हरतालिका तीज 2025: व्रत कथा, पार्वती-शिव आरती; डाउनलोड PDF

hariyali Teej Vrat Katha aarti in hindi
X
हरतालिका तीज की व्रत कथा, माता पार्वती और भगवान शिव की आरती पढ़ें। व्रती महिलाएं इनसे प्राप्त करें सौभाग्य, प्रेम और वैवाहिक सुख का आशीर्वाद।

Hartalika Teej 2025: हरतालिका तीज एक पावन व्रत है जिसे सुहागिन स्त्रियां अखंड सौभाग्य, सुखी वैवाहिक जीवन और भगवान शिव-पार्वती की कृपा प्राप्ति के लिए करती हैं। तीज पर विशेष रूप से माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है। महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और रात भर जागरण करते हुए आरती और व्रत कथा सुनती हैं। यहां पढ़ें हरतालिका तीज की व्रत कथा, माता पार्वती की आरती और भगवान शिव की आरती, जो आपके व्रत को पूर्णता और शुभता प्रदान करेंगी।

हरतालिका तीज मां पार्वती आरती (Hartalika Teej Mata Parvati Aarti)

जय पार्वती माता, जय पार्वती माता

ब्रह्म सनातन देवी, शुभ फल की दाता

जय पार्वती माता...


अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता

जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता

जय पार्वती माता...


सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा

देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा

जय पार्वती माता...


सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता

हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता

जय पार्वती माता...


शुम्भ-निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता

सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा

जय पार्वती माता...


सृष्टि रूप तुही जननी शिव संग रंगराता

नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता

जय पार्वती माता…


देवन अरज करत हम चित को लाता

गावत दे दे ताली मन में रंगराता

जय पार्वती माता...


श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता

सदा सुखी रहता सुख संपति पाता

जय पार्वती माता...।



शिव जी की आरती (Hartalika Teej Shiv Ji Ki Aarti )

ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओमकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, ब्रह्मा विष्णु सदाशिव

अर्द्धांगी धारा

ॐ जय शिव ओमकारा

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे, स्वामी पञ्चानन राजे

हंसासन गरूड़ासन, हंसासन गरूड़ासन

वृषवाहन साजे

ॐ जय शिव ओमकारा

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे, स्वामी दसभुज अति सोहे

तीनो रूप निरखता, तीनो रूप निरखता

त्रिभुवन जन मोहे

ॐ जय शिव ओमकारा

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी, स्वामी मुण्डमाला धारी

त्रिपुरारी कंसारी, कंचन बिन मन चंगा

कर माला धारी

ॐ जय शिव ओमकारा

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे, स्वामी बाघम्बर अंगे

सनकादिक ब्रम्हादिक, ब्रम्हादिक सनकादिक

भूतादिक संगे

ॐ जय शिव ओमकारा

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी, स्वामी चक्र त्रिशूलधारी

जगहर्ता जगकर्ता, जगहर्ता जगकर्ता

जगपालन कारी

ॐ जय शिव ओमकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका, स्वामी जानत अविवेका

प्रानवाक्षर के मध्ये, प्रानवाक्षर के मध्ये

ये तीनो के धार

ॐ जय शिव ओमकारा

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे, स्वामी जो कोइ नर गावे

कहत शिवानन्द स्वामी, कहत शिवानन्द स्वामी

मनवान्छित फल पावे

ॐ जय शिव ओमकारा

जय शिव ओमकारा प्रभु हर शिव ओमकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव

अर्द्धांगी धारा

ॐ जय शिव ओमकारा


हरतालिका तीज व्रत कथा (hartalika Teej Vrat Katha)

हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबाकर व्यतीत किए। माघ की विक्राल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।

तुम्हारे पिता तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। उन्हें बड़ा क्लेश होता था। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा।

नारदजी ने कहा- गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं।

नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गद्ग।द हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्नचित होकर वे बोले- श्रीमान्‌! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।

तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। मगर इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।

तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया – मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिवशंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी।

उसने कहा- सखी! प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।

तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी।

इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागीं। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।

तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा- मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।

तब मैं ‘तथास्तु’ कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।

तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा- पिताजी! मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे। गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधानपूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया।

हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।

|| कथा समाप्त ||

ये भी पढ़ें: आज का पंचांग, शुभ मुहूर्त, शुभ योग; नक्षत्र और राहुकाल

ये भी पढ़ें: अखंड सौभाग्य की कामना का पर्व, पढ़ें पौराणिक कथा और महत्व

ये भी पढ़ें: हरतालिका तीज पर सरगी का शुभ समय, क्या खाएं और क्या न करें?, जानें

ये भी पढ़ें: कुंवारी कन्याएं इन नियमों के साथ करें व्रत, मिलेंगे शिव जैसे पति

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story