इलाहाबाद हाईकोर्ट का सख्त निर्देश: स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ आपत्तिजनक वीडियो 48 घंटे में हटाने का आदेश
यह निर्देश गोरखपुर के एक यूट्यूबर संपादक द्वारा चलाई जा रही अपमानजनक सामग्री, जिसमें स्वामी जी की दिव्यांगता पर भी टिप्पणी की गई थी, के खिलाफ दायर याचिका पर आया है। कोर्ट ने इससे पहले दिव्यांगों के लिए कार्य करने वाले स्टेट कमिश्नर को भी यूट्यूबर के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया था। मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को है।
कोर्ट ने मेटा और गूगल को यूआरएल के लिंक 48 घंटे के भीतर यह हटाने का आदेश दिया है।
लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट के कुलपति स्वामी राम भद्राचार्य के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चल रहे आपत्तिजनक वीडियो को लेकर एक कड़ा और तत्काल प्रभाव से लागू होने वाला निर्देश जारी किया है। कोर्ट ने मेटा प्लेटफॉर्म्स इंक (जो फेसबुक और इंस्टाग्राम का संचालन करती है) और गूगल एलएलसी (जो यूट्यूब का संचालन करती है) को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए यूआरएल लिंक के आधार पर स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ चल रही सभी कथित अपमानजनक और आपत्तिजनक सामग्री को अगले 48 घंटे के भीतर हटा दें।
न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश शरद चंद्र श्रीवास्तव व अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर दिया। मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 11 नवंबर की तारीख नियत की है।
यूट्यूबर पर अपमानजनक सामग्री चलाने का आरोप
याचिकाकर्ताओं ने अपनी अर्जी में कोर्ट को बताया कि गोरखपुर के एक यूट्यूबर संपादक शशांक शेखर अपने यू ट्यूब चैनल के साथ-साथ फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे अन्य इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ लगातार अपमानजनक वीडियो चला रहे थे। यह वीडियो बीते 29 अगस्त से लगातार प्रसारित हो रहा था। याचिका में विशेष रूप से एक वीडियो का जिक्र किया गया जिसका शीर्षक "राम भद्राचार्य पर खुलासा -16 साल पहले क्या हुआ था" है।
याचिका में यह भी कहा गया कि स्वामी रामभद्राचार्य बचपन से ही आंखों से दिव्यांग हैं, लेकिन यह यूट्यूबर उनकी दिव्यांगता को लेकर भी अवमाननाजनक कंटेंट्स वाला वीडियो चला रहा है। याचिकाकर्ताओं ने संबंधित यूट्यूबर और इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्मों से वीडियो हटाने का आग्रह किया था, लेकिन जब न तो यूट्यूबर ने वीडियो हटाया और न ही संबंधित प्लेटफार्मों ने अपने स्तर से कोई कार्रवाई की, तब उन्हें हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
सरकारों से नियमन बनाने की मांग
याचिकाकर्ताओं ने अपनी अर्जी में एक व्यापक और दूरगामी मांग भी रखी है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से विभिन्न इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्मों पर लगाम लगाने के लिए स्पष्ट और कठोर नियम बनाने और उनका सख्ती से पालन सुनिश्चित कराने का आग्रह किया है।
कोर्ट की पिछली कार्रवाई
यह पहली बार नहीं है जब कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया है। हाईकोर्ट ने बीते 17 सितंबर को ही याचिका पर संज्ञान लेते हुए फेसबुक, इंस्टाग्राम, गूगल और यू ट्यूब को नोटिस जारी किया था। उस समय कोर्ट ने इन मीडिया प्लेटफॉर्मों के शिकायत निस्तारण अधिकारियों को निर्देश दिया था कि उन्हें सप्ताह भर में स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ दिखाये जा रहे वीडियो के विरुद्ध प्रत्यावेदन दिया जाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि शिकायत मिलते ही तत्काल उक्त आपत्तिजनक वीडियो हटाने की कार्यवाही की जाए।
दिव्यांग आयोग को भी कार्रवाई के निर्देश
कोर्ट ने इस मामले में दिव्यांगता से जुड़े पहलू पर भी संज्ञान लिया था। कोर्ट ने कहा था कि पहली नजर में इन अपमानजनक कंटेंट्स के खिलाफ दिव्यांगों के लिए कार्य करने वाले स्टेट कमिश्नर की ओर से कार्यवाही करने का मामला बनता है। इसलिए, 17 सितंबर को ही कोर्ट ने दिव्यांगों के लिए कार्य करने वाले स्टेट कमिश्नर को भी फेसबुक और इंस्टाग्राम चैनल चलाने वाले संपादक शशांक शेखर से स्पष्टीकरण मांगने और उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्यवाही करने का आदेश दिया था।