Opinion: आखिर कब तक.., कोलकाता और बदलापुर तक के सफर में कहीं सुधार के लक्षण परिलक्षित नहीं

fatehabad women registered fir against husbands friend for raped
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प्रतीकात्मक तस्वीर।
Opinion: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 से 2022 के बीच भारत में बलात्कार के कुल 1.89 लाख मामले दर्ज किए गए।

Opinion: सवर्वोच्च व्यायालय ने कोलकाता में ट्रेकी डॉक्टर से रेप और हत्या के प्रकरण पर बंगाल सरकार को फटकार लगाते हुए पुलिस की जांच पर सवाल उठार और इसे शर्मनाक बताते हुए कहा कि पुलिस ने जो प्रक्रिया अपनाई, वह क्रिमिनल प्रोसिजर कोड से अलग है। जज ने कहा, अपने 30 साल के करियर में मैंने ऐसा नहीं देखा। पुलिस की जांच से हमें सदमा लगा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार देश में दो साल की बच्ची से लेकर बुजुर्ग महिला तक दुष्कर्म की शिकार हो रही हैं।

शोषण जैसे अपराधों में तेजी
ऐसे में कानून के पालनहार कोई सख्त कदम उठाने के बजाय अपनी गलतियों को छिपाने के लिए नित नए बहाने ढूंढ रहे हैं। महिलाओं के सथ होने वाले बलात्कार, छेड़छाड़ और शोषण जैसे अपराधों में तेजी आई है। ऐसा लगता है निर्भया से लेकर कोलकाता और बदलापुर तक के सफर में कहीं सुधार के लक्षण परिलक्षित नहीं हो रहे हैं। देश में एक बार फिर महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़ के खिलाफ भारी आक्रोश के स्वर सुनाई देने लगे हैं। राजनीतिक दलों की कथनी और करनी से भी पर्दा उठने लगा है। महिलाओं के उत्पीड़नकर्ताओं के मन में सजा का मय ही नहीं है, यही वजह है कि यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि हो रही है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 से 2022 के बीच भारत में बलात्कार के कुल 1.89 लाख मामले दर्ज किए गए, जिनमें 1.91 लाख पीड़ित शामिल थे। बलात्कार पीड़ितों की सबसे अधिक संख्या 18 से 30 वर्ष की आयु के बीच है। बहुत सारे मामले ऐसे हैं, जिनकी थानों में रिपोर्ट ही वहीं हो पाती। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की मानें तो पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों में 44 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। ऐसे मामलों में ज्यादातर महिलाएं रिपोर्ट दर्ज कराने से इिब्झकती हैं। वे सामाजिक, पारिवारिक या अन्य किसी दबाव की वजह से अपने साथ हुए जघन्य अपराध के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने में असफल होती हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट का विश्लेषण करें तो पाएंतो देश में कानून का इकबाल खत्म हो गया है। विशेषकर महिलाओं से दुष्कर्म के मामलों में। चाहे किसी पार्टी का शासन हो, वाचे अवश्य बदहवद कर किये जाते है मगर अपराधियों के खौफ के आगे सभी बेबस है।

खास बदलाव देखने को नहीं मिला
समाज के नजरिए में भी महिलाओं के प्रति अब तक कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है। यौन अपराध चिंताजनक रफ्तार से बढ़ रहे हैं। पिछले चार दशकों में अन्य अपराधों की तुलना में रेप की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है और दोषियों को सजा देने के मामले में हम सबसे पीछे है। आंकड़ों के मुताबिक 2018 से 2022 के बीच बलात्कार के मामलों में दोष साचित होने की दर 27 से 28 प्रतिशत थी। सच तो यह है कि एक छोटे से गांव से देश की राजधानी तक महिला सुरक्षित नहीं है। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में कमी नहीं आ रही है। भारत में आर दिन महिलाएं हिंसा और अत्याचारों का शिकार हो रही है।

सवाल है आखिर कब तक? अर्थ नैतिकता खो देना नहीं है। इसलिए प्रगतिशील होते हुए कैसे समाज की नैतिकता बरकरार रहे, यह हमें सोचना होगा। निश्चित रूप से कड़ा कानून और पुलिस की तत्परता दुष्कर्म की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए अति आवश्यक हैं। लेकिन ये उपाय भी इस समस्या का वास्तविक समाधान नहीं हैं। अब समय आ गया है कि हम ऐसी घटनाओं के मूल कारणों पर ध्यान दें। पिछले कुछ वर्षों में नैतिकता और अनैतिकता के बीच की स्थिति जिस तरह से गड्डमड्डू हुई है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। टीवी, फिल्मों और विज्ञापनों में जिस तरह की नंगई पसरी हुई है, वह आज नैतिक हो गई है। इंटरनेट पर जो पॉर्न साइटें उपलब्ध हैं, वे भी नंगई और वासना का एक नया शाख गढ़ रही हैं। फिल्मों में जब हम द्विअर्थी संवाद और नंगे दृश्य सुनते और देखते हैं तो परिवार के सामने हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। अनेक फिल्मों के गीत-संगीत को सुनकर और इन गानों पर नायिकाओं द्वारा किए जाने वाला अभिनय देखकर ऐसा लगता है कि मानो जानबूझकर श्रोताओं और दर्शकों की वासना को गति प्रदान करने के लिए यह सब कुछ किया जा रहा है।

सेंसर बोर्ड एक गहरी नींद सो रहा
स्थायी उपचार की आवश्यकता यह विडंबना ही है कि ऐसी स्थिति में भी सेंसर बोर्ड एक गहरी नींद सो रहा है। सामाजिक व मानसिक नंगेपन की प्रक्रिया मानसिक रूप से बीमार बनाती है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कानून के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता भी आवश्यक है। अब सरकार, समाज व परिवार को इस विषय पर गंभीरता के साथ विचार करना होगा। स्थायी उपचार के अभाव में हमारे समाज में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की बीमारी कैंसर की तरह बढ़ती रहेगी और हम यूं ही सड़कों पर अपना गुस्सा दिखाते रहेंगे। महिलाओं को सम्मान सुनिश्चित करके ही ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है।
बाल मुकुंद ओझा: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये उनके अपने विचार हैं।)

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