Cost Cutting: कार कंपनियां मुनाफा बढ़ाने के लिए कर रहीं खेला, जानें गाड़ियों से कौन से फीचर्स हुए गायब
कंपनियों की कॉस्ट-कटिंग स्ट्रैटजी मार्जिन बनाने के लिए फायदेमंद है, लेकिन ग्राहकों को लंबी अवधि में इससे नुकसान होता है। उन्हें फीचर्स और कीमतों में समझौता करना पड़ता है।
Cost Cutting: इन दिनों कार निर्माता कंपनियां साल में दो से ज्यादा बार गाड़ियों की कीमतें बढ़ा रही हैं। इस कारण पहले से किफायती माने जाने वाले मॉडल्स भी अब महंगे हो गए हैं। साथ ही, कंपनियां लागत कम करने और मुनाफा बढ़ाने के लिए गाड़ियों से कई ज़रूरी फीचर्स या तो हटा रही हैं या फिर उन्हें अपडेट नहीं कर रही हैं। इसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ता है, जिन्हें ये फीचर्स आफ्टरमार्केट से जुड़वाने के लिए अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। यहां ऐसे कुछ जरूरी फीचर्स के बारे में बताया गया है, जिन्हें अब कई कारों में स्टैंडर्ड रूप में शामिल नहीं किया जा रहा है।
1) व्हील क्लैडिंग हो रही गायब
कई एंट्री-लेवल कारों जैसे मारुति ऑल्टो, टाटा टियागो और रेनो क्विड के बेस वेरिएंट्स में अब व्हील क्लैडिंग नहीं दी जा रही। यह फीचर न केवल गाड़ी के केबिन में होने वाले शोर को कम करता है, बल्कि राइड क्वालिटी को भी बेहतर बनाता है। लेकिन इसे हटाकर कंपनियां लागत घटा रही हैं।
2) रियर वाइपर का अभाव
सिर्फ किफायती नहीं, बल्कि कई प्रीमियम कारों के बेस वेरिएंट्स में भी अब रियर वाइपर नहीं मिलता। जबकि बारिश या कोहरे के दौरान पीछे की विजिबिलिटी बनाए रखने के लिए यह एक बेहद जरूरी फीचर है।
3) वन-टच अप-डाउन विंडोज की कमी
जब कारों में ऑटोमैटिक सीट्स और सनरूफ जैसे फीचर्स मिल रहे हैं, तब भी कई मॉडल्स में वन-टच पावर विंडो नहीं दी जाती। इस तकनीक से एक बार बटन दबाने पर ही विंडो पूरी तरह ऊपर या नीचे हो जाती है, जिससे ड्राइविंग के दौरान सुविधा बढ़ती है।
4) हैलोजन केबिन लाइट्स का इस्तेमाल
बाहर से कारें भले ही LED हेडलाइट और टेललाइट से सजी हों, लेकिन केबिन में अब भी कई मॉडल्स में हैलोजन लाइट दी जा रही है। यह न सिर्फ पुराना लुक देती है बल्कि कम रोशनी में पढ़ना या कुछ ढूंढना मुश्किल बनाती है।
5) बूट लाइट भी कटौती की शिकार
बूट लाइट, जो रात में सामान रखने या निकालने में मदद करती है, अब कई मिड-साइज कारों से भी गायब हो रही है। कॉस्ट कटिंग के चलते यह फीचर अब स्टैंडर्ड नहीं रहा और इसे आफ्टरमार्केट से जोड़वाने पर 2 से 3 हजार रुपए का अतिरिक्त खर्च आता है।
कंपनियों की यह कॉस्ट-कटिंग रणनीति उनके मार्जिन के लिए तो फायदेमंद है, लेकिन ग्राहकों को लंबी अवधि में इससे नुकसान होता है। वे या तो फीचर्स की कमी के साथ समझौता करते हैं या फिर एक्स्ट्रा खर्च उठाकर उन्हें बाहर से लगवाते हैं। ऐसे में कार खरीदते समय सिर्फ कीमत ही नहीं, फीचर्स की लिस्ट देखना भी जरूरी है।
(मंजू कुमारी)