शिक्षक दिवस पर विशेष: श्लोक और शास्त्रों का ज्ञान वैदिक अध्ययन के साथ आधुनिक शिक्षा का भी ध्यान

गौरेला पेण्ड्रा मरवाही के गोरखपुर क्षेत्र में स्थित परमानंद संस्कृत विद्यालय पिछले 15 सालों से बच्चों को गुरु शिष्य की अपनी परंपरा कायम रखे हुए हैं।

Updated On 2025-09-05 09:05:00 IST

शिक्षक दिवस 

विकास चौबे- बिलासपुर। आधुनिकता और व्यावसायिकता के इस दौर में भी धर्म, अध्यात्म और संस्कृति की पढ़ाई जहां हो ऐसे संस्थान कम होते जा रहे हैं। इन्हीं के बीच गौरेला पेण्ड्रा मरवाही के गोरखपुर क्षेत्र में स्थित परमानंद संस्कृत विद्यालय पिछले 15 सालों से बच्चों को गुरु शिष्य की अपनी परंपरा कायम रखे हुए हैं। स्कूल में बच्चों को संस्कार के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान की जाती है। इस स्कूल में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के 20 गांवों के कुल 225 बच्चे पढ़ रहे हैं जिसमें से 170 बालिकाएं और 55 के करीब छात्र हैं। सबसे खास बात है कि, इन बच्चों में सिर्फ तीन ही बच्चे सामान्य वर्ग के हैं बाकी सभी आदिवासी और पिछड़े वर्ग से हैं।

संस्था द्वारा इन सभी बच्चों की शिक्षा निशुल्क प्रदान की जाती है और एक रुपए की फीस भी नहीं ली जाती। रहने और खाने की व्यवस्था भी पूरी तरह निशुल्क है। पूरी तरह आवासीय इस स्कूल या कहें कि गुरुकुल में सुबह 5 बजे से शुरू हुई दिनचर्या रात के 10 बजे तक चलती है। इस बीच सुबह प्रार्थना, मंदिर में पूजा पाठ, योग, आश्रम और गौशाला की सेवा के साथ कक्षाएं लगती हैं। शाम को खेलकूद भी होता है। यहां के विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ अस्त्र शस्त्र चलाने के साथ ही कराते, ताइक्वांडों और आत्मरक्षा से जुड़ी दूसकी विधा भी सिखाई जाती है। छात्र और शिक्षक संबोधन और अभिवादन के लिए जयश्री राम बोलते हैं। इस संस्था में संस्कृत स्कूल होने के बावजूद हिंदी माध्यम से सभी कक्षाएं लगाई जाती हैं। संस्कृत के श्लोक को पर खास ध्यान दिया जाता है। वैदिक विधि से भी पढ़ाई कराई जा रही है।

2010 में परमानंद संस्कृत विद्यालय की स्थापना हुई
आश्रम के संचालक आचार्य परमानंद गिरि ने बताया कि, वे 2007 में पेंड्रा रोड आए थे और क्षेत्र में स्कूल और वंचित वर्ग की अध्ययन की कमी को देखते हुए उन्होंने सन 2008 में इस संस्था की स्थापना की जिसका नाम ओम अखंड राष्ट्र धर्म संस्था है। इसके बाद गोरखपुर में ही परम शांति धाम नामक एक आश्रम की स्थापना की गई। 2010 में परमानंद संस्कृत विद्यालय की स्थापना हुई जिसमें बच्चों का एडमिशन शुरू किया गया।

खेती और गौशाला की सेवा नियमित दिनचर्या में शामिल
आचार्य श्री गिरी ने बताया कि, संस्था को सरकार से फिलहाल कुछ खास अनुदान नहीं मिलता और यह पूरी तरह दानदाताओं और समाज सेवकों द्वारा दिए गए फंड से संचालित हो रहा है। इस स्कूल में न सिर्फ गौरेला पेंड्रा मरवाही के छात्र छात्राएं बल्कि कोरबा, अंबिकापुर, मुंगेली और मध्य प्रदेश के डिंडोरी, अनूपपुर जिले के भी बच्चे पढ़ रहे हैं। इन बच्चों के परिजनों को महीने में एक बार इनसे मिलने की अनुमति है। आचार्य श्री गिरि ने बताया कि बच्चों की दिनचर्या सुबह 5 बजे शुरू होती है 5:30 बजे प्रार्थना और 6:00 बजे मंदिर की घंटी बजती है। पूजा पाठ के बाद योग और फिर आश्रम की सेवा छात्र-छात्राएं करते हैं। आश्रम में खेती और गौशाला की सेवा भी नियमित दिनचर्या में शामिल हैं। स्नान ध्यान के बाद सुबह 10 से शाम 4 बजे तक विद्यालय लगता है। दोपहर एक बजे भोजन अवकाश होता है, इसमें बच्चे भोजन से पहले भोजन मंत्र का उच्चारण करते हैं। शाम को खेलकूद और प्रभु की आरती के बाद बच्चे 9 बजे भोजन करने के बाद आराम करते हैं।

स्कूल में ये सुविधाएं मिलती हैं

यह संस्कृत विद्यालय होते हुए भी सभी आधुनिक विषय यहां पहली से बारहवीं तक पढ़ाए जाते हैं।

यह विद्यालय छत्तीसगढ़ शासन एवं संस्कृत विद्यामंडलम रायपुर से संबंध है।

यहां बालक एवं बालिकाओं को अलग- अलग छात्रावास की सुविधा उपलब्ध है।

गुरु शिष्य की परंपरा और वैदिक अध्ययन
शुरुआत में बच्चों की संख्या 30 के करीब थी, जो अब 225 तक पहुंच गई है। करीब ढाई एकड़ में फैले इस आश्रम में मां रेवा बालिका छात्रावास और मारुति बालक छात्रावास भी है, जहां बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं। यह पूरी तरह आवासीय विद्यालय। स्कूल और संस्था को संभालने के लिए 25 लोगों का स्टाफ है जिसमें शिक्षक भी शामिल है। शिक्षक क्वालिफाइड और प्रशिक्षित हैं। आचार्य परमानंद गिरि के मुताबिक स्कूल खोलने का मुख्य उद्देश्य गौरेला पेंड्रा मरवाही में आदिवासी बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ते हुए उन्हें गुरु शिष्य की परंपरा और वैदिक अध्ययन से जोड़ना था। पिछले 15 सालों में इस प्रयास को सफलता मिली है और अब उन बच्चों के परिजन भी बेहतर महसूस करते हुए आश्रम से लगातार जुड़ रहे हैं।

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