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अपने देश में उपभोक्ताओं की सुरक्षा और अधिकारों के लिए कई कानून मौजूद हैं। ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते ट्रेंड में भी ये कानून पूरी तरह कारगर हैं। हालांकि पहले की तुलना में उपभोक्ताओं में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन ये कानून तभी पूरी तरह से उपभोक्ताओं के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं, जब उपभोक्ता स्वयं जागरूक होंगे।

Online shopping:  15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस है। हाल के वर्षों में अपने देश में शॉपिंग ट्रेंड काफी बदल गया है। साल 2021 में जहां 18 करोड़ से ज्यादा लोग ऑनलाइन शॉपिंग करते थे, वहीं अब करीब 30 करोड़ लोग ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं और अनुमान है कि साल 2027 तक देश में ऑनलाइन शॉपिंग करने वालों की संख्या बढ़कर 42.5 करोड़ हो जाएगी।
 
मौजूद हैं कानूनी अधिकार
ऑनलाइन शॉपिंग का बढ़ता ट्रेंड इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस बढ़ते उपभोक्ता बाजार को पारंपरिक उपभोक्ताओं की तरह ही कानूनी अधिकार और संरक्षण की दरकार है। भारत सरकार ने इसीलिए कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 1986 में बदलाव करके उसे ‘कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019’ (सीपी एक्ट, 2019) कर दिया है। इसे 09 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति द्वारा मंजूर किया गया था। इसलिए कह सकते हैं कि भले अभी खासतौर पर डिजिटल लाइफस्टाइल को संबोधित करने वाले कानून ना बने हों, लेकिन डिजिटल शॉपिंग किसी हद तक सुरक्षित और संरक्षित है। यह इसलिए जरूरी भी हो जाता है, क्योंकि देश में हर साल 24-25 फीसदी ऑनलाइन उपभोक्ता बढ़ रहे हैं। उपभोक्ता अधिकार में जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। 

वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी प्राप्त करने का भी अधिकार है। प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर वस्तु और सेवा उपलब्ध कराने का आश्वासन प्राप्त होना, अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवजे की मांग करने का अधिकार भी उपभोक्ता को हासिल है। भारत में उपभोक्ता संरक्षण सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 का कानून मौजूद है, साथ ही यह कहना गलत ना होगा, एक दर्जन से ज्यादा नए कानूनों की रूपरेखा भी बन चुकी है, इसलिए साल 2025 तक भारत का उपभोक्ता बाजार नए और डिजिटल युग के अनुकूल कानूनों के सुरक्षा दायरे में होगा। लेकिन अभी तक जो उपभोक्ता कानून मौजूद हैं, वो भी काफी हद तक देश के डिजिटल उपभोक्ताओं को जरूरी सुरक्षा प्रदान करते हैं।

कानून की नजर में उपभोक्ता
वास्तव में उपभोक्ता वह व्यक्ति होता है, जो अपने इस्तेमाल के लिए कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है। उपभोक्ता अधिकार कानून 2019 इलेक्ट्रॉनिक तरीके से की जाने वाली टेली शॉपिंग और मल्टी-लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के जरिए किए जाने वाले सभी तरह के ऑनलाइन या ऑफलाइन लेनदेन शामिल करता है।

बढ़ रही है जागरूकता
भारत में डिजिटल शॉपिंग, दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले हाल के सालों में बहुत तेजी से बढ़ी है। हालांकि अभी यह बहुत अनियमित और अनियंत्रित है। लेकिन भले हमारा बाजार और हमारे उपभोक्ता बाजार के उपभोक्ता आचरण के मामले में ढीले-ढाले या कहें बहुत स्मार्ट ना हों, लेकिन भारतीय उपभोक्ताओं को अब अपने अधिकार पता हैं। हाल के सालों में इन अधिकारों को जानना इसलिए भी जरूरी हो गया है, क्योंकि लगातार ऑनलाइन सुरक्षा में सेंध बढ़ रही है। भारत दुनिया का वह देश है, जहां सबसे ज्यादा साइबर अटैक होते हैं, साल 2022 की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 39 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ताओं को साल में कम से कम एक बार तो साइबर अटैक का सामना करना पड़ा है। 

रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर दिन 2220 साइबर अटैक होते हैं, जो हर साल औसतन 8 लाख से ऊपर पहुंच रहे हैं। देश के कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं में से 68 फीसदी धोखाधड़ी का शिकार हो चुके हैं। इतनी बड़ी तादाद में साइबर क्राइम दुनिया के किसी और देश में नहीं हो रहे, यह बात भले अलग हो कि भारत में बड़े की जगह छोटे उपभोक्ता अपराध का ज्यादा शिकार हो रहे हैं और खासतौर पर बैंकिंग लेन-देन से संबंधित मामले में। इसलिए ऑनलाइन शॉपिंग करने वाला भारतीय उपभोक्ता हाल के सालों में स्वाभाविक रूप से काफी सजग हुआ है, क्योंकि सुरक्षा में सेंध के साथ-साथ भारतीयों के निजता संबंधी डाटा भी पिछले कुछ सालों में बड़ी तादाद में चोरी हुए हैं। इसलिए उपभोक्ताओं के ऑनलाइन उपभोग चलन पर अपना भविष्य देख रहीं, लाखों भारतीय उपभोक्ता सामान बेचने वाली कंपनियां भी फिलहाल अपने उपभोक्ताओं को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित शॉपिंग का माहौल मुहैय्या करा रही हैं। लेकिन यह भी सही है कि अकेले विक्रेताओं की सजगता से उपभोक्ताओं के हित सुरक्षित नहीं रह सकेंगे। 

सजगता की है जरूरत
भारतीय उपभोक्ताओं को ना सिर्फ अपने सभी उपभोक्ता अधिकारों को जानने की जरूरत है बल्कि ऑनलाइन शॉपिंग करते हुए कैसे सुरक्षित रहें, खुद भी इसकी ट्रेनिंग लेने और लगातार सजग रहने की जरूरत है और ऐसा हो भी रहा है। क्योंकि अगर इस क्षेत्र में सुधार नहीं हुआ, अगर ऑनलाइन शॉपिंग में उपभोक्ताओं को सुरक्षा का एहसास नहीं हुआ तो इसकी अभी जो चमकदार बढ़ोत्तरी जारी है, वह कभी भी रुक सकती है। अगर भारत का कारोबारी ढांचा, ऑनलाइन कारोबार में उपभोक्ताओं को संरक्षण दे सका और उन्हें ठगे जाने से बचा सका। इसके अलावा दिल दिमाग तक उन्हें महसूस कराने में सफल रहा कि सुरक्षित और आजाद ऑनलाइन उपभोक्ता ही भविष्य के ऑनलाइन कारोबार की रीढ़ की हड्डी है, तो आने वाले दिनों में ऑनलाइन उपभोक्ता अब से भी ज्यादा सुरक्षित शॉपिंग कर सकेंगे। फिलहाल जिस तरह से देश में ऑनलाइन कारोबार करने वाली कंपनियां अपने उपभोक्ताओं का ध्यान रख रही हैं, उससे तो लगता है कि खरीदारी इस डिजिटल दौर में भारतीय उपभोक्ता अगर पारंपरिक उपभोक्ताओं से ज्यादा सुरक्षित नहीं हैं तो कम भी नहीं हैं। यह इस बात का इशारा है कि भारत का डिजिटल बाजार, उपभोक्ताओं के महत्व को जानता है और 21वीं सदी में भारतीय उपभोक्ता अब तक के मुकाबले सबसे ज्यादा सुरक्षित उपभोक्ता के रूप में उभरेगा।

बढ़ रहा है ऑनलाइन कारोबार
साल 2020 के बाद से देश में लगातार ऑनलाइन रिटेल बाजार में 8 से 12 अरब डॉलर की सालाना बढ़ोत्तरी हो रही है। बैन एंड कंपनी के मुताबिक साल 2030 तक भारत में ऑनलाइन खरीदारी का आंकड़ा 350 अरब डॉलर के पार पहुंच जाएगा। देश में 19000 से ज्यादा ई-कॉमर्स कारोबारी कंपनियां हैं और साल 2022 के एक सर्वे के मुताबिक लगभग 24 प्रतिशत भारतीय उपभोक्ता हफ्ते में कई बार ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं। साइबर मीडिया रिसर्च द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन के मुताबिक बैंग्लुरु भारत का वह शहर है, जहां सबसे ज्यादा लोग ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं।

रिपोर्ट- राजकुमार ‘दिनकर’

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