Chaitra Navratri 2024: कल से चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ, संकटों से छुटकारा पाने के लिए करें ये उपाय

Chaitra Navratri 2024
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Chaitra Navratri 2024
Chaitra Navratri 2024: कल यानी मंगलवार से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि और नवसंत्सर का शुभारंभ हो रहा है। इस तिथि का जितना प्राकृतिक, ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व है, उतना ही सांस्कृतिक महत्व भी है।

Chaitra Navratri 2024: हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल चैत्र प्रतिपदा से नया विक्रम संवत शुरू हो जाता है। एक बार फिर कालचक्र के परिवर्तन के साथ नववर्ष दस्तक दे रहा है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी 9 अप्रैल मंगलवार से नव विक्रम संवत्सर 2081 आरंभ हो रहा है। साथ ही इस दिन से ही चैत्र नवरात्रि भी आरंभ हो रही है।

ज्योतिषीय मान्यताएं-अनुमान
ज्योतिषीय पंचांग के अनुसार नव संवत्सर 2081 का नाम क्रोधी और पंचांग भेद से इसका नाम कालयुक्त है। इसका राजा मंगल और मंत्री शनि होंगे। ज्योतिष के अनुसार इस वर्ष ग्रहों के दशाधिकार में सात विभाग क्रूर ग्रहों को और तीन शुभ ग्रहों को मिले हैं। मंगल के राजा और शनि के मंत्री होने से इस वर्ष के उथल-पुथल भरा रहने की आशंका है। मान्यता है कि नए संवत्सर में ब्रह्मांड में नई व्यवस्था का गठन भी होता है। मान्यता यह भी है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि का आरंभ इसी तिथि से किया था। यह भी माना जाता है कि सबसे पहले सतयुग का प्रारंभ इसी तिथि यानी चैत्र प्रतिपदा से हुआ था। हिंदू विक्रम संवत, अंग्रेजी कैलेंडर के वर्ष से 57 वर्ष आगे होता है। चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा तिथि से अगले 9 दिनों तक देवी दुर्गा की उपासना का महापर्व नवरात्र भी आरंभ होता है।

सांस्कृतिक धरोहर
राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के प्रतीक की शुरुआत इस चैत्र नवरात्रि से ही होती है। महाराष्ट्र में इस दिन को गुड़ी पड़वा और दक्षिण भारत में इसे उगादि के रूप में मनाया जाता है। कई विद्वानों का मत है कि भारत में विक्रमी संवत से भी पहले लगभग 700 ई.पू. प्राचीन सप्तर्षि संवत हिंदुओं का अस्तित्व में आ चुका था।

शुक्ल पक्ष से आरंभ होता नववर्ष
‎यह नववर्ष किसी जाति, वर्ग, देश, संप्रदाय का नहीं अपितु संपूर्ण मानवता का नववर्ष है। यह पर्व विशुद्ध रूप से भौगोलिक पर्व है, क्योंकि प्राकृतिक दृष्टि से भी इस दौरान वनस्पतियों, फूलों और पत्तियों में भी नयापन दिखाई देता है। हिंदू कैलेंडर में कुल 12 माह होते हैं। जैस चैत्र का महीना चित्रा नक्षत्र के नाम पर रखा गया है, इसी प्रकार वैशाख, विशाखा के नाम पर, ज्येष्ठ, ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर रखा गया है। इसी तरह सभी 12 हिंदू महीनों का नाम नक्षत्रों के नाम पर रखे गए हैं। एक प्रश्न यह उठता है कि चैत्र महीना हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है, जो होली के बाद शुरू हो जाता है। यानी फाल्गुन पूर्णिमा तिथि के बाद चैत्र कृष्ण प्रतिपदा लग जाती है फिर भी उसके 15 दिन बाद नया हिंदू नववर्ष क्यों मनाया जाता है? इसका उत्तर यह है कि हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष, पूर्णिमा से अमावस्या तिथि के 15 दिनों तक रहता है और कृष्ण पक्ष के इन 15 दिनों में चंद्रमा लगातार घटता है। इस कारण पूरे आकाश में अंधेरा छाने लगता है। सनातन धर्म का अंधेरे से उजाले की तरफ बढ़ने को प्रेरित करता है यानी ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’। इसी वजह से चैत्र माह के लगने के 15 दिन बाद जब शुक्ल पक्ष लगता है तभी प्रतिपदा तिथि से हिंदू नववर्ष मनाया जाता है। अमावस्या के अगले दिन शुक्ल पक्ष लगने से चंद्रमा हर एक दिन बढ़ता जाता है, जिससे कालक्रम अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ता है।

क्या है प्रतिपदा
हिंदू पंचांग की प्रथम तिथि प्रतिपदा कही जाती है। यह तिथि मास में दो बार आती है पूर्णिमा के पश्चात और अमावस्या के पश्चात। पूर्णिमा के पश्चात आने वाली प्रतिपदा को कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा और अमावस्या के पश्चात आने वाली प्रतिपदा को शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा कहा जाता है। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चंद्रमा पूर्णता की ओर बढ़ता है, अतः इसे प्रतिपदा कहते हैं। शुक्ल पक्ष में सूर्य और चंद्र का अंतर 0 डिग्री से 12 डिग्री तक होता है, जबकि कृष्ण पक्ष में सूर्य और चंद्र का अंतर 181 डिग्री से 192 डिग्री तक होता है, तब प्रतिपदा तिथि होती है। कृष्ण प्रतिपदा को चंद्रमा की प्रथम कला होती है। शुक्ल पक्ष प्रतिपदा में चंद्रमा अस्त रहता है, अतः इसे समस्त शुभ कार्यों हेतु वर्जित और अशुभ माना गया है। कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में स्थिति एकदम विपरीत होती है। कृष्ण प्रतिपदा में चंद्र अपने ह्रास की ओर पग रखता है। अतः कह सकते हैं कि हिंदू संस्कृति के अनुसार नया वर्ष आनंददायक भाव के साथ शुरू किया जाता है।

डॉ. घनश्याम बादल

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