वैसे तो होली पर्व कथाओं में आधारित साहित्य और फिल्मों में बहुत कुछ कहने का प्रयत्न कर रहा है, लेकिन हर कथा में समानता है। अंततः कहा गया है कि असत्य पर सत्य की विजय होने पर इस त्यौहार की शुरुआत हुई। इसके पीछे प्रचलित कथाएं क्या हैं? आइए जानते हैं।

भक्त प्रहलाद की कथा
भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु नारायण का भक्त था। विष्णु पुराण कथा के अनुसार भक्त प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप नाम का दैत्य था, जो पुत्र को भगवान विष्णु की आराधना से मना किया। पुत्र के नहीं मानने पर अपने सेवकों से मारने का आदेश दिया। सेवकों ने अस्त्र, शस्त्र, तीर, भाले, हाथियों से कुचलवाया, शेर, विष और हथियार से वार किया, लेकिन प्रहलाद को भगवान विष्णु जी का वरदान होने के कारण कुछ नहीं हुआ। दैत्य हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान मिला था। दैत्य भाई के कहने पर होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में जलाने के लिए बैठ गई। होलिका का ये वरदान भी प्रह्लाद के पास न टिक सका। प्रह्लाद उसी अग्नि से खेलते बाहर आ गए और होलिका का अंत हो गया। तभी से लोगों होली से एक दिन पहले होलिका दहन का पर्व मनाते आ रहे हैं। लोगों का मानना है कि बुराई में अच्छाई की जीत और शक्ति में भक्ति की विजय का पर्व को होली के रूप में मनाया जाता है।

राधा-कृष्ण से जुड़ी कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण सांवले रंग के थे और राधा रानी गोरी थी। इस बात को लेकर कन्हैया अपनी मैया यशोदा से शिकायत करते हैं, कि राधा क्यों गोरी और मैं क्यों काला। तो माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण को कहा कि जो तुम्हारा रंग है वहीं रंग राधा को लगा दो, तब दोनों एक ही रंग के हो जाओगे और ये शिकायत भी खत्म हो जाएगी। फिर क्या था, नटखट नंद यशोदा अपनी टोली के साथ राधा को रंगने पहुंच गए और राधा के साथ अन्य सखियों को रंग लगाया। लोगों का ऐसा मानना है, कि तभी से रंगों वाली होली के त्यौहार की शुरुआत हुई। इसके बाद आज भी श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा-वृन्दावन में खूब हर्षोल्लास के साथ होली का त्यौहार खूब मन पसंद से मनाया जाता है।

महादेव से जुड़ी कथा
धार्मिक कथाओं के मुताबिक, माता पार्वती शिवजी से विवाह करने के लिए कठिन तपस्या कर रही थी। वहीं शिवजी भी अपने तप में लीन थे। भगवान शिवजी और माता पार्वती के पुत्र के हाथों से दैत्य तारकासुर का वध होना निश्चित था। ऐसे में महादेव और मां पार्वती का विवाह बहुत जरूरी था। तब इंद्र और अन्य देवताओं ने कामदेव को महादेव की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। कामदेव ने भगवान शिवजी की तपस्या में अड़चन डालने के लिए उन पर 'पुष्प' बाण छोड़ा। जिसके बाद महादेव की तपस्या भंग हो गई, और क्रोध में आकर शिवजी तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिये। भगवान का तप भंग होने पर सभी देवता शिवजी के पास पहुंचे और उन्हें माता पार्वती जी से विवाह के लिए राजी किया। वहीं भगवान शिवजी कामदेव को पुनर्जीवन दान दिया। फाल्गुन पूर्णिमा दिन भगवान शिवजी और पार्वती का विवाह संपन्न की खुशी में सभी देवी-देवताओं ने उत्साह मनाया। जिसके बाद रंग की वर्षा हुई और इसी दिन से होली का पर्व मनाया जाने लगा।

इक्षांत उर्मलिया

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