देश की आजादी में मुस्लिमों का बराबर योगदान

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By - ?????? ?????? |24 Sept 2014 12:00 AM IST
आतंकवाद के बहाने धार्मिक कट्टरवाद का जहर मुस्लिम समाज की भीतरी सतहों को संकीर्ण बनाने का काम कर रहा है।
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किसी देश का नागरिक देश के लिए जीने-मरने के जन्मजात दायित्व बोध से जुड़ा होता है। फिर चाहे वह किसी भी धर्म व संप्रदाय का हो। भारत की आजादी की लड़ाई में मुस्लिमों का बराबर योगदान रहा है, इस पर किसी को संशय भी नहीं है। इसीलिए मुस्लिम क्रांतिकारी देशभक्तों को भी देशवासी पूरा सम्मान देते हैं। देशभक्ति की इस भावना को नरेंद्र मोदी ने बनारस की एक चुनावी सभा में आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे नजरूल हक के पैर छूकर जताया भी था। गोया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक सवाल के जबाब में यह कहना कि ‘भारतीय मुस्लिम भारत के लिए जिएंगे और भारत के लिए मरेंगे वे अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठन के इशारे पर नाचेंगे नहीं’ उचित उत्तर था। इसके उलट समझदार देशभक्त मुसलमानों को यह विचार भी करने की जरूरत है कि आतंकवाद को विस्तार से आखिरकार मुसलमानों को अब तक मिला क्या ? आतंकवाद की आग में झुलसे देशों में मुस्लिम ही मुस्लिमों के खून के प्यासे हो गए हैं।
आतंकवाद के बहाने धार्मिक कट्टरवाद का जहर मुस्लिम समाज की भीतरी सतहों को संकीर्ण बनाने का काम कर रहा है। यह संकीर्णता मुस्लिम बहुलता वाले देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों के लिए तो घातक साबित हो ही रही है, इस्लाम धर्म से जुड़ी विभिन्न नस्लों को भी आपस में लड़ाने का काम कर रही है। अफगानिस्तान, इराक, मिश्र, नाइजरिया, सीरिया, पाकिस्तान में अल कायदा और आईएस आखिरकार किससे लड़ रहे हैं? यह लड़ाई सिया, सुन्नी, कुर्द और बहावी इस्लाम धर्मावलंबियों में ही तो परस्पर हो रही है। हां इन नस्लों में पनपती धर्मांधता ने इन देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों भी अपनी चपेट में जरूर ले लिया है। इस तथ्य की तस्दीक अमेरिका द्वारा हर साल जारी की जाने वाली ‘धार्मिक स्वतंत्रता आयोग’की रिपोर्ट ने भी की है। रिपोर्ट के अनुसार अल्पसंख्यकों की सबसे ज्यादा दुर्गति आठ देशों में हैं। ये हैं-पाकिस्तान, मिश्र, सीरिया, तजाकिस्तान, नाइजरिया, इराक, तुर्कमेनिस्तान और वियतनाम। इनके अलावा चीन, ईरान, उत्तर कोरिया, म्यांमार, एरीस्ट्रिया, उज्बेकिस्तान, सऊदी अरब और सुडान में भी अल्पसंख्यक असुरक्षा बोध की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। कट्टरपंथी ताकतें बांग्लादेश में प्रभावी तो हैं, लेकिन सरकारी मुस्तैदी के कारण वे वहां रहने वाले हिंदू अल्पसंख्यकों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पा रही हैं। जबकि पाकिस्तान में हालात उल्टे हैं। यहां कट्टरपंथी ईसाई, हिंदू और सिख धर्मावलंबियों के लिए संकट का सबब बने हुए हैं।
ईशनिंदा कानून के चलते यहां सबसे ज्यादा उत्पीड़न होता है। इसी कारण यहां के 82 प्रतिशत हिंदू तत्काल पाकिस्तान छोड़ने को तैयार हैं। रिपोर्ट के मुताबिक यहां सबसे ज्यादा दर्दनाक स्थिति हिंदुओं की है। हालात यहां शिया मुसलिमों के भी दुरुस्त नहीं हैं। अलबत्ता पाकिस्तान शियाओं को सुरक्षा मुहैया इसलिए कराता हैं क्योंकि ईरान पाकिस्तानी शियाओं की मजबूती से पैरवी करता है। पाक को इस लाचारी का सामना इसलिए करना पड़ता हैं, क्योंकि ईरान अरबों रुपये पाक को मदद के रूप में देता है। लिहाजा अपनी ही भिन्न नस्लों को आपस में लड़ाने वाले अलकायदा और आईएस यह नहीं कर सकते कि दुनिया के सभी मुसलमान और मुस्लिम समाज एक हैं। वैश्विक पहल पर यह नारा इसलिए खोखला हो चुका है, क्योंकि मुस्लिम कौमों की आपसी लड़ाई ने कई देशों के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है। शिया तथा सुन्नी के बीच जमीन-असमान का भेद है। बहावी,बोहरा,मेनन और अहमदियों में भिन्नताएं हैं। यही वजह है कि दुनिया के मुसलमानों मे रोटी व्यवहार सबके साथ होता है। नवाज पढ़ने के अवसरों में समानता है। किंतु बेटी का विवाह हिंदुओं की ही तरह अपनी ही जाति, पंथ या बिरादरी में किया जाता है। भेद की इस खाई को पाटने के बजाय आतंकवादी अपास में लड़-मरकर और बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इसलिए आतंकवाद का विस्तार अमानुषिक होने के साथ मानवता के लिए बड़ा खतरा है।
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अल जवाहरी ने ताजा विडियो में कहा है कि भारत के गुजरात और कश्मीर में कथित दमन का सामना कर रहे मुसलमानों को वे मुक्ति दिलाना चाहते हैं। वैसे तो जवाहरी के इस बयान से भारतीय मुस्लिमों का लेना-देना नहीं हैं, लेकिन फिर भी वे अलकायदा आईएस और कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों से पूछ सकते हैं कि हाल ही में कुदरत ने जम्मू-कश्मीर में बाढ़ के रूप में जो आपदा बरपाई, उसकी भरपाई वे किस रूप में कर सकते हैं? बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो से भी पूछा जा सकता है, जो कह रहे हैं।
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