Scrap Policy Chaos: कार स्क्रैप पॉलिसी... दिल्ली से भी पीछे रह गया पाकिस्तान, अन्य देशों का क्या रुख?
बढ़ता वायु प्रदूषण दुनिया की बड़ी समस्याओं में शुमार होने जा रहा है। क्या भारत में भी व्हीकल स्क्रैप पॉलिसी का कड़ाई से पालन कराने का वक्त आ गया है? पढ़िये रिपोर्ट
व्हीकल स्क्रैप पॉलिसी में भारत से पिछड़ गया पाकिस्तान
दिल्ली में डीजल से चलने वाले 10 साल पुराने और पेट्रोल से चलने वाले 15 साल पुराने वाहनों को ईंधन नहीं मिल पा रहा है। कारण यह है कि अपना जीवनकाल समाप्त कर चुके ये वाहन दिल्ली के पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंचा रहे हैं। दिल्ली सरकार के आदेश पर पुलिस ने ऐसे वाहनों का चालान काटना और जब्त करना भी शुरू कर दिया है। एक्सपायर वाहनों के मालिकों को 10 हजार रुपये और दोपहिया वाहन जब्त होने पर 5000 रुपये जुर्माना भरना होगा। इस सख्ती को देखकर पुराने वाहन चालकों में हड़कंप मचना लाजमी है। लेकिन, पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से देखें तो यह सराहनीय कदम बताया जा रहा है। आज हम इस खबर में आपको दुनिया के उन देशों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए उम्रदराज वाहनों को सड़कों से हटा दिया था। लेकिन सबसे पहले बात करेंगे कि दुनिया में सबसे पहले किन देशों ने व्हीकल्स स्क्रैपिंग पॉलिसी अपनाई थी।
90 के दशक में शुरू हुआ व्हीकल स्क्रैप प्रोग्राम
वायु प्रदूषण पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्या बनता जा रहा है। IQAir 2024-25 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में शामिल है। दक्षिण अफ्रीका का देश चाड इस सूची में पहले स्थान पर है, जबकि बांग्लादेश दूसरे, पाकिस्तान तीसरे, कांगो लोकतात्रिंक गणराज्य चौथे और भारत पांचवें स्थान पर है। बांग्लादेश और भारत ही ऐसा देश हैं, जिन्होंने वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए एक्सपायर हो चुकी पुरानी कारों को सड़कों से हटाने का निर्णय लिया है। जबकि, पाकिस्तान ने अभी तक व्हीकल्स स्क्रैप नीति नहीं बनाई है, जैसा कि मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं।
दुनिया के पहले व्हीकल स्क्रैप प्रोग्राम की बात करें तो इसकी चर्चा 90 के दशक से शुरू हो गई थी। डच नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड एनवायरमेंट की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि अगर 2000 में पुरानी पेट्रोल कारों को नई कारों से बदल दिया जाए, तो नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन 30 प्रतिशत तक कम हो जाएगा।
इन चर्चाओं के बीच ग्रीस, हंगरी, स्पेन, डेनमार्क, फ्रांस, आयरलैंड, इटली और नार्वे ने पुराने कारों को स्क्रैप करने के लिए नियम बनाने शुरू कर दिए। इसके तहत पुराने वाहन चालकों को प्रोत्साहित करने के लिए नए वाहन खरीदने में कई तरह की छूट देने का प्रावधान किया गया। लेकिन, 2008 में जब आर्थिक मंदी आई तो यूरोपीय देश भी स्क्रैप नीति बनाने को मजबूर हो गए। इसका उद्देश्य वायु प्रदूषण को कम करने के साथ ही ऑटो उद्योग में जान फूंकना था।
पुराने वाहनों के बदले दिए गए ये लाभ
जर्मनी ने स्क्रैप पॉलिसी 2009 लागू की और 9 साल पुरानी कारों के बदले बेहतर फ्यूल इफिशिएंट वाली नई कार लेने पर 2500 रुपये यूरो देने की घोषणा कर दी। इसका नतीजा यह हुआ कि हर साल करीब 4.5 लाख पुरानी गाड़ियों को सड़कों से हटाने में मदद मिली। साल 2020 में भी जर्मनी सरकार ने फिर से पुरानी कारों को हटाने का निर्णय लिया।
लक्ष्य रखा गया कि कम से कम दो लाख पुरानी कारों को हटाया जाएगा। इसके लिए घोषणा की गई कि पुरानी कार को स्क्रैप कर नई कार खरीदने पर 5000 यूरो तक की मदद दी जाएगी। खास बात है कि अगर कोई वाहन चालक इलेक्ट्रिक कार खरीदता है, तो उसे 7000 यूरो तक की सब्सिडी दी जाएगी। सरकार के यह योजना इतनी लोकप्रिय हो गई कि दो महीने में ही यह लक्ष्य हासिल हो गया।
चीन ने भी वायु प्रदूषण फैलाने वाली पुरानी कारों को सड़कों से हटाने के लिए 2011 में स्क्रैप पॉलिसी का ऐलान किया था। इसके तहत 1995 या इससे पहले रजिस्टर्ड पुरानी कारों को स्क्रैप के बदले में नई कार खरीदने पर 2300 डॉलर तक की मदद दी जाएगी। इसके बाद 2014 में चीन की सरकार ने येलो लेबल वाली कारों को हटाने का फैसला लिया।
कारण यह था कि ये येलो लेबल कारें वायु प्रदूषण में इजाफा कर रही थी। सख्ती के चलते एक झटके में ऐसी तीन लाख से ज्यादा येलो लेबल कारें सड़कों से गायब हो गईं। इस साल भी चीन ने स्क्रैप नीति 2025 की घोषणा की, जिसके तहत 10 साल पुरानी डीजल और 12 साल पुरानी पेट्रोल कारों को हटाने का फैसला लिया है। इनके बदले नई कार खरीदने पर 15000 युआन सब्सिडी दी जा रही है।
वहीं, इलेक्ट्रिक कार खरीदने पर बतौर सब्सिडी 20 हजार डॉलर की मदद देने को कहा गया। अन्य देशों की तुलना में चीन प्रदूषण के जिम्मेदार व्हीकल्स पर सख्त कदम उठा रहा है। नतीजा यह है कि हर साल 1.10 करोड़ मीट्रिक वजन की पुरानी कारें स्क्रैप में जा रही हैं। इसी प्रकार, अन्य विकासशील और विकसित देश भी वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार वाहनों को सड़कों से हटाने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं।
पाकिस्तान पर्यावरण का भी बड़ा दुश्मन
भारत सरकार ने 13 अगस्त 2021 को व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी की शुरुआत की थी। इस पॉलिसी के तहत 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से स्क्रैप करना था। दिल्ली के अलावा राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के शहरों में अन्य राज्यों के पुराने वाहनों को एनओसी देने पर रोक लगा रखी है। वहीं हिमाचल में तो किसी अन्य राज्य की पुरानी गाड़ी को ट्रांसफर ही नहीं किया जा सकता। ये कदम इसलिए उठाए गए हैं ताकि संबंधित शहरों और राज्यों के पर्यावरण पर नेगेटिव असर न पड़े।
आपको पहले ही बता चुके हैं कि दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्र में शुमार है। इस सूची में बांग्लादेश दूसरे स्थान पर है, जबकि पाकिस्तान तीसरे स्थान पर और भारत पांचवें स्थान पर है। भारत ने 2021 में व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी अपना ली थी, वहीं बांग्लादेश ने एक अप्रैल 2022 को स्क्रैप पॉलिसी लागू की थी। इसके तहत 20 साल पुराने निजी वाहनों औश्र 15 साल पुराने कमर्शियल वाहनों को अनफिट पाए जाने पर स्क्रैप यार्ड में भेजने का आदेश दिया था। वहीं, पाकिस्तान की बात करें तो भारत में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण पाकिस्तान की तरफ से आता है, लेकिन पाकिस्तान ने अभी तक स्क्रैप पॉलिसी नहीं बनाई है। जो दर्शाता है कि यह देश पर्यावरण का भी दुश्मन बना है।