देवसुंद्रा की मिट्टी से उठी इंसानियत की खुशबू: टेटकी बाई तक नहीं पहुंचीं योजनाएं तो गांव वाले बन गए 'सरकार'
देवसुंद्रा गांव में आपसी सहयोग से ग्रामीणों ने असहाय मां-बेटे की मदद की ठानी। वे उनके लिए घर बनवा रहे हैं। यह उनकी संवेदशीलता और मानवता को दर्शाता है।
आपसी सहयोग से घर बनवा रहे ग्रामीण
कुश अग्रवाल- बलौदाबाजार। छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के पलारी तहसील का एक छोटा-सा गांव है- देवसुंद्रा। यहां की मिट्टी में अब सिर्फ धान की खुशबू नहीं, बल्कि इंसानियत की वो सौंधी महक भी घुल गई है, जो आजकल कहीं खो-सी गई थी।
इस गांव के एक छोर पर, एक 70 वर्षीय बुजुर्ग मां टेटकी बाई और उनका 25 वर्षीय बेटा चिंताराम रहते थे। ‘रहते थे’ कहना शायद ठीक नहीं होगा, क्योंकि उनका घर अब घर जैसा बचा ही नहीं है। टूटी हुई दीवारें, उड़ चुके छप्पर और हर बारिश में टपकती छत ने उनके आशियाने को सिर्फ एक नाम दे रखा था - ‘जगह’, जहां दो जिंदगियां किसी तरह जीने की कोशिश कर रही थीं।
गरीबी में जी रही टेटकी बाई
टेटकी बाई, झुर्रियों में छिपी एक पूरी ज़िंदगी की कहानी और उनका बेटा चिंताराम- लगभग 25 साल का, मानसिक रूप से अस्वस्थ, मगर मां के लिए दुनिया का सबसे बड़ा सहारा। न खेती, न आमदनी, न कोई योजना का सहारा। सालों से यह मां-बेटा दो वक्त की रोटी के लिए सिर्फ पीडीएस से मिलने वाले 35 किलो चावल पर निर्भर हैं। कई रातें भूखे पेट, कई दिन बिना छांव के, यही थी उनकी दिनचर्या।
आंधी उड़ा ले गई छत
कुछ दिन पहले आई आंधी टेटकी बाई के कच्चे मकान के छप्पर को उड़ा ले गई। उनके पास अब रहने की समस्या आ गई। इस अंधेरे में एक उम्मीद की किरण लेकर आए गांव का ही एक युवक वेदप्रकाश वर्मा। पेशे से मोटरसाइकिल मिस्त्री, मगर दिल से एक सच्चा इंसान। जब उन्होंने देखा कि टेटकी बाई और उनका बेटा अब पूरी तरह खुले आसमान के नीचे हैं, उन्होंने सिर्फ देखा नहीं बल्कि उनकी मदद करने की सोची।
रंग लाई युवक की पहल
वेदप्रकाश ने अपनी मेहनत की कमाई से 50,000 रुपए दिए और एक अभियान की शुरुआत की। सोशल मिडिया के जरिए उन्होंने गांव के लोगों से कहा- "अगर हम एकजुट हो जाएं, तो एक घर बन सकता है, एक जिंदगी बदल सकती है।" इसके बाद यह अभियान शुरू हुआ। गांव के किसान, मजदूर, दुकानदार और कुछ युवाओं ने मिलकर थोड़ी-थोड़ी सहायता प्रदान की। कुछ ही दिनों में 1,30,000 रुपये इकट्ठा हो गए।
ग्रामीणों के आपसी सहयोग से बन रहा घर
इस राशि से अब टेटकी बाई और चिंताराम के लिए एक पक्का घर बन रहा है। ईंट, सीमेंट और छत के साथ वह घर जहां बारिश से डर नहीं लगेगा, जहां रातें सुकून से गुजरेंगी, जहां मां-बेटा चैन से एक-दूसरे को देख सकेंगे और कह सकेंगे- "हमारा भी एक घर है।"
सरकार चूक जाए तो समाज जिम्मेदारी निभाए
सरकार की तमाम योजनाएं प्रधानमंत्री आवास योजना, वृद्धावस्था पेंशन, उज्ज्वला गैस, महतारी वंदन यह सब कागज़ों पर हैं मगर टेटकी बाई तक कोई नहीं पहुंचा। जब योजनाएं सबसे जरूरतमंद तक नहीं पहुंचतीं, तब सवाल उठते हैं और इस बार सवाल सिर्फ नीति पर नहीं, संवेदनशीलता पर भी है। लेकिन देवसुंद्रा गांव ने जो कर दिखाया, वह पूरे प्रदेश के लिए एक सीख है कि, सरकार अगर चूक जाए, तो समाज अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है।
सिर्फ एक घर नहीं बन रहा बल्कि मानवता की नींव रखी जा रही है
यहां सिर्फ एक घर नहीं बन रहा बल्कि मानवता की नींव रखी जा रही है। यह ईंटें सिर्फ मिट्टी की नहीं, बल्कि भावनाओं की हैं और छत? वह अब सिर्फ टीन की नहीं, पूरे गांव के प्यार की है। टेटकी बाई आज मुस्कुराती हैं। वही झुर्रियों वाली मुस्कान, जो कहती है- "मुझे अब यकीन है, मेरा कोई है। मेरा गांव, मेरा परिवार।"