खुशखबरी: अब इंटरनेट के डाटा पर नहीं लगेगा लगाम, TRAI ने कही ये बड़ी बात

हर ग्राहक को डाटा बिना किसी भेदभाव के साथ उपलब्ध होना चाहिए।

दिसंबर 2014: एयरटेल ने सबसे पहले ऐसा प्लान पेश किया था जिसके अंतर्गत कॉल्स या वॉयस ओवर इंटरनेट के लिए भारत में एक्स्ट्रा चार्ज किया जाने लगा। एयरटेल के इस प्लान का विरोध किया गया और एक हफ्ते बाद ही एयरटेल को प्लान वापस लेना पड़ा।

19 जनवरी 2015: टेलिकॉम डिपार्टमेंट ने स्टेकहोल्डर्स की कमिटी बनाई। इसके अंतर्गत एप निर्माता, टेलीकॉम कंपनियां, सिविल सोसाइटी और मल्टी स्टेकहोल्डर एडवाइजरी ग्रुप थे। इस कमिटी को भारत में नेट न्यूट्रैलिटी की जांच करने के लिए बनाया गया था।
27 मार्च 2015: नेट न्यूट्रैलिटी पर पहली बार प्रतिक्रियाएं मांगी गईं। इसके परिणामस्वरूप 1 मिलियन रिस्पांस पोस्ट किए गए।
अप्रैल 2015: एयरटेल ने जीरो रेटिंग को पेश किया। इसके अंतर्गत फ्लिपकार्ट जैसी एप्स को एयरटेल नेटवर्क पर यूजर्स की ओर से इस्तेमाल किए गए डाटा की राशि अदा करने की अनुमति दी गई थी। कंपनियों ने अगले ही दिन इस प्लान को भी बंद करा दिया था।
मई 2015: DoT कमिटी ने रिपोर्ट सब्मिट की। इसमें नेट न्यूट्रैलिटी की जरुरत के बारे में कहा गया था
30 मई 2015: ट्राई ने प्री-कंसल्टेशन पेपर्स निकाले। इसका लक्ष्य नेट न्यूट्रैलिटी से जुड़े मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना था, जिससे इस मुद्दे में आगे बढ़ा जा सके।
9 दिसंबर 2015: ट्राई ने डाटा सेवाओं के लिए अलग-अलग कीमतों पर परामर्श की शुरुआत की।
8 फरवरी 2015: ट्राई ने दिशा-निर्देश जारी किए। इसके अंतर्गत ट्राई ने जीरो रेटिंग प्लान और फेसबुक फ्री बेसिक्स को बैन किया था।
3 मार्च 2016: DoT ने ट्राई से नेट न्यूट्रैलिटी के मुद्दे पर राय मांगी।
19 मार्च 2016: ट्राई ने फ्री डाटा पर परामर्श की शुरुआत की।
30 मई 2016:
ट्राई को नेट न्यूट्रैलिटी पर प्री-कंसल्टेशन पेपर मिले।
19 दिसंबर 2016: ट्राई ने इस मुद्दे पर DoT को परामर्श दिया, जिसमें ग्रामीण भारतीय उपभोक्ताओं को कम से कम राशि में फ्री डाटा उपलब्ध कराए जाने की बात कही गई थी। इसके बाद DoT ने ट्राई को पेपर्स दोबारा देखने के लिए वापस भेज दिए थे।
4 जनवरी 2017: ट्राई ने नेट न्यूट्रैलिटी पर फुल कंसल्टेशन पेपर दिए। इसमें बताया गया की भारत में किस तरह नेट न्यूट्रैलिटी को लागू किया जा सकता है।
28 नवंबर 2017: ट्राई ने नेट न्यूट्रैलिटी को भारत में लाने की बात।
इस मुद्दे पर अब तक टेलिकॉम नियामक, टेलिकॉम मंत्रालय और तमाम टेलिकॉम कंपनियां अपनी राय सामने रख चुकी हैं लेकिन फिर भी इसके सार्थक परिणाम सामने नहीं आ सके हैं। हालांकि ग्राहकों के फायदे के लिए इसे जल्द सुलझाया जाना बेहतर होगा।
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