Lok Sabha Elections: रोहतक सीट बचाने के लिए बदलनी होगी रणनीति, जाटलैंड में सेंध बिना नहीं चलेगा भाजपा का काम

हरियाणा की रोहतक लोकसभा सीट को बचाने के लिए भाजपा ने एक बार फिर डॉ. अरविंद शर्मा पर दांव खेला है। लेकिन यह सीट बचाने के लिए भाजपा को रणनीति बदलनी होगी।

Updated On 2024-03-26 22:10:00 IST
भूपेंद्र सिंह हुड्डा। दीपेंद्र हुड्डा। डॉ. अरविंद शर्मा। 

नरेन्द्र वत्स, रेवाड़ी: भाजपा ने रोहतक लोकसभा सीट बचाने के लिए सभी संभावनाओं को तलाशने के बाद एक बार फिर से डॉ. अरविंद शर्मा पर दांव खेल दिया है। पार्टी को इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए जातिगत समीकरण बनाने पर पूरा जोर लगाना पड़ेगा। जाटलैंड के मतदाताओं का साथ मिले बिना भाजपा के लिए इस सीट पर जीत दोहराना आसान नहीं होगा। पिछले विधानसभा चुनावों की तरह अगर इस बार कोसली बड़ा मार्जिन नहीं दे पाया, तो जीत हासिल करने के लिए दूसरे हलकों में भाजपा को अच्छा प्रदर्शन करना होगा।

कांग्रेस जल्द घोषित कर सकती है अपना उम्मीदवार

रोहतक सीट से भाजपा के बाद कांग्रेस भी प्रत्याशी की घोषणा जल्द कर सकती है। अगर दीपेंद्र को मैदान से हटाया गया, तो उनके पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी मैदान में उतारा जा सकता है। हुड्डा रोहतक सीट से चार बार सांसद बन चुके हैं। उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा इस सीट पर वर्ष 2005 से लेकर 2019 तक सांसद रह चुके हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के बावजूद दीपेंद्र के सामने जाट प्रत्याशी के रूप में ओपी धनखड़ थे। अहीर बाहुल्य कोसली हलके ने ओपी धनखड़ का दिल खोलकर साथ दिया था, लेकिन जाट बाहुल्य हलकों में दीपेंद्र को मिली अच्छी बढ़त ने उन्हें सांसद बना दिया। गत लोकसभा चुनावों में जातिगत गणित बैठाते हुए भाजपा ने डॉ. अरविंद शर्मा के रूप में नए गैर जाट प्रत्याशी को मैदान में उतारा। तमाम सर्वे और पूर्वानुमान लगाते हुए दीपेंद्र की जीत को भाजपा भी सुनिश्चित मान रही थी। भाजपा ने परिणाम आने से पहले 9 सीटों पर ही जीत नजर आ रही थी। अकेले कोसली हलके ने भाजपा की झोली में एकमुश्त वोट डालकर दीपेंद्र की संभावित जीत को हार में बदल दिया था।

कोसली पर डोरे डालने पर लगाया जोर

गत लोकसभा चुनावों में अकेले कोसली के कारण दीपेंद्र की हार को देखते हुए पूर्व सीएम हुड्डा और उनके बेटे का शुरू से ही कोसली पर फोकस रहा है। दीपेंद्र को संभावित प्रत्याशी मानते हुए हुड्डा ने इस सीट पर वापसी करने के लिए भाजपा में सेंध लगाने का प्रयास पहले ही कर दिया था। पूर्व मंत्री जगदीश यादव और राव इंद्रजीत सिंह के खास समर्थक अनिल पाल्हावास को कांग्रेस ज्वाइन कराकर हुड्डा और उनके बेटे ने बड़ा गेम खेल दिया था।

जाट वोट का डिवाइडेशन निभाएगा रोल

लोकसभा सीट पर जातिगत फैक्टर एक बार फिर बड़ा रोल अदा करने जा रहा है। जाट वोटों के बिखराव और नॉन जाट वोटों के एकीकरण से ही भाजपा को जीत दोहराने में कामयाबी मिल सकती है। अगर पार्टी को इस बार कोसली में नुकसान होता नजर आता है, तो उसे इसकी भरपाई के लिए दूसरे हलकों में वोट प्रतिशत बढ़ाने पर जोर लगाना पड़ेगा। इसके लिए पार्टी को अपने वह धुरंधर नेता प्रचार मैदान में उतारने होंगे, जिनका जाटलैंड में व्यापक प्रभाव माना जाता है।

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