जानिए: क्यों सुर्खियों में है GST, क्या हैं फायदे और क्या है नुकसान

नई दिल्ली. लोकसभा में केंद्र सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी संशोधन) विधेयक को पेश कर दिया है, जिसका जो पिछले कई सालों से वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी चर्चा में रहा और इसका इंतजार खत्म होने की राह पर है। इस विधेयक को संसद की मंजूरी और फिर राष्ट्रपति की मुहर लगते ही आम जनता को देशभर में पेट्रोल-डीजल व अन्य एक जैसे सामान का दाम एक ही हो जाएगा। सरकार का मकसद देश में वस्तु और कर में एक रूपता लाना है।
हां इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता जहां इस विधेयक का लाभ होगा तो कहीं न कहीं इसके नुकसान को भी आंका जा सकेगा। सूत्रों के अनुसार जीएसटी लागू होने से लाभों का आकलन किया जाए तो देश की जीडीपी दो प्रतिशत फीसदी तक बढ़ सकती है? और वहीं कर चोरी पर लगाम लगने के साथ कर वसूली भी बढ़ना तय है।
सरकार का मकसद है कि जीएसटी के जरिए कर के स्वरूप में पारदर्शिता आए यानि भेदभाव या असमानता किसी परिदृश्य पर न हों। विशेषज्ञों का तो मानना है कि इससे कहीं हद तक कर विवादों में भी कमी आएगी और लंबित विवादों का निपटारा सहजता से किया जा सकेगा। इसका कारण है कि जीएसटी लागू होने से कर कानूनों और विनियमन जैसे मामलों से छुटकारा मिलेगा।
इस विधेयक में प्रावधानों के मुताबिक वस्तु और कर संबन्धी ऑनलाइन कर दिया जाएगा। मसलन बिक्रीकर, सेवाकर और उत्पादन शुल्क की जगह जीएसटी ले लेगा। जीएसटी लागू होने के बाद सरकार का कर सुधारों के लिए यह विधेयक मिल का पत्थर साबित होगा। क्योंकि जीएसटी के तहत पूरे देश में एक ही दाम पर कर लागू होगा।
नुकसान: जीएसटी को लेकर राज्य सरकारों में चिंता भी है। बड़ा सवाल है कि टैक्स स्लैब क्या होगा और नुकसान हुआ तो उसकी भरपाई कौन करेगा। कहा जा रहा है कि जीएसटी का सिस्टम पूरी तरह तैयार नहीं है। इसके अलावा राज्य और केंद्र के बीच टैक्स बंटवारे को लेकर भी सवाल है। टैक्स बढ़ाने या घटाने का फैसला कौन करेगा इसपर भी चिंता है। राज्यों को मिली मनर्मजी से टैक्स वसूलने की छूट खत्म हो जाएगी। राज्यों की मांग है कि सरकार इस मुद्दे का कोई हल निकाले, या फिर उन्हें भारी-भरकम मुआवजा दे। वैसे मुआवजा न मिलने की स्थिति में राज्य सरकारों की मांग है कि पेट्रोलियम और एंट्री टैक्स को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाए।
फायदा: गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लागू होने से देश की जीडीपी 2 फीसदी तक बढ़ सकती है। इससे टैक्स चोरी कम होगी और टैक्स कलेक्शन बढ़ेगा। टैक्स का ढांचा पारदर्शी होगा और असमानता नहीं होगी। काफी हद तक टैक्स विवाद कम होंगे। ढेरों टैक्स कानून और रेगुलेटरों का झंझट नहीं होगा। सब कुछ ऑनलाइन होगा।
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