एक रुपए में मिली थी 15 एकड़ जमीन; फिर भी आनाकानी कर रहा अपोलो, सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बाद बेड कोटा तय

Supreme Court on Delhi Apollo: दिल्ली अपोलो अस्पताल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए थे। अब सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बाद बेड कोटा तय कर दिया गया है।

By :  Desk
Updated On 2025-05-06 13:36:00 IST
अपोलो हॉस्पिटल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला।

Supreme Court on Delhi Apollo: दिल्ली के प्रीमियम अस्पतालों में से एक इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल को दिल्ली सरकार ने 1988 में एक रुपए प्रति महीने के रेट पर 15 एकड़ जमीन दी गई थी। तब सरकार की तरफ से एक शर्त लगाई गई थी कि अस्पताल अपनी कुल बिस्तर क्षमता में से तिहाई हिस्से के बेड यानी 200 बेड ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए मुफ्त रिजर्व रखेगा। हालांकि पिछले 15 सालों के रिकॉर्ड ये बताते हैं कि अपोलो अस्पताल ने इस शर्त का बेहद अनमने ढंग से पालन किया और कई बार इस शर्त को नजरअंदाज भी किया। हालांकि अब अपोलो अस्पताल की तरफ से गरीबों के लिए बेड कोटा तय कर दिया गया है।  

25 मार्च को हुई थी सुनवाई
इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 25 मार्च को सुनवाई के दौरान अस्पताल प्रशासन को चेतावनी दी। कोर्ट ने कहा कि अगर अपोलो अपनी जिम्मेदारियों को नहीं निभाता है, तो दिल्ली सरकार इंद्रप्रस्थ अपोलो का प्रबंधन AIIMS को सौंप सकती है। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार ने साल 1988 में इस अस्पताल को बनाने में अपने सरकारी खजाने से 38 करोड़ रुपए लगाए थे। 

2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिए थे ये आदेश  
इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी साल 2009 में अस्पताल को खास निर्देश दिए थे। कोर्ट की तरफ से कहा गया था कि अस्पताल में कुल 6000 में से 2000 बेड गरीबों के लिए रखेगा। हालांकि इसके बाद भी अस्पताल प्रशासन पर कोई असर नहीं हुआ। 

दो बार गठित की गई जांच कमेटी
इस मामले में कोर्ट ने अपोलो अस्पताल में गरीबों के इलाज की व्यवस्था जांचने के लिए दो बार कमेटी गठित की। इस जांच से पता चला कि अस्पताल चलाने वाली कंपनी IMCL ने खुलेआम शर्तों की अवहेलना की है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अस्पताल ने पिछले 12 सालों में औसतन केवल 17.05% बेड ही गरीब मरीजों को दिए हैं। साल 2014-15 में यह आंकड़ा महज 12.01 फीसदी था। 2018-19 में ये आंकड़ा बढ़कर 20.87% तक ही पहुंच सका। 2023-24 में ये आंकड़ा 20.5 फीसदी रहा। 

ओपीडी में भी पाई गईं खामियां
इसी तरह ओपीडी में भी खामियां पाई गईं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, साल 2012 से 2024 तक कुल 2.97 लाख गरीब मरीजों ने मुफ्त इलाज का लाभ उठाया। हालांकि इनमें से 88 फीसदी मरीज ओपीडी के रूप में आए। ओपीडी में सिर्फ परामर्श मिलता है जबकि आईपीडी (भर्ती मरीज) की संख्या मात्र 12 फीसदी रही। 

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(Deepika)

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