उदंती एरिया कमेटी कमांडर की आपबीती: कहा- हरियाणा में हमारे साथ अत्याचार हुआ तो बन गया नक्सली
गरियाबंद उदंती एरिया कमेटी के एरिया कमांडर सुनील उर्फ जगतार सिंह ने आत्मसमर्पण के बाद हरिभूमि से नक्सल आंदोलन के राज खोले।
गोरेलाल सिन्हा - गरियाबंद। गरियाबंद उदंती एरिया कमेटी के एरिया कमांडर सुनील उर्फ जगतार सिंह ने आत्मसमर्पण के बाद हरिभूमि से नक्सल आंदोलन के राज खोले। सुनील ने माना कि बंदूक उठाने से कोई लाभ नहीं हुआ। जनता के लिए कुछ कर नहीं पाए। आंदोलन भी अधूरा रह गया। सुनील ने कहा कि अब वह बंदूक छोड़कर खेती करना चाहता - है। वह कहता है कांकेर मेरा ससुराल है वहीं रहकर खेती करना चाहता हूं। अब कोई आदेश नहीं, बस अपनी मर्जी से जीना है।
सुनील ने हरिभूमि को बताया कि, वह ग्राम थांडर थाना स्माइलबाद, जिला कुरुक्षेत्र, हरियाणा का रहने वाला था। जनवरी 2004 में यमुनानगर हरियाणा में माओवादियों द्वारा संचालित शोषित तुलनात्मक संघर्ष मंच में हुआ। सुनील ने बताया कि हरियाणा में जातिगत भेदभाव और जमीन की समस्या से परेशान होकर माओवादी संगठन से जुड़ा। दलित वर्ग पर अन्याय और शोषण हो रहा था। आत्मरक्षा और न्याय की लड़ाई के लिए हथियार उठाना मजबूरी थी। उसने कहा उस समय मास्टर सतीश और नवीन किसान-मजदूर संघर्ष संगठन का नेतृत्व कर रहे थे, उनके साथ जुड़कर सुनील ने आंदोलन का रास्ता चुना। सुनील उर्फ जगतार सिंह ने बताया कि 2006 में पहली बार पिस्टल मिला, किसी को मारने के लिए नहीं, खुद की रक्षा के लिए।
फोर्स के एनकाउंटर ने डराया, मौत का खौफ, जिंदगी को चुना
सुनील ने बताया कि गरियाबंद में हाल ही में हुई 10 नक्सलियों की मुठभेड़ में मौत ने उन्हें भीतर तक डरा दिया। तब लगा कि अब या तो मरेंगे या फिर आत्मसमर्पण करेंगे। हमने जीवन चुना, मौत नहीं उसने कहा कि अब आईजी अमरेश मिश्रा के समक्ष आत्मसमर्पण के बाद उसके मन का भय समाप्त हो गया है।
हम कुछ नहीं कर पाए, आंदोलन अधूरा रह गया
हमने बीस साल जनता की लड़ाई लड़ी, लेकिन अब लगता है कि जिस जनता के लिए हथियार उठाए, उनके लिए कुछ कर नहीं पाए। आंदोलन अधूरा रह गया। उसका मानना है कि सरकार यदि सच में गांवों में डॉक्टर, शिक्षक और रोजगार दे दे, तो कोई भी बंदूक नहीं उठाएगा।
हरियाणा से छत्तीसगढ़ तक का सफर, जंगलों में बीते 20 साल
सुनील 2015 तक हरियाणा में सक्रिय रहा, फिर 2016 में छत्तीसगढ़ के गरियाबंद क्षेत्र में स्थानांतरित हुआ और उदंती एरिया कमेटी में शामिल हुआ। वह कई बड़ी घटनाओं में शामिल रहा। 2018 में चिखली-अम्मोरा मुठभेड़, 2023 में करला झर जंगल की मुठभेड़, 2024 में गरीबा जंगल में कमांडर जग्गू की मौत और 2025 में मोतीपानी और कांडसरा मुठभेड़। उसने स्वीकार किया कि जब तक जंगल में थे, किसी की मौत का दुख नहीं होता था, लेकिन अब लगता है कि खून-खराबा बंद होना चाहिए।
अब नक्सली संगठन बिखर चुका है
सीसी मेंबर और डीसीएम संगठन को दिशा नहीं दे पाए। जनता का भरोसा खत्म हो गया। सुरक्षाबलों के दबाव और जनता की दूरी ने संगठन को कमजोर कर दिया। उसने बताया कि वर्तमान में केवल 05 से 06 सीसी मेंबर बचे हैं जो छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड के सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय हैं। सुनील ने खुलकर बताया कि संगठन के खर्च का इंतजाम कैसे होता था। हम तेंदूपत्ता संग्रहण, ठेकेदार उगाही और जनता के स्वैच्छिक दान से फंड जुटाते थे।