बस्तर गोंचा पर्व: भगवान जगन्नाथ को तुपकी से दी जाती है सलामी, 1618 साल पुरानी है परंपरा

बस्तर जिले में जगन्नाथ रथ यात्रा महापर्व गोंचा पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह हमारी समृद्ध परंपरा, श्रद्धा और संस्कृति का साक्षात प्रतीक है।

Updated On 2025-06-28 09:58:00 IST
रथ यात्रा 

अनिल सामंत- जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में जगन्नाथ रथ यात्रा महापर्व गोंचा पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक मनाया जाता है। इस अवसर पर सांसद महेश कश्यप ने बस्तरवासियों को शुभकामनाएं दीं और इस अद्भुत सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार का संदेश दिया है।

सांसद कश्यप ने अपने संदेश में कहा कि, बस्तर का 'गोंचा तिहार' न केवल एक पर्व है बल्कि यह हमारी समृद्ध परंपरा, श्रद्धा और संस्कृति का साक्षात प्रतीक है। यह पर्व भगवान श्री जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और श्री बलभद्र के प्रति हमारी आस्था को अभिव्यक्त करता है। साथ ही यह हमारी ऐतिहासिक विरासत को भी जीवंत बनाए रखता है। 

सांसद महेश कश्यप

बस्तर में राजा पुरुषोत्तम देव ने शुरू की रथयात्रा
सांसद महेश कश्यप ने गोंचा पर्व का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को बताते हुए कहा कि, बस्तर के इस अद्वितीय पर्व की शुरुआत करीब 618 साल पहले हुई थी, जब काकतीय वंश के राजा पुरुषोत्तम देव ने सन् 1408 ई. में पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर की तीर्थ यात्रा की। तब ओडिशा के शासक ने उन्हें ‘रथपति’ की उपाधि दी और रथ भेंट किया। इसके बाद राजा पुरुषोत्तम देव ने बस्तर की धरती पर ‘रथयात्रा’ और ‘दशहरा’ जैसे पर्वों में रथों का समावेश किया। यहीं से श्री जगन्नाथ रथयात्रा का वनवासी रूप ‘गोंचा तिहार’ आरंभ हुआ।

सिरी गोंचा और बोहड़ती गोंचा पर्व
गोंचा तिहार में श्री जगन्नाथ मंदिर,जगदलपुर से भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र जी की मूर्तियाँ रथारूढ़ होकर नगर भ्रमण करती हैं और ‘गुण्डिचा मंडप’ (सिरहासार) में नौ दिन तक विश्राम करती हैं। यह पर्व ‘सिरी गोंचा’ (प्रारंभ) से ‘बोहड़ती गोंचा’ (लौटती यात्रा) तक मनाया जाता है।

‘तुपकी’ से दी जाती है भगवान को सलामीसांसद कश्यप ने तुपकी की विशेषता बताते हुए कहा कि, ‘गोंचा पर्व’ की विशेषता है तुपकी अर्थात् बांस से बनी एक पारंपरिक बंदूक, जिससे भगवान को सलामी दी जाती है। इसमें पेंग (मालकांगिनी के फल) का उपयोग गोली की तरह होता है। यह परंपरा ना केवल उत्सव में उल्लास भरती है, बल्कि वनवासी जीवनशैली और आयुर्वेदिक ज्ञान से भी जुड़ी हुई है।

हमें जड़ों से जोड़ता है यह पर्वमहेश कश्यप ने कहा कि, गोंचा पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है। मैं समस्त बस्तरवासियों से आग्रह करता हूँ कि, वे इस पर्व को सामाजिक सद्भाव, शांति और पारंपरिक गरिमा के साथ मनाएं। हमारा बस्तर न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध है बल्कि इसकी संस्कृति और परंपराएं भी अतुलनीय हैं। ‘गोंचा तिहार’ इस गौरव का जीवंत प्रमाण है। आइए, मिलकर इस विरासत को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाएं।

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