Ujjain Lok Sabha Seat Ground Report: उज्जैन में भाजपा प्रत्याशी फिरोजिया को लेकर लोगों में असंतोष, फिर भी बढ़त में बीजेपी

Ujjain Lok Sabha Seat Ground Report: मध्य प्रदेश के उज्जैन लोकसभा सीट में कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। यहां चौथे चरण में 13 मई को वोटिंग होगी। भाजपा ने अनिल फिरोजिया और कांग्रेस ने महेश परमार पर भरोसा जताया है।

Updated On 2024-04-17 12:51:00 IST
Ujjain Lok Sabha Seat Ground Report

दिनेश निगम ‘त्यागी’
Ujjain Lok Sabha Seat Ground Report: महाकाल की नगरी उज्जैन विश्व प्रसिद्ध है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव यहां से आते हैं। इस लिहाज से उज्जैन लोकसभा सीट के चुनाव पर सबकी नजर है। भाजपा की ओर से सांसद अनिल फिरोजिया फिर मैदान में हैं जबकि कांग्रेस ने तराना विधानसभा सीट के अपने विधायक महेश परमार को प्रत्याशी बनाया है। दोनों पहले तराना विधानसभा के चुनाव में आमने-सामने रह चुके हैं। परमार से फिरोजिया हार भी चुके हैं। महापौर के चुनाव में भी परमार ने भाजपा को अच्छी टक्कर दी थी।  दोनों का प्रचार गति पकड़ रहा है। फिरोजिया ने पिछला चुनाव लगभग पौने 4 लाख वोटों के अंतर से जीता था, लेकिन इस बार उनके प्रति कुछ असंतोष है। मुख्यमंत्री डॉ यादव के सामने प्रत्याशी को पहले से ज्यादा अंतर से चुनाव जीतने की चुनौती है। 

इसलिए मजबूत हैं भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी
उज्जैन में भाजपा-कांग्रेस के दो महाबलियों के बीच तगड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। ये हैं भाजपा के सांसद अनिल फिरोजिया और कांग्रेस के विधायक महेश परमार। तराना विधानसभा सीट में पहले भी दोनों आमने-सामने रह चुके हैं। अनिल फिरोजिया पहले तराना से विधायक थे लेकिन दूसरी बार उन्हें कांग्रेस के महेश परमार ने हरा दिया था। इसके बाद महेश लगातार दूसरी बार तराना से विधायक बने और अब कांग्रेस से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। फिरोजिया की राजनीतिक पृष्ठभूमि मजबूत है। पहले उनके पिता विधायक थे। इसके बाद उनके परिवार की सदस्य रेखा फिरोजिया विधायक रहीं। अनिल खुद पहले विधायक रहे और अब सांसद हैं। महेश परमार की पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले वे अनिल फिरोजिया को विधानसभा चुनाव हरा चुके हैं और अब दूसरी बार विधायक हैं। उन्होंने उज्जैन महापौर का चुनाव भी मजबूती से लड़ा है। इस लिहाज से दोनों प्रत्याशी मजबूत हैं।

मुख्यमंत्री की पसंद नहीं थे फिरोजिया
उज्जैन से पहली लिस्ट में अनिल फिरोजिया का नाम घोषित न होने पर उनका टिकट काटे जाने की अटकलें लगाई जाने लगी थीं। चर्चा थी कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव उन्हें नहीं चाहते। हालांकि बाद में उनका नाम घोषित हो गया। महेश परमार विधानसभा में फिरोजिया को हरा चुके थे। दो बार से लगातार विधायक हैं और महापौर के चुनाव में भी भाजपा को अच्छी टक्कर दी थी। इसलिए कांग्रेस ने भी लोकसभा चुनाव के लिए महेश परमार को ही उपयुक्त समझा। उज्जैन में दोनों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री डॉ यादव तो यहां लगातार आते ही हैं, भाजपा के कई अन्य दिग्गज यहां प्रचार के लिए आ चुके हैं।

राष्ट्रीय, प्रादेशिक मुद्दों पर हो रहा चुनाव
मुख्यमंत्री का गृह क्षेत्र होने के कारण उज्जैन लोकसभा सीट हाईप्रोफाइल हो गई है। इसलिए यहां का चुनाव राष्ट्रीय और प्रादेशिक मुद्दों पर ही लड़ा जा रहा है। भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे कर रखा है। राम मंदिर और कश्मीर से धारा 370 हटाने की याद दिलाई जा रही है। यह प्रचार भी हो रहा है कि अब मथुरा और काशी की बारी है। यह मोदी और भाजपा के रहते ही संभव हो सकता है। केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे कामों का प्रचार किया जा रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस के पास भी मुद्दे कम नहीं हैं। बताया जा रहा है कि सत्ता में आने पर कांग्रेस ने किस तरह किसानों का कर्ज माफ करने की शुरुआत की, जिस पर भाजपा की सत्ता आने पर ब्रेक लग गया। महिलाओं को प्रतिवर्ष एक लाख रुपए देने के वादे के साथ घोषणा पत्र में शामिल 5 न्याय और 24 गारंटियों का प्रचार किया जा रहा है। महंगाई और बेरोजगारी पर भाजपा सरकारों की नाकामी गिनाई जा रही है। गैस सिलेंडर और पेट्रोल-डीजल के दाम याद कराए जा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा सरकार जांच एजेंसियों का अपने एजेंट की तरह इस्तेमाल कर लोकतंत्र को खत्म कर रही है।

ज्यादा विधानसभा सीटें जीतीं, हार गई लोकसभा
2018 की तुलना में कांग्रेस को विधानसभा के 2023 में हुए चुनाव में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है जबकि भाजपा ने बढ़त बनाई है। 2018 में लोकसभा क्षेत्र की 8 में से 5 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं जबकि भाजपा को 3 पर ही संतोष करना पड़ा था लेकिन 2023 में भाजपा ने 8 में से 6 सीटें जीत कर बाजी मार ली। कांग्रेस को महज 2 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इनमें महिदपुर सीट कांग्रेस ने महज 290 वोटों के अंतर से जीती। जबकि तराना में जीत का अंतर 2183 वोट था। इसके विपरीत भाजपा का 6 सीटों में जीत का अंतर 1 लाख 79 हजार 624 वोट रहा। इस बड़े अंतर को पाटना कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि कांग्रेस ने 2018 में जब 8 में से 5 विधानसभा सीटें  जीती थीं, उसके 4 माह बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पौने 4 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। अब विधानसभा में भी उसे बढ़त हासिल है और भाजपा के पक्ष में राम लहर भी है।

भाजपा के पक्ष में रहा सीट का राजनीतिक मिजाज
उज्जैन लोकसभा सीट का भौगोलिक एरिया मोटे तौर पर उज्जैन जिले में ही है क्योंकि जिले की सभी 7 सीटें इस लोकसभा क्षेत्र के तहत आती हैं। लेकिन यह सीट रतलाम जिले को भी छूती है। जिले की एक विधानसभा सीट आलोट भी उज्जैन के अंतर्गत है। आलोट में भाजपा का कब्जा है। उज्जैन जिले की विधानसभा सीटें नागदा-खाचरोद, महिदपुर, तराना, घटिया, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण और बड़नगर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं। उज्जैन जिले की महिदपुर और तराना कांग्रेस के पास हैं जबकि शेष पांच सीटों नागदा-खाचरोद, घटिया, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण और बड़नगर भाजपा के कब्जे में हैं। जहां तक उज्जैन सीट के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो 1991 से अब तक हुए 8 चुनाव में से सिर्फ एक बार 2009 में ही कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू लगभग 16 हजार वोटों के अंतर से जीते हैं। शेष 7 चुनाव भाजपा की झोली में गए। 1991 से 2004 तक लगातार 5 लोकसभा के चुनाव सत्यनारायण जटिया ने जीते लेकिन 2004 में हार के बाद उन्हें फिर मौका नहीं मिला। 2014 में भाजपा के चिंतामणि मालवीय और 2019 में इसी पार्टी के अनिल फिरोजिया ने चुनाव जीता। 

जातीय समीकरणों का नहीं पड़ता असर
उज्जैन लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी इसी वर्ग के होने के कारण यहां जातीय आधार पर लामबंदी दिखाई नहीं पड़ती। उज्जैन महाकाल की नगरी है, इस कारण भी लोग जातीय राजनीति को महत्व नहीं देते। वैसे भी विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरणों का महत्व ज्यादा होता है लोकसभा क्षेत्र बड़ा होने के कारण ये समीकरण बेअसर हो जाते हैं। सीट में दलित वर्ग के मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा है। बैरवा और बलाई समाज का झुकाव हार-जीत में मुख्य भूमिका निभाता है। पिछड़ा वर्ग और ब्राह्मण बड़ी तादाद में हैं। ब्राह्मणों का रुझान भाजपा की ओर रहता है जबकि पिछड़ा वर्ग बटा नजर आता है। कांग्रेस के महेश परमार का पिछड़े वर्ग की कुछ जातियों में अच्छा संपर्क है। उसे इसका लाभ मिल सकता है। 2009 में कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग का वोट लेकर ही जीत हासिल कर ली थी। अन्य अधिकांश वर्ग भाजपा के पक्ष में हैं।

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