नव आचार्य के स्वागत में ड्राेन से सुगंधित जल और पुष्प की वर्षा, लहराई 2000 धर्म ध्वजाएं

विद्या गुरु का छूटा साथ, अब समय के साथ चलेगा जैन समाज, मुनिश्री समय सागर महाराज पहुंचे कुंडलपुर, आचार्य पदारोहण समारोह 16 को। भावी आचार्य की भव्यतम अगवानी की गई।

By :  Ck Shukla
Updated On 2024-04-10 12:41:00 IST
मुनि श्री समय सागर महाराज जी के साथ उभरते हुए लोग

धन्यकुमार जैन- कुंडलपुर। त्याग, तपस्या और उत्कृष्ट चर्या के पर्याय आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की समाधि से उपजे विशाद से उभरते हुए जैन समाज ने मंगलवार को भावी आचार्य  निर्यापक मुनिश्री समय सागर महाराज की भव्यतम अगवानी कर एक नया इतिहास रचाहै। आचार्यश्री की समाधि होने के करीब 59 दिनों बाद देश के सबसे बड़े  मुनिसंघ को आगामी 16 अप्रैल को नए आचार्य के रूप में मुनिश्री समय सागर महाराज मिलेंगे।

उल्लेखनीय है कि संत के अलावा कवि, चिंतक के रूप देश-दुनिया में वर्तमान के वर्धमान के रूप में विख्यात जैनाचार्य विद्यासागरजी महाराज की गत् 17 फरवरी की रात्रि को  सल्लेखना पूर्वक समाधि हो गई थी। समाधि होने के पहले आचार्यश्री ने अन्न, जल के अलावा आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने अपने पहले शिष्य निर्यापक मुनिश्री समय सागर महाराज काे आचार्य पद का दायित्व सौंपने की मंशा जाहिर किया था। आचार्यश्री की मंशा के अनुरूप आगामी 16 अप्रैल को सिद्ध  क्षेत्र कुंडलपुर में होने वाले भव्यतम समारोह में पदारोहण होगा। 

पहुंचे बड़े बाबा के दरबार

भावी  आचार्य समय सागरजी महाराज ने गत् 2 मार्च को चंद्रगिरी तीर्थ से विहार  किया था। करीब 39 दिनों में लगभग 500 किमी की दूरी नंगे पैर तय कर उन्होंने हिन्दू नववर्ष के पहले दिन दमोह जिले के कुंडलपुर तीर्थ क्षेत्र में मंगल प्रवेश किया। यहां उनकी इतिहास की सबसे बड़ी अगवानी हुई। नव आचार्यश्री समय सागरजी महाराज की अगवानी के सैकड़ों  मुनि, आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक और देशभर के जैन अनुयायी साक्षी बने।

इतिहास ने बदला करवट

सदलगा  के संत विद्यासागर महाराज ने 1972 में आचार्य पद ग्रहण किया था। उन्हें यह  दायित्व उनके गुरू आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज ने सौंपा था। बीते 52  सालों में उन्होंने अपने त्याग, तपस्या और संयमित जीवन से दुनिया को दिगंबर  तीर्थकरों के जीवंत स्वरूप का दिग्दर्शन कराया। मानव को जिन वाणी का रहस्य  बताकर आत्म कल्याण का रास्ता दिखाया। वहीं मूकप्राणियों की रक्षा के लिए  कदम उठाकर वर्तमान के वर्धमान कहलाए।

शिष्य में गुरू की छवि

कर्नाटक  के सदलगा निवासी मलप्पा जी और श्रीमंती के घर 27 अक्टूबर 58 को जन्मे  शांतिनाथ जो अब मुनिश्री समय सागर महाराज में अपने गृहस्थ जीवन के भाई और  आचार्य विद्यासागर जी महाराज की छवि दिखाई देती है। मुनिश्री ने हाईस्कूल  तक मराठी में पढ़ाई करने के बाद अतिशय क्षेत्र महावीर जी में 2 मई 75 को  ब्रम्हचर्य व्रत ले लिया था। उन्होंने 18 दिसंबर 75 को सिद्ध क्षेत्र  सोनागिरी में छुल्लक, 31 अक्टूबर 78 को सिद्धक्षेत्र नैनागिरी में एलक और 8  मार्च 80 को सिद्धक्षेत्र द्रोनगिरी में मुनि दीक्षा अंगीकार किया था। वह  आचार्यश्री के पहले शिष्य हैं। 

संतों का अद्भूत समागम

आगामी  16 अप्रैल को होने वाले आचार्य पदाराेहण समारोह में शिरकत करने विभिन्न  राज्यों में विराजमान मुनिसंघ लंबा पद विहार करते हुए कुंडलपुर पहुंच गया  है तो कुछ अगले कुछ दिनों में पहुंचने वाले हैं। इस समारोह में विद्यासागर जी  महाराज के लगभग सभी शिष्य शामिल होंगे। यह दूसरा मौका है, जब समूचे संघ के दर्शन  श्रावकों को एक साथ होंगे। इससे पहले 2022 में हुए पंच कल्याणक महोत्सव के दौरान सारे  मुनि कुंडलपुर में जमा हुए थे।

ऐतिहासिक अगवानी

ज्येष्ठ  श्रेष्ठ निर्यापक मुनिश्री समय सागर जी महाराज ससंघ ने मंगलवार को दोबाद तीर्थक्षेत्र कुंडलपुर में प्रवेश किया। नव आचार्य की अगवानी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बैंड, प्रसिद्ध 21 दिव्य  घोष, 36 रथ, 1111 सदस्यों का अखाड़ा शामिल हुआ। इस दौरान ड्रोन से सुगंधित जल  एवं पुष्प वर्षा की गई। इस दौरान 2000 धर्म ध्वजाएं, 111 विशेष  ध्वजाएं लहराते नजर आई।  ढोल-नगाडों की गूंज ने पूरा वातावरण भक्तिमय बना दिया था। इस दौरान मुनिश्री सुधा सागर, प्रमाण सागर, योग सागर, प्रसाद सागर, अभय सागर, संभव सागर, नियम सागर, आर्यिका गुरूमति, दृढमति, पूर्णमति सहित देशभर के अनुयायी मौजूद थे।

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