जानिए 59वींं पुण्यतिथि पर, कैसे बने डॉ. आंबेडकर दलितों के मसीहा

जानिए 59वींं पुण्यतिथि पर, कैसे बने डॉ. आंबेडकर दलितों के मसीहा
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पिछड़ी जातियों के अधिकारों के लिए भी निरंतर संघर्ष किया।
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नईदिल्ली. डॉ. आंबेडकर को प्राय दलितों के उद्धारक के रूप में पहचाना जाता है जबकि वे सभी दलित वर्गों दलितों और पिछड़ों के अधिकारों के लिए लड़े थे। परन्तु वर्ण व्यवस्था के कारण पिछड़ी जातियां जो कि शूद्र हैं अपने आप को अछूतों (दलितों) से सामाजिक सोपान पर ऊँचा मानती हैं। एक परिभाषा के अनुसार पिछड़ी जातियां शूद्र हैं तो दलित जातियां अति शूद्र हैं।
अंतर केवल इतना है कि पिछड़ी जातियां सछूत और दलित जातियां अछूत मानी जाती हैं। यह भी एक एतिहासिक सच्चाई है कि सछूत होने के कारण पिछड़ी जातियों का कुछ क्षेत्रों में अछूतों से अधिक शोषण हुआ है। यह भी उल्लेखनीय है कि पिछड़ी जातियां कट्टर हिन्दुवाद के चंगुल में फंसी रही हैं जबकि दलित हिन्दू धर्म के खिलाफ निरंतर विद्रोह करते रहे हैं। सामाजिक श्रेष्ठता के भ्रम के कारण पिछड़ी जातियां डॉ. आंबेडकर को अपना नेता न मान कर दलितों का नेता ही मानती आई हैं।
यह इसी लिए भी है क्योंकि अधिकतर पिछड़ी जातियां सवर्ण हिन्दुओं के प्रभाव में रही हैं और उन्हें डॉ. आंबेडकर के बारे में बराबर भ्रमित किया जाता रहा है ताकि वे डॉ. आंबेडकर की विचार धारा से प्रभावित होकर दलितों के साथ एकता स्थापित न कर लें और सवर्णों के लिए बड़ी चुनौती पैदा न कर दें। पिछड़ों और दलितों में इस दूरी के लिए दलित और पिछड़ों के नेता भी काफी हद तक जिम्मेवार हैं जो कि जाति की राजनीति करके अपनी रोटी सेंकते रहे हैं। अब अगर एतहासिक परिपेक्ष्य में देखा जाये तो डॉ. आंबेडकर ने जहाँ पद दलित जातियों के अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्ष किया वहीँ उन्होंने पिछड़ी जातियों के अधिकारों के लिए भी निरंतर संघर्ष किया।
नीचे की स्लाइड्स में जानिए, क्यों कहा जाता है दिलतों का मसीहा डॉ. आंबेडकर को -
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