मानवाधिकार आयोग की जांच: सरपंच पति अवैध, सांसद-विधायक और पार्षद भी नहीं बना सकते रिश्तेदारों को प्रतिनिधि
सुप्रीम कोर्ट ने अब से दो साल पहले कहा था कि महिला सरपंचों के पतियों और अन्य पुरुष रिश्तेदारों द्वारा उनकी ओर से अधिकारों का प्रयोग करना गैरकानूनी प्रथा है।
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रायपुर। सुप्रीम कोर्ट ने अब से दो साल पहले कहा था कि निर्वाचित महिला सरपंचों के पतियों और अन्य पुरुष रिश्तेदारों द्वारा उनकी ओर से अधिकारों का प्रयोग करना असंवैधानिक और गैरकानूनी प्रथा है। सरपंच पतियों के दखल को अनुचित माना गया था, इसी आधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इसकी जांच कर रहा है। सरपंचों के अलावा यह भी देखा जा रहा है कि सांसद, विधायक व पार्षद अपने रिश्तेदारों को प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त तो नहीं कर रहे हैं? इसे असंवैधानिक बताया गया है। छत्तीसगढ़ में कितने नेताओं के रिश्तेदार प्रतिनिधि बनाए गए हैं, आयोग ने इसकी जानकारी मांगी है।
नेता अपने रिश्तेदारों को बना रहे हैं प्रतिनिधि
आयोग को मिली शिकायत में सांसदों, विधायकों, द्वारा निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के रिश्तेदारों को अपने संपर्क व्यक्ति या प्रतिनिधि के रूप में अनौपचारिक रूप से नियुक्त करने का मुद्दा भी उठाया गया है। पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में, जिसके परिणामस्वरूप संवैधानिक रूप से अधिदेशित स्थानीय स्वशासन निकायों के कामकाज में अनुचित हस्तक्षेप होने का आरोप है। ऐसी प्रथाओं का आरोप न केवल लोकतांत्रिक लोकाचार को नष्ट करता है बल्कि भारत के संविधान में निहित हस्तांतरण के सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है।
ये है मामला
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों के कामकाज में, विशेष रूप से महिलाओं के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में संवैधानिक आदेशों और मानवाधिकारों के लगातार उल्लंघन के बारे में गंभीर चिंताएँ व्यक्त करने वाली एक शिकायत प्राप्त हुई है। यह आरोप लगाया गया है कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संवैधानिक और न्यायिक सुरक्षा उपायों के बावजूद, निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को अक्सर नाममात्र या प्रतीकात्मक प्रमुख तक सीमित कर दिया जाता है, जबकि वास्तविक प्रशासनिक और निर्णय लेने की शक्तियाँ उनके पुरुष रिश्तेदारों द्वारा अनौपचारिक रूप से पद की शक्तियों और जिम्मेदारियों का प्रयोग करते हुए प्रयोग की जाती हैं।
नगरीय प्रशासन ने मंगाया ब्योरा
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का पत्र मिलने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार के नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने राज्य के सभी निकाय प्रमुखों से यह ब्योरा मांगा है कि सांसदों, विधायकों, पार्षदों के कितने रिश्तेदारों को प्रतिनिधि बनाया गया है।
छत्तीसगढ़ सहित राज्यों को नोटिस
इस पूरे मामले को लेकर आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की पीठ ने लोगों के मानवाधिकारों और महिलाओं के सम्मान के अधिकार की सुरक्षा के मामले में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 12 के तहत संज्ञान में लिया है। आयोग ने राज्य से पूछा है कि क्या आपके राज्य में, सांसदों और विधायकों द्वारा पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के रिश्तेदारों को सांसदों और विधायकों के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त करने की कोई प्रथा है? राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले को लेकर राज्य से चार सप्ताह के भीतर एटीआर यानि एक्शन टेकन रिपोर्ट मांगी है।