कांकेर में ईसाईयों के खिलाफ माहौल: अब 19 गाँवों में मुनादी, बोर्ड लगे-पादरियों का प्रवेश निषेध
कांकेर जिले के बड़ेतेवड़ा गांव में अंतिम संस्कार को लेकर हुए विवाद ने हिंसक रूप ले लिया था। ग्रामीणों ने प्रार्थना सभागार में तोड़फोड़ की थी और आग लगा दी थी।
कांकेर। कांकेर जिले के बड़ेतेवड़ा गांव में अंतिम संस्कार को लेकर हुए विवाद ने हिंसक रूप ले लिया था। ग्रामीणों ने प्रार्थना सभागार में तोड़फोड़ की थी और आग लगा दी थी। विवाद को पुलिस ने सूझबूझ से खत्म कराया और वहां फिलहाल शांति है। लेकिन विवाद की आग पूरे कांकेर जिले में फैली हुई है। कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर विकासखंड अंतर्गत कुड़ाल गांव से शुरू हुई यह पहल अब जिले के 19 गांवों तक पहुंच चुकी है। गांव के बाहर लगाए गए बोडों पर साफ शब्दों में लिखा गया है। पास्टर गॉव में प्रवेश नहीं कर सकते। बोर्ड पहले एक गांव में लगाया गया, उसके बाद ऐसे गांव की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जहां पादरियों के प्रवेश पर पाबंदी लगाई गई है।
जानकारी के अनुसार, छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसा पहला बोर्ड कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर विकासखंड ग्रांव के कुड़ाल गांव में ग्राम सभा का आयोजन कर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने के बाद इसी साल लगाया गया। ग्राम सभा में ग्रामीणों ने अपने सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने की रक्षा का हवाला देते हुए यह निर्णय लिया। इसके बाद देखते ही देखते आसपास के गांवों ने भी इसी राह पर चलना शुरू कर दिया। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के आठ गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले होर्डिंग को मामले में बड़ा फैसला नवंबर 2025 में दिया।
अब बोर्ड लगाने की संख्या बढ़ती जा रही है
हाईकोर्ट ने कहा कि, यह होर्डिंग प्रलोभन या धोखाधड़ी के जरिये धर्मांतरण को रोकने के लिए लगाए गए थे और इन्हें असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित ग्राम सभाओं ने ये होर्डिंग स्थानीय जनजातियों और सांस्कृतिक विरासत के हितों की रक्षा के लिए एहतियाती उपाय के रूप में लगाए हैं। इसके बाद से अब बोर्ड लगाने की संख्या बढ़ती जा रही है।
19 गांव में लग चुके हैं बोर्ड
कुड़ाल गांव से शुरू हुआ यह सिलसिला जिले के 19 गांवों तक पहुंच चुका है। सूत्र बताते है कि आने वाले दिनों में अन्य गांवों में भी इस तरह के प्रस्ताव पारित होने की संभावना है। 19 गांव कुड़ाल, परवी जनकपुर, भीरागाँद घोडागाँव, जुनवानी, हवेचुर, घोटा, घोटिया, सुलगी, टेकाडोदा, बासला, जामगाव, चारमाठा, मुसुरपुट टा धौराभाटा, कुराठेमली लैंडारा, कोडेकुरों में बोर्ड लग चुके है। वहीं करीब दर्जनभर गांव में इसी तरह के प्रस्ताव लाने और बोर्ड लगाने की तैयारी की जा रही है।
धर्म का विरोध नहीं, धर्मांतरण को रोकने की योजना
बोर्ड जिन गांव में लगे हैं, उनमें अधिकतम सरपंच का यहीं कहना है कि आदिवासी समुदाय के भोले-भाले लोगों को प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराए जाने से वे चिंतित हैं, पुराने रीति-रिवाजों और सामाजिक ढांचे को खतरा है, इसलिए उन्होंने बोर्ड लगाए हैं ताकि बाहरी पादरी या प्रचारक बिना अनुमति गांव में न आएं। उन्होंने यह भी कहा कि इस निर्णय का लक्ष्य किसी धर्म का विरोध नहीं, बल्कि अनैतिक रूप से किए जा रहे धर्मांतरण को रोकना है।
फैसला किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं
ग्रामीणों का कहना है कि यह फैसला किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं है, बल्कि गांव की परंपराओं, सामाजिक एकता और संस्कृति की रक्षा के लिए लिया गया है। ग्राम सभा में यह बात सामने आई कि गांव में बाहरी हस्तक्षेप से सामाजिक सौहार्द प्रभावित हो रहा था, जिसके चलते यह निर्णय जरूरी हो गया। बोर्ड गांव की सीमा पर इस तरह लगाए गए हैं कि बाहर से आने वाला हर व्यक्ति उसे स्पष्ट रूप से देख सके।