एम्स के डॉक्टरों ने किया कमाल: बालक के फेफड़े में धंसी पिन को आपरेशन कर सफलता पूर्वक निकाला

एम्स में अपने तरह की दुर्लभ सर्जरी करते हुए एक 13 वर्षीय बालक के सीने से पिन निकाला गया।

Updated On 2025-07-04 13:16:00 IST

 एम्स अस्पताल (फाइल फोटो)

रायपुर। एम्स में अपने तरह की दुर्लभ सर्जरी करते हुए एक 13 वर्षीय बालक के सीने से पिन निकाला गया। बालक पिछले दो सप्ताह से लगातार सीने में दर्द और तेज बुखार की शिकायत अपने परिजनों से कर रहा था। इसके बाद बालक 30 जून को एम्स के ट्रॉमा और आपातकालीन विभाग में खांसी में खून आना, लगातार बुखार और दो सप्ताह से अधिक समय से सीने में दर्द की शिकायत के साथ आया था।

जब उसका विस्तृत इतिहास लिया गया, तो उसने बताया कि वह एक पिन को मुंह में दबाकर उससे खेल रहा था, जिसे खांसते समय उसने गलती से निगल लिया था एक्सरे के बाद यह सामने आया कि बालक के सीने में पिन धंसी हुई है। इसके बाद एम्स के विशेषज्ञ चिकित्सकों की निगरानी में जांच और ऑपरेशन की प्रक्रिया प्रारंभ की गई। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की एक बहुविशेषज्ञीय टीम ने फेफड़े में गहराई तक फंसी धातु की इस नुकीली पिन को सफलतापूर्वक बाहर निकाला।

निमोनिया के भी लक्षण
जांच में सामने आया कि नुकीली धातु की पिन बाएं फेफड़े के निचले हिस्से के ब्रोंकस (श्वासनली की शाखा) में फंसी हुई है। साथ ही वहां पर निमोनिया के भी लक्षण दिखे। फेफड़े को और क्षति या रक्तस्राव से बचाने के लिए तत्काल उपचार आवश्यक था। मरीज की तुरंत ब्रोंकोस्कोपी (श्वासनली की एंडोस्कोपिक जांच) का निर्णय लिया गया। वीडियो ब्रोंकोस्कोपी की मदद से टीम ने पिन को सटीक रूप से खोजा और विशेष उपकरणों द्वारा सावधानीपूर्वक बाहर निकाला। मामूली रक्तस्राव को टेम्पोनाड और स्थानीय एड्रेनालिन द्वारा नियंत्रित किया गया। यह प्रक्रिया सफल रही और कोई जटिलता नहीं हुई। अगले दिन बच्चे को एंटीबायोटिक्स और फिजियोथेरेपी निर्देशों के साथ छुट्टी दे दी गई।

समय पर पहचान ना होने से जटिलताएं
फेफड़े में फंसी वस्तुएं यदि समय पर पहचानी न जाए तो गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं, जैसे-बलगम जमा होना, सांस की नली अवरुद्ध होना, संक्रमण या फेफड़े को स्थायी क्षति। एम्स के चिकित्सकों ने कहा, उन्नत ब्रोंकोस्कोपी तकनीकों द्वारा समय पर पहचान और कम से कम इनवेसिव हस्तक्षेप के जरिए फेफड़े की कार्यक्षमता को सुरक्षित रखा जा सकता है और सर्जरी से बचा जा सकता है। इलाज करने वाली टीम में डॉ. रंगनाथ टी. गंगा, डॉ. अजय बेहेरा, डॉ. प्रवीण दुबे और डॉ. राहुल चक्रवर्ती शामिल रहे। एनेस्थीसिया विभाग से डॉ. देवेन्द्र त्रिपाठी, डॉ. चंदन डे और डॉ. शमा खान का सहयोग प्राप्त हुआ। रेडियोलॉजी विभाग ने भी महत्वपूर्ण सहयोग दिया। एम्स निदेशक ले. जनरल अशोक जिंदल ने पूरी टीम को चिकित्सकीय दक्षता के लिए बधाई दी।

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