66A रद होने के बाद यूं ही कुछ भी लिख नहीं पाएंगे आप, आड़े आएंगे ये कानून

66A रद होने के बाद यूं ही कुछ भी लिख नहीं पाएंगे आप, आड़े आएंगे ये कानून
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कंटेप्ट ऑफ कोर्ट और पार्लियामेंटरी प्रिवेलेज के प्रावधान भी जारी हैं।
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट द्वारा IT Act 66A रद्द होने के कारण सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों में खुशी का माहौल है। इस धारा के खत्म होने के बाद अब लिखने की ज्यादा आजादी भले ही मिल गई है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप जो चाहें उल्टा सीधा लिख सकते हैं और आप पर कोई कार्यवाही नहीं होगी।
भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु और उदार समाज की गारंटी देता है। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मनुष्य का एक सार्वभौमिक और प्राकृतिक अधिकार है और लोकतंत्र, सहिष्णुता में विश्वास रखने वालों का कहना है कि कोई भी राज्य और धर्म इस अधिकार को छीन नहीं सकता। लेकिन इन सबके बीच कानून इस तरह के माहौल को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी होते हैं।
कोर्ट ने 66A को अस्पष्ट बताते हुए इसे रद कर भले ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में इजाफा किया है लेकिन अन्य कानून जैसे एक्ट ऑफ डिफेमेशन, IPC 499, सद्भाव बिगाड़ने पर लगने वाली धारा 153 A, धार्मिक भावनाओं को आहत करने पर लगने वाली धारा 295A, और CrPC 95A, अश्लीलता से संबंधित धारा 292 अभी अपनी जगह मौजूद हैं। कंटेप्ट ऑफ कोर्ट और पार्लियामेंटरी प्रिवेलेज के प्रावधान भी जारी हैं। इसके साथ ही भारतीय संविधान का 19 (1) (1) भी आपकी उलूल जुलूल हरकतों और कलम पर पाबंदी के लिए काबिज हैं। इसके तहत विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 6 तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं। साथ ही मानहानि के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 499 भी आपके गलत इरादों पर लगाम लगाने के लिए खड़ी है।
इसलिए अगर आप जोश में आकर कुछ भी लिखने का मन बना रहे हैं तो अभी भी जोखिम को समझते हुए और अन्य कानूनों के दायरे में रहकर ही लिखें। ज्यादातर मामलों में तर्क दिया जाता है कि हमें इस तरह के कानून की कोई जानकारी नहीं थी लेकिन यह कोई डिफेंस नहीं है। विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनलिमिटेड नहीं है, कानून और संविधान के दायरे में है।
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