नक्सलियों को बस्तर आईजी की दो टूक: सुंदरराज पी बोले- हमारे पास है टॉप नक्सल लीडर्स के ठिकानों का पता, सरेंडर ही अंतिम विकल्प

केंद्र सरकार ने बस्तर जिले को नक्सलमुक्त घोषित करने पर आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि, वे कही भी सुरक्षित नहीं हैं, जहां भी छिपे होंगे जवान उन्हें ढूंढ लेंगे।

Updated On 2025-05-28 16:03:00 IST

 बस्तर आईजी सुंदरराज पी

जीवानंद हलधर- जगदलपुर। केंद्र सरकार ने बस्तर जिले को नक्सलमुक्त घोषित कर दिया है। बुधवार को बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि शीर्ष नक्सली नेता बसव राजू की मौत के बाद नक्सलियों को यह पूरी तरह से समझ में आ गया है कि वे बस्तर में कही पर भी सुरक्षित नहीं है वे जहां भी छिपे होंगे जवान उन्हें ढूंढ लेंगे, समर्पण ही उनके पास अंतिम विकल्प है यदि वे समर्पण नहीं करते तो जवानों के साथ मुठभेड़ में वे मारे ही जाएंगे। नक्सली जब अपने प्रमुख को नहीं बचा पाए तो वे किसकी जान बचा पाएंगे।

उन्होंने आगे कहा कि, नक्सलियों का संगठन बिखरने लगा है, कुछ समय के बाद यह ढांचा स्वयं चरमराकर गिर जाएगा। उनके टॉप नक्सल लीडर्स के ठिकानों की जानकारी हमारे पास है और जब चाहें निर्णायक ऑपरेशन लांच कर उन्हें ढेर कर देंगे। नक्सल लीडर गणपति, देवजी, सोनू, हिड़मा, सुजाता, के. रामचंद्र रेड्डी, बारसे देवा जैसे बचे नेताओं को चेतावनी देते हुए कहा कि अभी भी समय है। वे हथियार छोड़कर छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास योजना का लाभ लेने जंगल से बाहर आकर राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हो जाएं। 

फोर्स ने तोड़ दी नक्सलियों की कमर
आईजी सुंदरराज पी ने आगे कहा कि, नक्सलियों की फोर्स ने कमर तोड़ दी है और अब उनके पास न तो रणनीति बची है, न ही जमीन पर ठोस नेतृत्व। इस स्थिति में बचे हुए नक्सली नेता अब सिर्फ जान बचाने की जुगत में लगे इसके बाद भी यदि ये नेता अब भी हिंसा का रास्ता नहीं छोड़ते, तो उनका अंत बसवा राजू से भी भयावह होगा। बसवा राजू की मौत के बाद अब नेतृत्व का अभाव है बचे हुए शीर्ष नक्सली नेता डरकर अंडर ग्राउंड हो गए हैं। संगठन मे काफी अंतर्कलह है।

नक्सली अपने लीडरों को छोड़कर भाग रहे
उन्होंने आगे कहा कि, नक्सली नेता विकल्प का बयान बताता है कि बसव राजू की सुरक्षा में मात्र 35 नक्सली थे, जिनमें 28 मुठभेड़ में मारे गए और शेष 8 जान बचाकर भाग गए। हर मुठभेड़ के बाद यह बात सामने आ रही है कि निचला कैडर अपने लीडर को मरने के लिए छोड़कर भाग रहे हैं। कभी जिन स्थानीय नक्सलियों का तेलुगु कैडर शोषण किया करते थे। अब वही कैडर लीडर को नहीं बचा रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि नक्सल लीडर अब अकेले पड़ चुके हैं और जंगल में मारे जा रहे हैं। 

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