बिहार चुनाव 2025: मछली-भात' पार्टी रह गई अधूरी- एनडीए की आंधी में खाता नहीं खोल पाए डिप्टी सीएम के दावेदार!
बिहार चुनाव 2025 में NDA की प्रचंड जीत के सामने मुकेश सहनी की VIP एक भी सीट नहीं जीत पाई, उनका डिप्टी सीएम बनने का सपना टूट गया ।
करारी हार के बाद, सहनी के राजनीतिक भविष्य और महागठबंधन में उनकी भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
पटना डेस्क : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर राज्य के राजनीतिक समीकरणों को झकझोर कर रख दिया है। एनडीए गठबंधन ने 200 से अधिक सीटों पर प्रचंड बहुमत हासिल करते हुए सत्ता में वापसी की, जबकि विपक्षी महागठबंधन महज़ 35 सीटों तक ही सीमित होकर रह गया।
इस चुनावी नतीजे में सबसे बड़ी विफलता विकासशील इंसान पार्टी (VIP) और उसके मुखिया मुकेश सहनी के हिस्से आई, जिन्होंने खुद को महागठबंधन की तरफ से उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया था। हालांकि, 15 सीटों पर दाव लगाने के बावजूद उनकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई और उसका खाता तक नहीं खुल सका।
डिप्टी सीएम का सपना टूटा, 'मछली-भात' की पार्टी की तैयारी धरी रह गई
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन ने बड़ा दाव खेलते हुए तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री और मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। महागठबंधन के भीतर जीत का पक्का भरोसा था और चुनाव परिणाम आने के बाद जश्न के तौर पर 'मछली-भात' की ज़ोरदार पार्टी की तैयारियां भी चल रही थीं।
सहनी के नेतृत्व वाली VIP ने महागठबंधन के तहत 15 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन चुनावी नतीजों ने विपक्ष के सभी दाव फेल कर दिए। बीजेपी-जेडीयू की आंधी इतनी तेज़ थी कि विरोधी दल पूरी तरह धराशायी हो गए, और उपमुख्यमंत्री बनने का सहनी का सपना अधूरा रह गया। VIP क्लीन बोल्ड हो गई और एक भी सीट नहीं जीत पाई।
2020 की सफलता बनाम 2025 की करारी हार: पाला बदलना पड़ा भारी
मुकेश सहनी की पार्टी VIP ने 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 11 सीटों पर लड़कर 4 सीटों पर जीत हासिल की थी, जिससे वह बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरी थी। हालांकि, 2025 में एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल होने का सहनी का फैसला पार्टी के लिए घातक साबित हुआ। 15 सीटों पर दाव लगाने के बावजूद शून्य सीटें मिलना यह स्पष्ट करता है कि महागठबंधन में शामिल होने का उनका दाव जनता के बीच विफल रहा और यह हार उनकी राजनीतिक ताकत को गंभीर रूप से कमजोर करती दिख रही है।
महागठबंधन की रणनीति पर सवाल - आरजेडी, कांग्रेस का भी निराशाजनक प्रदर्शन
VIP की करारी हार ने महागठबंधन की पूरी चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 15 सीटों पर एक भी जीत न मिलना यह दर्शाता है कि तेजस्वी यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रचार करने और खुद को डिप्टी सीएम घोषित करवाने की उनकी रणनीति मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर पाई।
इतना ही नहीं, महागठबंधन के प्रमुख सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल लगभग 25 सीटों पर सिमटती दिखी, जबकि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का प्रदर्शन भी बहुत निराशाजनक रहा, जो बमुश्किल 5 सीटें ही जीत पाई।
मुकेश सहनी ने मानी हार, जनादेश का सम्मान करने की बात कही
चुनाव नतीजों के स्पष्ट होने के बाद VIP प्रमुख मुकेश सहनी ने मीडिया के सामने आकर अपनी हार स्वीकार की। उन्होंने कहा, "हम इस जनादेश को स्वीकार करते हैं और जो जीते हैं- NDA, उनको मैं बधाई देता हूं।" सहनी ने यह भी कहा कि वह जनादेश का सम्मान करते हुए हार स्वीकार करते हैं और आने वाले समय में वह इस विफलता के कारणों पर गहन मंथन करेंगे।
हार को स्वीकार करने की यह विनम्रता उनके राजनीतिक करियर के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जहा उन्हें अपनी आगे की रणनीति पर विचार करना होगा।
हार का ठीकरा NDA पर फ़ोड़ा - "माताओं-बहनों का वोट 10,000 रुपये देखकर मिला"
हार स्वीकार करने के बावजूद, मुकेश सहनी ने NDA की इतनी बड़ी जीत के पीछे एक बड़ा आरोप लगा दिया। उन्होंने कहा कि "माताओं-बहनों का वोट NDA के पक्ष में गिरा है, जिसके कारण उनकी इतनी बड़ी जीत हो रही है।" उन्होंने आगे आरोप लगाया कि बिहार की जनता हज़ारों समस्याओं को भूल गई और "10,000 रुपये देखकर एनडीए को वोट किया।"
सहनी के अनुसार, अब एनडीए की बारी है कि वह बिहार की माताओं और बहनों से किए गए सभी वादों को निभाए।
निषाद समुदाय के चेहरे का भविष्य- अब आगे क्या?
मुकेश सहनी बिहार में निषाद समुदाय के एक प्रमुख चेहरे के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने चुनाव से पहले 'वोटर अधिकार यात्रा' में राहुल गांधी के साथ मंच साझा किया था और बड़े-बड़े दावे किए थे। हालांकि, एक भी सीट न जीत पाना यह दिखाता है कि निषाद समुदाय का वोट बैंक पूरी तरह से उनके पक्ष में एकजुट नहीं हो पाया, या फिर एनडीए की रणनीति ज़्यादा प्रभावी साबित हुई।
इस करारी हार के बाद, सहनी के राजनीतिक भविष्य और महागठबंधन में उनकी भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। उन्हें अब अपनी पार्टी के आधार को मजबूत करने और भविष्य की रणनीति तय करने के लिए गहन विचार-विमर्श करना होगा।