कांकेर-नारायणपुर की सीमा पर सोने की खोज: 28 साल पहले मिले चूना पत्थर की खदानों में उद्मियों की रुचि नहीं

बस्तर जिले में 28 साल पहले 5 गांवों में मिले थे चूना पत्थर के खदान। उस पर उद्योगपतियों की रूचि नहीं है। अब कांकेर-नारायणपुर की सीमा पर सोने की खोज हो रही है।

Updated On 2025-10-22 17:07:00 IST

बस्तर जिले के 5 गांवों में मिले चूना पत्थर के खदान

महेंद्र विश्वकर्मा-जगदलपुर। बस्तर जिले के छापर भानपुरी, सिवनी, अलनार, जुनागुड़ा एवं बड़ांजी में 28 वर्ष पूर्व रिसर्च पर चूना पत्थर की खदानें मिली हैं, लेकिन अभी तक उद्योगपतियों ने इस खदान में निवेश में कोई खास रुचि नहीं दिखाई है।

वहीं, इसके अलावा भी भौमिक, खनी कर्म के रिसर्च में कांकेर एवं नारायणपुर जिले की सीमा में सोना की खदान भी मिली पर इस पर अभी भी रिसर्च किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि, बस्तर क्षेत्र लंबे समय तक अपनी सांस्कृतिक धरोहर, घने वनों और खनिज संपदा के लिए पहचाना जाता रहा है। अब यही इलाका एक नए औद्योगिक युग की ओर कदम बढ़ा रहा है। केंद्र और राज्य सरकार की औद्योगिक नीतियों, निवेश प्रोत्साहन योजनाओं और बेहतर कनेक्टिविटी के कारण बस्तर निवेशकों की पहली पसंद बनता जा रहा है।

अर्थव्यवस्था को मिलेगी मजबूती
यह बदलाव न केवल क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा, बल्कि रोजगार, बुनियादी ढांचे और सामाजिक विकास के नए द्वार भी खोलेगा। बस्तर भारत के सबसे खनिज संपन्न इलाकों में से एक है। यहां आयरन ओर, बॉक्साइट, चूना पत्थर और डोलोमाइट जैसे खनिज प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हैं। खनिज के अलावा बस्तर में कृषि और वनोपज पर आधारित उद्योगों की भी बड़ी संभावनाएं हैं। तेंदूपत्ता, इमली, महुआ और लाख जैसे उत्पाद यहां की पहचान हैं। 


भविष्य की संभावनाएं
बताया जा रहा है कि आने वाले वर्षों में बस्तर केवल खनिज आधारित उद्योगों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आईटी, पर्यटन और सेवा क्षेत्र में भी विकास की बड़ी संभावनाएं हैं। ग्रीन इंडस्ट्रीज, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं और एडवेंचर टूरिज्म मिलकर बस्तर को पर्यावरणीय और आर्थिक रूप से सशक्त बनाएंगे। उद्योग और बैम्बू राफ्टिंग जैसे रोमांचक पर्यटन मॉडल मिलकर स्थानीय युवाओं और महिलाओं को रोजगार एवं आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं। आने वाले वर्षों में बस्तर देश का औद्योगिक हब भी बनकर उभरेगा।

मुख्यालय को दी सूचना
भौमिक तथा खनी कर्म क्षेत्रीय संचालनालय के उप संचालक प्रफुल्ल मांझी ने बताया कि, बस्तर जिले के चार गांवों में वर्ष 1997 में चूना पत्थर की खदानें मिली हैं। इसकी सूचना वर्ष 1997 में ही मुख्यालय को दी गई है।

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