Opinion: बैंक जमा करमुक्त होने की आशा, डिपॉजिट और ऋण के बीच निश्चित अंतर जरूरी

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बैंक जमा करमुक्त होने की आशा
बैंकिंग का मूल सिद्धांत है, ग्राहकों से डिपॉजिट लेना और जरूरतमंदों व कारोबारियों को ऋण देना।

Opinion: भारतीय बैंक आज डिपॉजिट की कमी की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। ऋण-जमा अनुपात 80 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच चुका है, जो 2015 के बाद का उच्चतम स्तर है। सीडी अनुपात यह बताता है कि बैंक के जमा आधार का कितना हिस्सा ऋण के लिए उपयोग किया जा रहा है। वित्त वर्ष 2023 में बैंक जमा में 9.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी, जबकि उधारी में 15.4 प्रतिशत की दर से।

ऋण और जमा के बीच बढ़ रही खाई
भारतीय रिजर्व बैंक अनुसार पिछले साल के मुक़ाबले चालू वर्ष की 1 जनवरी से 14 जून 2024 तक बैंक जमा में 3.5 लाख करोड़ रुपए की कमी दर्ज की गई है, जबकि ऋण में वर्ष दर वर्ष के आधार पर 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह आंकड़ा ऋण और जमा के बीच बढ़ रही खाई को दर्शाता है। बैंकिंग का मूल सिद्धांत है, ग्राहकों से डिपॉजिट लेना और जरूरतमंदों व कारोबारियों को ऋण देना। डिपॉजिट और ऋण राशि के बीच हमेशा तालमेल बनाकर रखने की जरूरत होती है। मुनाफा के लिए डिपॉजिट और ऋण के बीच एक निश्चित अंतर होना जरूरी है।

इसमें मिस-मैच आना बैंकों की सेहत के लिए ठीक नहीं होता है अर्थात बैंक में डिपॉजिट और ऋण का समान महत्व है। मौजूदा समय में देनदारियाँ यानी जमा राशि की लागत बढ़ती जा रही है, जबकि ऋण दर लगभग स्थिर बनी हुई है। इससे शुद्ध ब्याज मार्जिन और शुद्ध ब्याज आय पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। हालांकि, ऋण वितरण में अभी और भी तेजी आने की उम्मीद है, लेकिन जमा की बढ़ती लागत बैंकों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।

बैंकों की ऑपरेटिंग प्रॉफ़टि में कमी
पहले डिपॉजिट बढ़ाने के लिए सभी बैंक अपने बैलेंस शीट की मजबूती के अनुरूप जमा पर ज्यादा ब्याज देते थे, ताकि उनका जमा आधार बढ़े, लेकिन अब जमा लागत बढ़ने के कारण शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) पर दबाव बढ़ रहा है और शुद्ध ब्याज मार्जिन से होने वाले मुनाफे में कमी आने से बैंकों की ऑपरेटिंग प्रॉफ़टि में कमी आ रही है। साथ ही, बैंकों से जमा के उच्च बहिर्वाह के कारण बैंकों के समक्ष तरलता का जोखिम पैदा हो रहा है। डिपॉजिट की समस्या का एक बड़ा कारण बैंकों द्वारा इकठ्ठा की गई जमाराशि का एक हिस्सा विनियामक आवश्यकताओं, जैसे नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) और सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) के लिए अलग से रखना है, जिससे उधार देने योग्य राशि कम हो गई है।

हाल की तिमाहियों में बैंकों ने धीमी जमा वृद्धि के बीच ऋण वृद्धि में तेजी लाने के लिए अपने अधिशेष एसएलआर होल्डिंग्स का इस्तेमाल किया था, जिसके कारण एसएलआर के बफर में कमी दर्ज की गई और बैंकों को लाभप्रदता के साथ-साथ जमा दरव र वृद्धि को संतुलित करने की चुनौती का सामना करना पड़ा। अस्तु, सरकार को इसके बरक्स भी बजट में समुचित प्रावधान करना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा कर वसूलने या राजस्व संग्रह बढ़ाने के लिए बचत और आवृति जमा पर मिलने वाले ब्याज को भी सरकार ने कर योग्य बना दिया है। मियादी जमा पर तो सरकार पहले से ही कर वसूल रही थी। सरकार को जमा पर से टैक्स वसूलने से बचने की जरूरत है, क्योंकि आज की तारीख में बैंकों के समक्ष जमा आधार बढ़ाने की चुनौती एक बहुत बड़ी समस्या बनकर उभरी है।

बैंक जमा पर से टैक्स खत्म
बैंक को उधारी देने के लिए जमा की जरूरत होती है, लेकिन आज बैंकों के जमा आधार में निरंतर कमी आ रही है। ऐसे में पर्याप्त जमा के अभाव में बैंकों के कारोबार के असफल होने की संभावना बढ़ गई है। मौजूदा परिवेश में बैंकिंग क्षेत्र को उम्मीद है कि सरकार बैंकों की इस समस्या को समझते हुए बैंक जमा पर से टैक्स खत्म करेगी, ताकि निवेशक बैंक में अधिक प्रतिफल मिलने की आशा में बैंक में निवेश करने के लिए प्रेरित हों। पुनश्चः मोटे तौर पर आज भी देश में आबादी का एक बड़ा तबका शेयर बाजार, बीमा और म्यूचुअल फंड में निवेश नहीं करना चाहता है। अधिकांश लोग आज भी बैंक में निवेश को सुरक्षित मानते हैं, लेकिन सरकार द्वारा जमा पर भी टैक्स वसूलने के कारण, आमजन निवेश के दूसरे विकल्प ढूँढने के लिए मजबूर हो गए हैं। वैसे बुजुर्ग, जिनके जीने का आधार सिर्फ बैंक जमा है, अगर उसपर भी टैक्स लिया जाएगा तो उनके लिए जीना दुर्भर हो जाएगा।

बुजुर्ग होने पर स्वास्थ पर होने वाले खर्च पर बहुत ही ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती है। मामले में बैंकों ने दो गलतियाँ की। पहला, जमा बढ़ाने के लिए आकर्षक योजनाएँ चलाना बंद कर दिया और दूसरा, बैंक डिपॉजिट का इस्तेमाल म्यूचुअल फंड और बीमा कारोबार को बढ़ाने में किया जाने लगा। बैंक कर्मचारी, ग्राहकों को म्यूचुअल फंड और बीमा में अधिक प्रतिफल मिलने का लालच देने लगे। इसकी वजह से ग्राहक मियादी और बचत खाते से निकासी करके म्यूचुअल फंड और बीमा में निवेश करने लगे। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्ति कांत दास हाल में संपन्न निजी और सरकारी बैंकों के प्रमुखों की बैठक में ऋण और जमा राशि के बीच बढ़ती खाई पर चिंता जता चुके हैं।
सतीश सिंह: (लेखक बैंककर्मी व वित्तीय जानकार हैं. ये उनके अपने विचार हैं।)

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