कथक की शानदार प्रस्तुति : रायपुर की बेटी आशना दिल्लीवार की कथक प्रस्तुति कोलम्बो में सराही गई
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की कथक नृत्यांगना आशना दिल्लीवार इन दिनो कोलंबो में अपनी नृत्यकला का प्रदर्शन कर रही हैं।
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की कथक नृत्यांगना आशना दिल्लीवार ने भारत संस्कृति यात्रा के तहत श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में आयोजित 6 दिवसीय कार्यक्रम में मनमोहक प्रस्तुति दी। यह कार्यक्रम लखनऊ घराने पर आधारित थी। 28 मार्च से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। यह कार्यक्रम 2 अप्रैल तक चलेगा। इस कार्यक्रम में आशना ने द्रुतलय में उठान, शिव वंदना, परन, ठाट, आमद त्रिताल और राधा कृष्ण की पनघट ठुमरी पर शानदार प्रस्तुति दी है।
आशना पहले भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर दे चुकी हैं प्रस्तुति
यह कार्यक्रम हिन्दुस्तान आर्ट एंड म्यूजिक सोसाइटी औरं संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार, रामकृष्ण मिशन कोलम्बो के द्वारा आयोजित किया गया है। बताया गया है कि, आशना डॉ. राजश्री नामदेव और अंजनी ठाकुर की शिष्या हैं। इसके पूर्व भी आशना ने विभिन्न शासकीय और प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कथक की प्रस्तुति दी हैं। बता दें कि, कत्थक उत्तर भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपरा है, जो भक्ति-काल में विकसित हुई और राज दरबारों में इसे सरंक्षण प्राप्त हुआ। कत्थक, कथा से निकला शब्द है और मूल रूप में कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा है। लखनऊ, बनारस और जयपुर—इसके तीन घराने प्रसिद्ध हैं। इसमें पैरों की गति और घूमने का विशेष महत्व है।
कथक और उसकी विधाओं के बारे में जानिए
नृत्त- वंदना, देवताओं के मंगलाचरण के साथ शुरू किया जाता है।
ठाट - एक पारंपरिक प्रदर्शन जहां नर्तकी सम पर आकर एक सुंदर मुद्रा लेकर खड़ी होती है।
आमद - अर्थात 'प्रवेश' जो तालबद्ध बोल का पहला परिचय होता है।
सलामी,- मुस्लिम शैली में दर्शकों के लिए एक अभिवादन होता है।
कवित् - कविता के अर्थ को नृत्य में प्रदर्शन किया जाता है।
पड़न - एक नृत्य जहां केवल तबला का नहीं बल्कि पखवाज का भी उपयोग किया जाता है।
परमेलु - एक बोल या रचना जहां प्रकृति का प्रदर्शनी होता है।
गत - यहां सुंदर चाल-चलन दिखाया जाता है।
लड़ी - बोलों को बांटते हुए तत्कार की रचना।
तिहाई - एक रचना जहां तत्कार तीन बार दोहराया जाती है और सम पर नाटकीय रूप से समाप्त हो जाती है।
नृत्य - भाव को मौखिक टुकड़े की एक विशेष प्रदर्शन शैली में दिखाया जाता है। मुगल दरबार में यह अभिनय शैली की उत्पत्ति हुई। इसकी वजह से यह महफिल या दरबार के लिए अधिक अनुकूल है ताकि दर्शकों को कलाकार और नर्तकी के चेहरे की अभिव्यक्त की हुई बारीकियों को देख सके। ठुमरी गाया जाता है और उसे चेहरे की भवभंगिमाओं और हाथ की ऊंगलियों के माध्यम से व्याख्या की जाती है।