रिखी क्षत्रिय की अनुपम भेंट: छत्तीसगढ़ के 150 से भी ज्यादा वाद्ययंत्रों के बारे में लिखी पुस्तक, डॉ. रमन ने किया विमोचन
छत्तीसगढ़ के लोकवाद्य' पुस्तक रिखी क्षत्रिय की 45 वर्षों की शोध यात्रा का संकलन है, जिसमें 150 से अधिक दुर्लभ लोकवाद्यों की जानकारी शामिल है।
भिलाई। छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को संजोने वाले प्रख्यात लोकवाद्य संग्राहक रिखी क्षत्रिय की 45 वर्षों की मेहनत अब पुस्तक के रूप में सामने आई है। वर्षों से आदिवासी अंचलों में घूम-घूमकर दुर्लभ लोकवाद्यों का संग्रह करने वाले रिखी क्षत्रिय और उनकी पत्नी अन्नपूर्णा क्षत्रिय की यह खोजयात्रा अब 'छत्तीसगढ़ के लोकवाद्य' नामक पुस्तक के रूप में शोधार्थियों और पाठकों के लिए सुलभ होगी।
4 जून की शाम रायपुर स्थित विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह के कार्यालय में आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में इस महत्वपूर्ण पुस्तक का विमोचन किया गया। डॉ. रमन सिंह ने क्षत्रिय दंपति की इस पहल को ऐतिहासिक बताते हुए कहा, इस प्रयास से छत्तीसगढ़ के दुर्लभ लोकवाद्य और उनसे जुड़ी सांस्कृतिक विरासत को देश और दुनिया जान पाएंगे।
पुस्तक की विशेषताएं
150 से अधिक दुर्लभ लोकवाद्य यंत्रों का दस्तावेजीकरण
हर वाद्य का ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विवरण
अलग-अलग अवसरों पर प्रयोग किए गए एक ही वाद्य के भिन्न रूपों की जानकारी
आकर्षक फोटोग्राफ्स सहित विस्तृत विवेचना
युवावस्था से ही लोकवाद्य संग्रह का कार्य शुरू- रिखी क्षत्रिय
रिखी क्षत्रिय ने प्रेस वार्ता में बताया कि उन्होंने युवावस्था से ही लोकवाद्य संग्रह का कार्य शुरू किया, जो भिलाई इस्पात संयंत्र में सेवा के दौरान उनके जीवन का जुनून बन गया। वर्तमान में उनके पास 200 से अधिक दुर्लभ लोकवाद्यों का संग्रह है। उन्होंने 2004 में भिलाई में लोकवाद्य संग्रहालय की स्थापना भी की है।
रिखी क्षत्रिय की मान्यता
रिखी क्षत्रिय का मानना है कि, हमारी पीढ़ी लोकवाद्यों से विमुख होती जा रही है। यह जरूरी है कि आने वाली पीढ़ी को इन वाद्यों की उत्पत्ति, उपयोग और उनके सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व की जानकारी मिले।
रिखी क्षत्रिय: एक परिचय
जन्म: 07 मई 1959
शिक्षा: एम.ए. लोक संगीत, तबला में द्विवर्षीय डिप्लोमा
विशेषता: लोक वाद्य संग्रहण, लोक नर्तक, लोक मंच शिल्प
स्थापना: लोक रागिनी और कुडुकी संस्था के संस्थापक
सेवानिवृत्ति: भिलाई इस्पात संयंत्र से
सम्मान और उपलब्धियां
भारत सरकार की अध्येतावृत्ति (2002)
गणतंत्र दिवस परेड, दिल्ली में 10 बार छत्तीसगढ़ की झांकी का प्रतिनिधित्व
स्वर्ण पदक (प्रधानमंत्री स्व. मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी द्वारा)
दाऊ महासिंग चन्द्राकर सम्मान, लोक कला साधक सम्मान, श्रेष्ठ लोक कलाकार पुरस्कार सहित अनेक राज्य व राष्ट्रीय स्तर के सम्मान
राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा प्रशंसा