दलित वोट बैंक: हरियाणा में कांग्रेस-भाजपा की सियासी जंग तेज, खट्टर ने संभाली कमान

कांग्रेस'संविधान यात्रा'से दलित समुदाय तक पहुंच बना रही है तो वहीं भाजपा ने केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में 'हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान' कार्यक्रम शुरू किया है।

Updated On 2025-05-21 15:28:00 IST

सम्मेलन के दौरान लोगों से बातचीत करते सुदेश कटारिया। 

हरियाणा में दलित वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस और भाजपा के बीच सियासी जंग तेज हो गई है। एक ओर जहां कांग्रेस इन दिनों 'संविधान यात्रा' निकालकर दलित समुदाय को लुभाने में लगी है, वहीं भाजपा ने केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में 'हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान' कार्यक्रम शुरू किया है। इस महत्वपूर्ण मुहिम को सफल बनाने की जिम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर ने अपने मुख्य मीडिया सलाहकार सुदेश कटारिया को सौंपी है, जो खुद हरियाणा भाजपा के एक प्रमुख दलित चेहरा हैं।

सुदेश कटारिया भाजपा की दलित रणनीति का अहम मोहरा

इस बार के विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव के नतीजों से सीख लेते हुए भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने दलित सम्मेलनों की कमान मनोहर लाल खट्टर को सौंपी थी। खट्टर ने इस जिम्मेदारी के लिए सुदेश कटारिया पर भरोसा जताया है। कटारिया का नाम हरियाणा भाजपा के बड़े दलित नेताओं में शुमार है। वह 2014 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे और तब से लगातार पार्टी में एक सक्रिय कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रहे हैं।

पिछले पांच महीनों में रोहतक, कुरुक्षेत्र और नीलोखेड़ी में हुए बड़े आयोजनों में खुद केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने शिरकत की। वहीं, अन्य जिलों में लगातार चल रहे छोटे-बड़े आयोजनों की कमान सुदेश कटारिया ने संभाली हुई है। इसी क्रम में 23 और 24 मई को यमुनानगर के दर्जनों स्थानों पर 'संविधान सम्मान, स्वाभिमान समारोह' का आयोजन होने जा रहा है, जिसमें सुदेश कटारिया मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे। इस आयोजन में हरियाणा अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष वीरेंद्र बड़गूर्जर को भी आमंत्रित किया गया है।

खट्टर की अगुवाई में भाजपा सरकार ने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए

लोकसभा चुनाव में मिले नतीजों ने हरियाणा में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को विधानसभा चुनाव के लिए दलित सम्मेलन के प्रयोग पर सोचने पर मजबूर कर दिया। इन सम्मेलनों के जरिए दलित समुदाय को अपने पाले में लाने का जिम्मा मनोहर लाल खट्टर को दिया गया। इसकी मुख्य वजह यह थी कि खट्टर ने साढ़े नौ साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और उनकी अगुवाई में भाजपा सरकार ने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए। पार्टी का यह प्रयोग पूरी तरह से सफल रहा, और हरियाणा में तीसरी बार भाजपा की सरकार बन पाई। यह प्रयोग दर्शाता है कि भाजपा दलित वोट बैंक की अहमियत को समझ चुकी है और उसे साधने के लिए प्रभावी रणनीति पर काम कर रही है।

दलितों को साधने की तीन बड़ी सियासी वजहें

भाजपा और कांग्रेस दोनों द्वारा दलित वोट बैंक पर इतना फोकस करने के पीछे कई महत्वपूर्ण सियासी कारण हैं:

1. कुल वोट बैंक का 21% हिस्सा और निर्णायक सीटें: हरियाणा में कुल मतदाताओं का 21% हिस्सा दलित समुदाय का है। राज्य में विधानसभा की 17 सीटें दलित वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा, प्रदेश में करीब 35 ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां दलित वोटरों का सीधा प्रभाव है और वे किसी भी पार्टी की जीत या हार में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। कांग्रेस भी इस वर्ग को साधने के लिए 'संविधान यात्रा' कर रही है, ऐसे में भाजपा नहीं चाहती कि दलित वोटर उससे दूर हों, इसलिए 'हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान' मुहिम चला रही है।

2. कांग्रेस के 'संविधान बदलने' के दुष्प्रचार का असर: लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 'आरक्षण छीनने और संविधान बदलने' का मुद्दा जोर-शोर से उठाया, जिसका हरियाणा के दलित वोटरों पर बड़ा असर पड़ा। यही वजह है कि दलित वोटर भाजपा से दूर हो गए। विधानसभा चुनाव में भी राहुल गांधी ने अपनी रैलियों में संविधान दिखाकर दलितों के आरक्षण खत्म होने की बात कही थी, लेकिन भाजपा ने इन सम्मेलनों के जरिए कांग्रेस की बातों को झूठा साबित करने का प्रयास किया और दलित समुदाय को आश्वस्त करने की कोशिश की कि संविधान और आरक्षण सुरक्षित हैं।

3. लोकसभा चुनाव की हार से मिले सबक: लोकसभा चुनाव में 10 में से 5 सीटें हारने के बाद भाजपा की समीक्षा बैठक में यह सामने आया कि जाट और दलित वोटर उनके खिलाफ एकजुट हो गए थे। इसी एकजुटता के कारण भाजपा को रोहतक और सिरसा जैसी सीटों पर ढाई से साढ़े तीन लाख वोटों से एकतरफा हार मिली। सोनीपत सीट भी महज 22 हजार वोटों के अंतर से गंवानी पड़ी। कुरुक्षेत्र, गुरुग्राम और भिवानी-महेंद्रगढ़ जैसी सीटें भी भाजपा हारते-हारते बची। भाजपा अब इस एकजुटता को तोड़ने और दलित समुदाय को फिर से अपने पाले में लाने की पूरी कोशिश कर रही है ताकि आगामी विधानसभा चुनावों में ऐसी स्थिति दोबारा न हो।

हरियाणा में भाजपा की तीसरी बार सत्ता वापसी

हरियाणा में भाजपा लगातार दो बार से सरकार चला रही है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 90 में से 47 सीटें जीतकर अकेले दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। 2019 में पार्टी 40 सीटों पर सिमट गई थी, लेकिन जननायक जनता पार्टी (JJP) के 10 विधायकों के समर्थन से फिर से सरकार बनाने में कामयाब रही। इस चुनाव में भाजपा ने 48 सीटों पर प्रचंड जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया है, लेकिन दलित वोट बैंक को लेकर उसकी चिंता बरकरार है, जिसके समाधान के लिए यह विशेष मुहिम चलाई जा रही है।

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