गणेश चतुर्थी 2025: जानिए गणपति बप्पा की पूजा करने का सही नियम

गणेश चतुर्थी 2025 पर गणपति बप्पा की पूजा करने का सही तरीका और शुभ मुहूर्त जानें। घर पर गणेश स्थापना की विधि, द्वादश नाम, और पूजा सामग्री सहित पूरी जानकारी।

Updated On 2025-09-24 19:58:00 IST

Ganesh Chaturthi 2025: कल बुधवार, 27 अगस्त 2025 को गणेश चतुर्थी है। कल से ही आरंभ होगा गणेशोत्सव। वैसे तो आपके घर के आस-पास सार्वजनिक स्थलों पर सामूहिक रूप से गणेश पूजन का आयोजन किया ही जाएगा। लेकिन अगर आप अपने घर में गणपति को प्रतिष्ठित कर पूजन करना चाहते हैं तो यहां हम आपको इसकी विधि बता रहे हैं।

सनातन धर्म में हर तरह की पूजा-उपासना का प्रारंभ गणपति पूजन से होता है। इसीलिए गणेश जी को प्रथम पूज्य कहा गया है। गणपति, देवताओं के अध्यक्ष हैं। इसीलिए इन्हें ‘गणाध्यक्ष’ भी कहा जाता है। द्वादश नाम रूप से गणपित के विराट स्वरूप का बोध होता है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से शुक्ल चतुर्दशी पर्यंत, द्वादश दिवसीय पूजा-अर्चना को वार्षिकोत्सव के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक महीने की चतुर्थी तिथियां गणेश चतुर्थी नाम से प्रसिद्ध हैं, लेकिन भाद्रपद की गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है। देव, ऋषि, पितृं तीनों प्रकार के कर्म में गणेश जी विराजित किए जाते हैं। किसी भी शुभ मांगलिक कार्य का प्रारंभ गणेश पूजन से ही होता है। लोक प्रचलन में जन सामान्य भी ऐसा कहते सुनाई देते हैं कि अब आप अपने काम का श्रीगणेश करें।

ऐसे आरंभ हुआ देशव्यापी आयोजन

गणेश चतुर्थी पर घर-घर में किए जाने वाला पूजन, वार्षिक गणेश उत्सव कैसे बना, इसके पीछे भी ऐतिहासिक घटना और ध्येय निहित रहा है। दरअसल, ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों की दासता से भारत माता को स्वतंत्र करने का संकल्प लेते हुए लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने गणाधिपति के पूजन को राष्ट्रोत्सव के रूप में प्रारंभ कर भारतीय जन समुदाय में राष्ट्रीय भावना और सांस्कृतिक चेतना का संचार किया था। आज यह उत्सव भारत ही नहीं विश्व के अनेक देशों में रहने वाले भारतीयों के द्वारा मनाया जाता है।

ऐसे करें गणपति स्थापना-पूजन

सार्वजनिक पार्कों और मंडपों में विधिवत गणेश पूजन, विविध उत्सव समितियों द्वारा तो आयोजित किया ही जाता है। लेकिन अनेक श्रद्धालु अपने घर में भी गणपति को स्थापित कर यह उत्सव मनाते हैं। ऐसे में किस विधि से उनका पूजन करें, आप जरूर जानना चाहेंगी। वस्तुत: गणेश जी की पूजन विधि सर्वत्र एक समान ही होती है। इसके लिए सर्वप्रथम श्रद्धापूर्वक अपने पूजा स्थान पर गणपति की चौकी तैयार कर उसे लाल वस्त्र से आच्छादित कर लें। अब उस पर कलश स्थापित कर श्रीगणेश विग्रह (प्रतिमा) को प्रतिष्ठित करें। हाथ में रोली, चंदन, अक्षत, लाल पुष्प और दूर्वा लेकर उनका आह्वान एवं ध्यान करें।

‘रिद्धि-सिद्धि सहिताय श्रीगणेशाय नम:’ का जाप करते हुए गणेशजी को अर्पित करें। इसके बाद आचमनी पात्र (चम्मच) में जल लेकर पाद्यं, अर्ध्य, आचमनीयं, स्नानीयम् का उच्चारण करते हुए गणेश जी की प्रतिमा पर अर्पित करें। तत्पश्चात गणपति विग्रह को पंचामृत से स्नान कराएं। फिर एक आचमनी जल चढ़ाएं। उसके बाद उनको वस्त्र पहनाएं। एक यज्ञोपवीत (जनेऊ) अर्पित करें। फिर गणपतिजी को तिलक करें, अक्षत चढ़ाएं और दूर्वा के बारह तिनके चढ़ाएं। इसके पश्चात धूप, दीप प्रज्ज्वलित करें। इसके बाद गणपति को नैवेद्य (प्रसाद) भोग लगाएं। गणेश जी का सबसे प्रिय भोग मोदक है, अत: दस मोदक (लड्डू) उन्हें अर्पित करें। इसके बाद पान, सुपारी, लौंग, इलायची, फल चढ़ाएं। साथ ही कुछ दक्षिणा चढ़ाएं। इसके पश्चात हाथ में पुष्प, अक्षत, रोली, दूर्वा लेकर उनके द्वादश नामों का उच्चारण करें।

गणपति के द्वादश नाम

ऊँ सुमुखाय नम:, ऊँ एकदंताय नम:

ऊँ कपिलाय नम:, ऊँ गजकर्णकाय नम:

ऊँ लंबोदराय नम:, ऊँ विकटायनम:

ऊँ विघ्ननाशकाय नम:, ऊँ विनायकाय नम:

ऊँ धूम्रकेतवे नम:, ऊँ गणाध्यक्षाय नम:

ऊँ भालचंद्राय नम:, ऊँ गजाननाय नम:

इस प्रकार स्तुति करते हुए गंधाक्षत, पुष्प और दूर्वा गणपति को अर्पित कर दें। फिर ‘ऊँ गं गणपतये नम:’ मंत्र का द्वादश (12) बार जय करें। फिर आरती, पुष्पांजलि के बाद भजन, कीर्तन से उत्सव मनाते रहें। इस प्रकार संक्षिप्त विधि से की गई गणपति की पूजा भी अत्यंत फलदायी होती है।

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