Opinion: धर्मस्थलों पर बदइंतजामी से हादसे, सुरक्षा उपाय की अनदेखी पर सवाल

Hathras stampede Main Accused Arrested
X
हाथरस भगदड़ के बाद पहली बार बाबा सूरजपाल सिंह सामने आया।
किसी भी धार्मिक सभा के आयोजन से पूर्व प्रशासन से अनुमति लिए जाने का नियम है तो फिर क्यों ऐसे आयोजनों में नियमों की अनदेखी की जाती है।

Opinion: हाथरस में सत्संग समापन के बाद मची भगदड़ में कई लोगों की जान चली गई। इस घटना ने न केवल विचलित किया है बल्कि ऐसे आयोजनों को लेकर कई सवाल भी खड़े कर दिए। विडंबना देखिए कि जो बाबा खुद को भगवान मानता है, लोगों को जीवन दान देने का दावा करता है। वही इनकी मौत की वजह बन गया।

खुद को गरीबों का मसीहा बताने वाला बाबा घटना के बाद से फरार है। यहां तक कि मासूम लोगों की चीख पुकार सुनने के लिए प्रशासन की व्यवस्था भी माकूल नहीं थी। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के अध्ययन की मानें तो भारत में भगदड़ के 79 फ़ीसदी मामले धार्मिक सभाओं या तीर्थ यात्राओं के दौरान होते हैं।

17 साल पहले पुलिस की नौकरी छोड़ कथा वाचक
किसी भी धार्मिक सभा के आयोजन से पूर्व प्रशासन से अनुमति लिए जाने का नियम है तो फिर क्यों ऐसे आयोजनों में नियमों की अनदेखी की जाती है? ऐसे हादसों के कारण इन आयोजनों में सुरक्षा उपाय की अनदेखी पर सवाल उठाते हैं? सवाल तो यह भी है कि 17 साल पहले पुलिस की नौकरी छोड़ कथा वाचक बने बाबा में ऐसा क्या सम्मोहन था कि उत्तर प्रदेश ही नहीं मध्य प्रदेश, हरियाणा तक के श्रद्धालु भारी संख्या में बाबा की एक झलक पाने के लिए पहुंच गए?

इस घटना के बाद प्रशासन द्वारा जांच, मुआवजा और कार्रवाई की बात कही जा रही है, लेकिन उन परिवारों का क्या जिन्होंने अपनों को खोया है? क्या मुआवजे का मरहम उन परिवारों का दर्द भर पाएगा? सवाल तो यह भी है कि इतने बड़े आयोजनों में पुलिस प्रशासन की कोई जवाबदेही नहीं होती क्या? जाहिर सी बात है कि हर घटना की तरह इस हादसे की भी लीपापोती शुरू कर दी गई है।

क्या बिना राजनीतिक संरक्षण के दुकान फल-फूल सकती है
तभी तो इतनी मौत के दोषी बाबा के नाम पर एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई। क्या बिना राजनीतिक संरक्षण के ऐसे बाबाओं की दुकान फल-फूल सकती है। सवाल बहुतेरे हैं, लेकिन जवाब किसी के पास नहीं। सवाल तो यह भी है कि ऐसे हादसों के हो जाने के बाद ही पुलिस प्रशासन क्यों जगाता है? क्यों पिछले हादसों से जिम्मेदार कोई सबक नहीं सीखते। सैकड़ों की संख्या में हुई मौत का जिम्मेदार आखिर कौन है? भारत में धार्मिक आयोजनों में इस तरह के हादसों की एक लम्बी फेहरिस्त है। बीते दिनों मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के बेलेश्वर महादेव मंदिर में रामनवमी के दिन एक बावड़ी की छत ढहने से 30 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के समय वहां धार्मिक आयोजन चल रहा था।

2016 में केरल के कोल्लम में एक मंदिर में आग
इससे पहले जनवरी 2022 में वैष्णो देवी मंदिर में मची भगदड़ में 10 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। अक्तूबर 2018 में पंजाब के अमृतसर में दशहरे पर रावण दहन को देखने में भीड़ रेलवे ट्रैक पर आ गई। इस दौरान ट्रेन की चपेट में आकर 60 लोगों की मौत हो गई थी। अप्रैल 2016 में केरल के कोल्लम में एक मंदिर में आग लगने से 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। ताज्जुब की बात है कि लोग भी ऐसे बाबाओं के बहकावे में आ जाते हैं। यही वजह है कि कभी भगदड़ से तो कभी प्रशासन की बदइंतजामी की वजह से ऐसे होते हैं। प्रशासन उनकी मौत पर मुआवजे का ऐलान करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है। ऐसे में सचेत स्वयं को करना होगा, वरना धर्म के नाम पर ये अपना व्यवसाय यूं ही चलाते रहेंगे और लोगों की जान यूं ही जाती रहेगी।
सोनम लववंशी: (लेखिका शोधार्थी है, ये उनले अपने विचार है।)

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo
Next Story