Gold: भारत के घरों में GDP से भी ज्यादा सोना! 5 ट्रिलियन डॉलर की इस छुपी दौलत से बदल सकती है देश की तस्वीर

भारत के घरों में मौजूद सोने की कीमत 5 ट्रिलियन डॉलर के पार पहुंच गई है, जो देश की जीडीपी से भी ज्यादा है। जानिए इस छुपी पूंजी का अर्थव्यवस्था पर क्या असर है और क्यों यह नीति निर्माताओं के लिए बड़ी चुनौती है।

Updated On 2025-12-29 13:40:00 IST

भारत के घरों में मौजूद सोने की कीमत 5 ट्रिलियन डॉलर के पार पहुंच गई है, जो देश की जीडीपी से भी ज्यादा है। 

नई दिल्ली। सोने की कीमतों में आई ऐतिहासिक तेजी ने भारत को लेकर एक बेहद दिलचस्प और चौंकाने वाली तस्वीर पेश की है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना 4,500 डॉलर प्रति औंस से ऊपर पहुंचने के बाद भारत के घरों में मौजूद सोने की कुल कीमत 5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक आंकी जा रही है। यह आंकड़ा भारत की मौजूदा जीडीपी से भी बड़ा है, जो करीब 4.1 ट्रिलियन डॉलर के आसपास है। यह तुलना केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज, उसकी सोच और अर्थव्यवस्था में सोने की गहरी जड़ों को दिखाती है। एक अनुमान के मुताबिक भारतीय परिवारों के पास लगभग 34,600 टन सोना है। मौजूदा ऊंची कीमतों पर इसका मूल्य 5 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा बैठता है। भारत में सोना सिर्फ एक धातु नहीं है, बल्कि यह परंपरा, आस्था और सामाजिक सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।

मुश्किल दौर में सबसे भरोसेमंद साथी है सोना

शादी-ब्याह, त्योहार, मुश्किल समय और पीढ़ी दर पीढ़ी संपत्ति बचाने का सबसे भरोसेमंद जरिया लंबे समय से सोना ही रहा है। यही वजह है कि जब देश तेजी से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, तब भी सोने के प्रति लोगों का भरोसा कम नहीं हुआ है। हालांकि अर्थशास्त्री इस तुलना को सीधे तौर पर नहीं देखते। जीडीपी एक साल में पैदा होने वाली आय और उत्पादन को दिखाती है, जबकि सोना जमा संपत्ति है। फिर भी यह अंतर यह बताता है कि भारतीय परिवारों की कुल संपत्ति में सोने की भूमिका कितनी बड़ी है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सोने की बढ़ती कीमतें परिवारों के लिए एक तरह का ‘वेल्थ इफेक्ट’ पैदा करती हैं, यानी संपत्ति बढ़ने का अहसास, जिससे खर्च और निवेश को सहारा मिल सकता है। लेकिन सभी इससे सहमत नहीं हैं।

वित्तीय संस्थाएं सोने को मानती हैं सबसे सुरक्षित

अतीत के अनुभव बताते हैं कि सोने की कीमतें बढ़ने के बावजूद उपभोग में कोई बड़ा उछाल नहीं आया। इसका कारण भारतीय व्यवहार में छिपा है। ज्यादातर घरों में सोना गहनों के रूप में रखा जाता है और लोग इसे रोजमर्रा की संपत्ति की तरह नहीं आंकते। शेयर या म्यूचुअल फंड की तरह सोने की कीमतों पर लगातार नजर नहीं रखी जाती। इसलिए कीमत बढ़ने पर भी लोग इसे बेचकर खर्च करने के बजाय भविष्य की सुरक्षा के तौर पर संभालकर रखते हैं। भारत दुनिया में सोने का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और वैश्विक मांग का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है। हाल के सालों में गहनों के साथ-साथ सिक्कों और बार के रूप में निवेश की मांग भी बढ़ी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अपने भंडार में सोना बढ़ाया है, जिससे साफ है कि सोने को केवल आम लोग ही नहीं, बल्कि संस्थाएं भी सुरक्षित संपत्ति मानती हैं।

इस पूंजी को उत्पादक निवेश में बदलना चुनौती

सोने की उपयोगिता के बावजूद नीति निर्माताओं के लिए यह एक चुनौती बना हुआ है। आर्थिक नजरिए से देखा जाए तो सोना एक निष्क्रिय संपत्ति है, जो न तो उत्पादन बढ़ाता है और न ही रोजगार। सरकारें चाहती रही हैं कि लोग फिजिकल गोल्ड की बजाय गोल्ड बॉन्ड, ईटीएफ या डिजिटल विकल्पों की ओर जाएं, ताकि इस संपत्ति को अर्थव्यवस्था के काम में लाया जा सके। लेकिन लोगों का भरोसा आज भी ठोस सोने पर ही टिका है। कुल मिलाकर, भारत के घरों में जमा 5 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का सोना देश की आर्थिक ताकत का संकेत भी है और एक विरोधाभास भी। यह सुरक्षा और स्थिरता का प्रतीक है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी खड़ा करता है कि इतनी बड़ी संपत्ति को कैसे विकास और उत्पादक निवेश में बदला जाए।

रिपोर्ट: एपी सिंह।

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