छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र बॉर्डर पर 4 नक्सली ढेर: गढ़चिरौली में पुलिस कमांडो यूनिट के साथ हुई मुठभेड़, हथियारों का जखीरा बरामद

Maharashtra Gadchiroli Naxalites Operation: मृत नक्सलियों पर 36 लाख रुपये का बड़ा इनाम था। इसके अलावा, यह भी पता चला है कि नक्सली तेलंगाना सीमा पार कर गढ़चिरौली में घुसपैठ कर रहे थे। संभवतः उनकी आगामी लोकसभा चुनावों में हिंसा करने की एक बड़ी योजना थी।

Updated On 2024-03-19 09:51:00 IST
प्रतीकात्मक।

Maharashtra Gadchiroli Naxalites Operation: छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र बॉर्डर से बड़ी खबर है। गढ़चिरौली जिले में महाराष्ट्र पुलिस के सी-60 कमांडो और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई। जिसमें कमांडो यूनिट ने चार नक्सलियों को मार गिराया। बलों ने चार विद्रोहियों के शव, एक एके-47 कार्बाइन, दो पिस्तौल और नक्सली साहित्य सहित हथियारों का जखीरा भी बरामद किया।

नक्सली पर 36 लाख रुपए का इनाम था
मृत नक्सलियों पर 36 लाख रुपये का बड़ा इनाम था। इसके अलावा, यह भी पता चला है कि नक्सली तेलंगाना सीमा पार कर गढ़चिरौली में घुसपैठ कर रहे थे। संभवतः उनकी आगामी लोकसभा चुनावों में हिंसा करने की एक बड़ी योजना थी। योजना के तहत वे घुसपैठ करके आए थे। जानकारी के मुताबिक, इलाके में अभी भी सर्च ऑपरेशन जारी है। 

नक्सलियों की पहचान उजागर नहीं
महाराष्ट्र पुलिस को इनपुट मिला था कि नक्सली गढ़चिरौली के कोलामरका पहाड़ों पर जंगल में छिपे हुए हैं। नक्सलियों की मंशा लोकसभा चुनाव में बड़ी वारदात को अंजाम देने की है। इसके बाद महाराष्ट्र पुलिस की स्पेशल सी 60 कमांडो यूनिट, सीआरपीएफ की टीम ने जंगल में सर्च ऑपरेशन चलाया। मंगलवार सुबह नक्सलियों की सुरक्षाबलों से मुठभेड़ हो गई। नक्सलियों ने बलों पर फायरिंग शुरू कर दी। जवानों ने खुद का बचाव करते हुए मुंहतोड़ जवाब दिया। जिसमें चार नक्सली मारे गए। 

सर्च ऑपरेशन के बाद चारों नक्सलियों के शव बरामद किए गए। अभी मारे गए नक्सलियों की पहचान उजागर नहीं की गई है। एसपी नीलोत्पल ने बताया कि अन्य नक्सलियों को पकड़ने के लिए सर्च ऑपरेशन चल रहा है। 

छत्तीसगढ़ और तेलंगाना से सटी है सीमा
गढ़चिरौली जिला महाराष्ट्र के दक्षिणपूर्वी कोने में स्थरित है। यह पूर्व में छत्तीसगढ़ और दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में तेलंगाना से सटा है। यह आदिवासी जिला है। गोंड और माडिया समुदाय के लोग रहते हैं। यहां बंगाली समुदाय के लोग भी रहते हैं, जो 1972 के बांग्ला विभाजन के बाद यहां आकर बस गए थे। 

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