फिर गूंज उठी पहाड़ी मैना की चहचहाहट: बस्तर में संरक्षण की पहल अब रंग लाने लगी, मैना मित्रों की पहल से बढ़ी संख्या

बस्तर के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में पहाड़ी मैना संरक्षण परियोजना के तहत स्थानीय समुदाय-वन विभाग के प्रयास से पक्षियों की संख्या में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है।

Updated On 2025-10-12 13:23:00 IST

पेड़ पर बैठे पहाड़ी मैना का झुंड

महेंद्र विश्वकर्मा- जगदलपुर। बस्तर जिले के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में पहाड़ी मैना के संरक्षण और संवर्धन के प्रयास स्थानीय समुदाय की भागीदारी और वन विभाग की समर्पित कार्यप्रणाली का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मैना मित्र कार्यक्रम ने न केवल ग्रामीण युवाओं को रोजगार से जोड़ा, बल्कि उन्हें प्रकृति संरक्षण के प्रहरी के रूप में स्थापित किया है।

इसी प्रकार समुदाय और विभाग के संयुक्त प्रयास जारी रहे, तो आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ का यह गौरव पक्षी पहाड़ी मैना पहले से अधिक सुरक्षित और समृद्ध रूप में जंगलों में गूंज रहा है। वर्ष 2022 में जहां केवल 50 से 60 मैना के झुंड को कोटमसर और नगलसर क्षेत्रों में देखा गया था। वहीं वर्ष 2025 में 600 से अधिक मैना अब 25 गांवों में 50 से 60 झुंडों में विचरण करते देखे जा रहे हैं।


संरक्षण और संवर्धन परियोजना की गई प्रारंभ
छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना अपनी मधुर आवाज और आकर्षक रूप रंग के लिए प्रसिद्ध है। यह पक्षी मुख्य रूप से कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के घने जंगलों का निवासी है। जब कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में पहाड़ी मैना की संख्या में कमी दर्ज की गई। तब वन विभाग कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान ने इनके संरक्षण के लिए बस्तर पहाड़ी मैना संरक्षण और संवर्धन परियोजना प्रारंभ की गई।

40 गांवों में लगातार जागरूकता कार्यक्रम आयोजित
इस परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय उद्यान से लगे ग्रामीण युवकों को मैना मित्र के रूप में शामिल किया गया ताकि उन्हें रोजगार से भी जोड़ा जा सके और साथ ही संरक्षण कार्यों में भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। लगभग 10 मैना मित्रों ने कांगेर घाटी से लगे 40 गांवों में लगातार जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए। साथ ही मैदानी कर्मचारी भी स्कूली बच्चों और ग्रामीण समुदाय के साथ जुड़कर संरक्षण के प्रयासों में सहभागी बने। हर वर्ष प्रजनन के मौसम में मैना मित्र घोंसलों की निगरानी करते हैं। इसके साथ ही शोधार्थी भी मैना मित्रों के साथ साप्ताहिक बैठकें कर व्यवहारिक पारिस्थिति का अध्ययन करते हैं। इन निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप अब इनकी संख्या में सकारात्मक वृद्धि देखी जा रही है।

वर्ष घोंसलों की संख्या मैना की संख्या झुंडों की संख्या

2022 20 50-60 5-10
2023 50 200-250 30-35
2024 80 300-400 40-45
2025 150 600 से अधिक 50-60

प्रजनन काल व घोंसला निर्माण
राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक नवीन कुमार ने बताया कि पहाड़ी मैना का प्रजनन काल क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुसार थोड़ा भिन्न होता हैए परंतु अधिकांशत: अप्रैल से जुलाई के बीच ये प्रजनन करती हैं। यह एक मोनोगेमस एक जोड़ा पक्षी है। नर और मादा मिलकर कटफोड़वा द्वारा बनाए गए पेड़ों के छेदों की तलाश करते हैं और टहनियां, पत्तियां और पंखों से अपने घोंसले को सजाते हैं। अंडे देने के बाद दोनों मिलकर अंडों की ऊष्मायन और बच्चों की देखभाल करते हैं। वर्ष 2025 में किए गए मॉनिटरिंग कार्य के दौरान कई घोंसलों से पहाड़ी मैना के बच्चे उड़ना सीखते हुए देखे गए। जैसे-जैसे मानसून करीब आता है यह इनके प्रजनन काल के अंत का संकेत होता है। इस अवधि में वन विभाग के कर्मचारी और मैना मित्र दोनों ही इनके आवास की सुरक्षा और घोंसलों के संरक्षण में सक्रिय रूप से जुटे रहते हैं।

कोई कसर नहीं छोड़ी
मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) स्टायलो मंडावी ने बताया कि, कांगेर घाटी के मैना मित्रों और मैदानी कर्मचारियों द्वारा घोंसलों के संरक्षण और अनुकूल आवासीय वातावरण सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। कटफोड़वा द्वारा बनाए गए प्राकृतिक छेदों में इनके घोंसलों की नियमित निगरानी की जा रही है ताकि इनके प्रजनन स्थलों को सुरक्षित रखा जा सके। पहाड़ी मैना की काली चमकदार पंखुड़ियां और पीली कलगी इसे छत्तीसगढ़ की गौरव का प्रतीक बनाती हैं। राज्य में इसके संरक्षण और संवर्धन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। इन पक्षियों को निवास स्थान के नुकसान और अवैध व्यापार जैसे खतरों से बचाने हेतु वन विभाग द्वारा सतत सतर्कता बरती जा रही है।

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