Sprouts Project: अंतरिक्ष में मेथी-मूंग उगाकर ‘किसान’ बने शुभांशु शुक्ला, वैज्ञानिकों को मिलेगी नई दिशा

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने ISS पर मेथी और मूंग के बीज उगाकर ‘स्पेस फार्मिंग’ का अध्ययन किया। जानिए उनके प्रयोगों से कैसे भारतीय विज्ञान को मिल रहा है नया आयाम।

Updated On 2025-07-09 20:30:00 IST

अंतरिक्ष में बीज उगाकर ‘किसान’ बने शुभांशु शुक्ला, स्प्राउट्स प्रोजेक्ट से मिलेगी नई दिशा। 

Space Farming Research: भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में 12 दिन पूरे कर लिए। इस दौरान उन्होंने न केवल विज्ञान की प्रयोगशाला, बल्कि ‘अंतरिक्ष में खेती’ का मैदान भी तैयार किया। शुक्ला ने मेथी और मूंग के बीजों का अंकुरण (Sprouting) कर उनके शुरुआती विकास पर बारीकी से अध्ययन किया। उनका यह प्रयोग भारतीय वैज्ञानिकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

अंतरिक्ष में उगाए स्प्राउट्स: विज्ञान और कृषि का संगम

  • शुभांशु शुक्ला का यह प्रयोग भारतीय वैज्ञानिकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। ‘स्प्राउट्स प्रोजेक्ट’ को भारत में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय धारवाड़ के डॉ. रविकुमार होसामणि और आईआईटी धारवाड़ के डॉ. सुधीर सिद्धपुरेड्डी लीड कर रहे हैं।
  • शुभांशु शुक्ला ने स्प्राउट्स प्रोजेक्ट के तहत बताया कि ISS में ले जाए गए बीजों को नमी और नियंत्रित वातावरण में रखा और उनके अंकुरण की प्रक्रिया को बारीकी से मॉनिटर किया।
  • एक्सिओम स्पेस के मुताबिक, पृथ्वी पर लौटने के बाद इन बीजों की अगली पीढ़ियों को उगाकर आनुवंशिक बदलाव (Genetic Changes), सूक्ष्मजीवी पर्यावरण (Microbial Ecosystem) और पोषण प्रोफाइल (Nutritional Profile) का अध्ययन किया जाएगा।

माइक्रोग्रैविटी में स्टेम सेल से ब्रेन रिसर्च तक कई रिसर्च

शुभांशु शुक्ला ने एक्सिओम स्पेस की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. लूसी लोव से बातचीत में बताया कि वे अंतरिक्ष में वे कई अन्य वैज्ञानिक प्रयोग भी कर रहे हैं। बताया कि अंतरिक्ष स्टेशन पर माइक्रोग्रैविटी में काम करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन वैज्ञानिकों के लिए नई दिशा खोलने वाला है।

शुभांशु शुक्ला द्वारा किए जा रहे प्रमुख प्रयोग

  • स्टेम सेल पर अध्ययन: यह जांचा जा रहा है कि क्या सप्लीमेंट्स लेने से चोट की रिकवरी तेज होती है।
  • अंतरिक्ष में ब्रेन पर असर: माइक्रोग्रैविटी में मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और मनोवैज्ञानिक बदलावों का अध्ययन।
  • बीजों का सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में विकास: यह प्रयोग भविष्य में स्पेस फार्मिंग को व्यावहारिक बनाने में मदद कर सकता है।
  • शुक्ला ने कहा कि उन्हें गर्व है कि वे ISS और भारतीय वैज्ञानिकों के बीच एक सेतु की तरह कार्य कर रहे हैं।

25 जून को हुई थी लॉन्चिंग, 10 जुलाई के बाद वापसी 

  • ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, एक्सिओम-4 मिशन के चार सदस्यीय क्रू का हिस्सा हैं। जो 25 जून को नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया था। 10 जुलाई 2025 के बाद वे पृथ्वी पर वापसी करेंगे। सही तारीख मौसम पर निर्भर करेगी।
  • स्पेसक्राफ्ट का लैंडिंग फ्लोरिडा तट के पास होगी। नासा ने अभी तक मिशन को ISS से अलग करने की तारीख की औपचारिक घोषणा नहीं की है।

भारतीय वैज्ञानिकों के लिए खुलेंगे नए रास्ते
शुक्ला का यह मिशन भारत के लिए विज्ञान, तकनीक और वैश्विक सहयोग की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है। उन्होंने कहा, मुझे गर्व है कि ISRO दुनियाभर के वैज्ञानिक संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रहा है। इस मिशन से भविष्य में भारतीय वैज्ञानिकों को माइक्रोग्रैविटी में नए प्रयोग करने का मौका मिलेगा।

स्पेस बायोलॉजी और भविष्य की खेती के लिए उम्मीद
विशेषज्ञों के अनुसार, अंतरिक्ष में पौधों की वृद्धि और उनके जेनेटिक रिस्पॉन्स को समझना भविष्य के मंगल, चंद्रमा या दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक है। शुभांशु शुक्ला द्वारा किए गए ये प्रयोग आने वाले वर्षों में स्पेस कॉलोनी फूड सप्लाई, क्लाइमेट रेज़िलियंट क्रॉप्स, बायो-रीजनरेशन सिस्टम जैसे क्षेत्रों में मददगार साबित होंगे।

अंतरिक्ष में खेती की शुरुआत – भारत के लिए गर्व की बात
ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का यह 14 दिवसीय मिशन सिर्फ अंतरिक्ष अन्वेषण का नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक प्रतिभा और वैश्विक सहयोग की शक्ति का प्रतीक बन गया है। अंतरिक्ष में उगाई गई मेथी और मूंग की कोंपलों से शुरू हुआ यह ‘खेती’ प्रयोग शायद एक दिन अंतरिक्ष में मानव जीवन की बुनियाद बन जाए।

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