हरियाणा में 10 IMT बनाने पर संकट: भूमि खरीद नीति को हाईकोर्ट में चुनौती, सरकार से मांगा जवाब
याचिका में आरोप है कि यह पॉलिसी किसानों के हितों के खिलाफ है और 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इसमें अनिवार्य प्रावधानों की अनदेखी की गई है।
भूमि खरीद नीति को हाईकोर्ट में चुनौती।
हरियाणा सरकार की 10 नए इंडस्ट्रियल मॉडल टाउनशिप (IMT) बनाने की महत्वाकांक्षी योजना पर फिलहाल ब्रेक लग गया है। दरअसल हरियाणा सरकार की भूमि खरीद नीति 2025 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर 23 सितंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह नीति किसानों के हितों के खिलाफ है और इसमें कई गंभीर अनियमितताएं हैं।
जींद जिले के अलेवा गांव के एक किसान सुरेश कुमार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस नीति को रद्द करने की मांग की है। सरकार ने इस नीति के तहत 10 IMT सहित विभिन्न परियोजनाओं के लिए 35,500 एकड़ उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण करने का प्रस्ताव रखा था। यह एक बड़ा झटका है, क्योंकि सरकार इस भूमि खरीद को ई-भूमि पोर्टल के माध्यम से पूरा करने की योजना बना रही थी।
कोर्ट में महत्वपूर्ण तर्क प्रस्तुत किए
याचिकाकर्ता और उनके वकील ने कोर्ट में इस नीति के खिलाफ कई महत्वपूर्ण तर्क प्रस्तुत किए हैं। उनका कहना है कि यह नीति "द राइट टू फेयर कॉम्पेनसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्वीजिशन, रिहेबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट एक्ट, 2013" का सीधा उल्लंघन है। 2013 के इस केंद्रीय कानून में भूमि अधिग्रहण से पहले कुछ अनिवार्य प्रावधानों का पालन करना जरूरी है, जिनमें ये प्रमुख हैं।
• सामाजिक प्रभाव आकलन (Social Impact Assessment): यह सुनिश्चित करना कि भूमि अधिग्रहण का समाज और समुदाय पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
• ग्राम सभा के साथ परामर्श: स्थानीय ग्राम सभाओं से सलाह लेना और उनकी सहमति प्राप्त करना।
• पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment): यह जांच करना कि परियोजना से पर्यावरण को क्या नुकसान होगा।
याचिका में आरोप है कि हरियाणा की नई पॉलिसी में इन सभी महत्वपूर्ण कदमों को नजरअंदाज किया गया है। इसके बजाय, सरकार ने ई-भूमि पोर्टल के माध्यम से सीधे किसानों से जमीन खरीदने का विकल्प चुना है, जो कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन माना जा रहा है।
मुआवजे और भ्रष्टाचार पर गंभीर आरोप
यह नीति मुआवजे की दर को लेकर भी विवादों में है। याचिकाकर्ता ने बताया कि नई नीति के तहत जमीन के लिए अधिकतम मुआवजे की दर कलेक्टर रेट के 3 गुना तक तय की गई है, जो कि 2013 के केंद्रीय कानून में निर्धारित प्रावधानों से बहुत कम है। केंद्रीय कानून में मुआवजे की दर कहीं ज्यादा है, और नई नीति इस मामले में किसानों को उचित मुआवजा देने में विफल साबित हो सकती है।
इसके साथ ही, याचिका में एग्रीगेटर्स या बिचौलियों की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं। इस नीति के तहत ये बिचौलिए 1% सुविधा शुल्क के हकदार होंगे, जिससे भ्रष्टाचार बढ़ने की संभावना है। याचिकाकर्ता का कहना है कि एक ही क्षेत्र में अलग-अलग भू-मालिकों को अलग-अलग मुआवजा मिल सकता है, जिससे असंतोष और कानूनी विवाद पैदा होंगे।
किसानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
याचिका में इस नीति को संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी बताया गया है। किसानों का आरोप है कि इस नीति में पुनर्वास या आजीविका सहायता के लिए कोई स्पष्ट तंत्र नहीं है। किसानों को मुआवजे के रूप में केवल गैर-मौद्रिक आवंटन मिल सकता है, जिससे उन्हें अपनी आजीविका चलाने में कठिनाई हो सकती है।
याचिका में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि सरकार जिस 35,500 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करना चाहती है, वह सबसे उपजाऊ भूमि है। इस बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण से न केवल कृषि को नुकसान होगा, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय ताने-बाने पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से इस नीति को रद्द करने और सरकार को इसके तहत कोई भी कार्रवाई करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की है।
23 सितंबर को होगी अगली सुनवाई
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस अनुपेंद्र सिंह ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा की बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई कर हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया है। सरकार को इस मामले में अपना जवाब 23 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई से पहले देना होगा। हाईकोर्ट के इस कदम से सरकार की 10 आईएमटी बनाने की योजना पर फिलहाल रोक लग गई है, और अब यह मामला कानूनी पेंच में फंस गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार हाईकोर्ट में इस पॉलिसी का बचाव कैसे करती है और क्या किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए कोई नया रास्ता निकाला जाता है।