विजयादशमी: शिवनगरी ओंकारेश्वर में नहीं होता रावण दहन, जानें यहां की शाही परंपरा 

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विजयादशमी: शिवनगरी ओंकारेश्वर में नहीं होता रावण दहन, जानें यहां की शाही परंपरा।
मध्य प्रदेश की तीर्थनगरी ओंकारेश्वर सहित आसपास के 10 गांवों में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। लोग यहां रावण को अनन्य शिवभक्त मानते हैं। दशहरे पर यहां सवारी निकाली जाती है।

Omkareshwar News: विजयादशमी पर देशभर में रावण दहन के कार्यक्रम होते हैं, लेकिन एमपी की शिवनगरी ओंकारेश्वर में पुतला दहन नहीं होता। ओंकारेश्वर से 10 गांवों में भी रावण दहन न करने की परंपरा है। बताया गया, रावण भोलेनाथ का अनन्य भक्त था, इस कारण रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले नहीं जलाएं जाते।

ओंकारेश्वर में रावण दहन न करने के पीछे एक और वजह है। बुजुर्गों ने बताया कि पास स्थित शिवकोठी में एक बार लोगों ने एक युवक को रावण का पुतला बनाकर जला दिया था। जिसके बाद गांव में भयानक विवाद हुआ। गांववालों में आपसी वैमश्यता इतनी बढ़ी कि सालों बोलचाल बंद रहा। एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिला होना बंद हो गया। गांव के बुर्जुग लोगों ने काफी प्रयास कर समझौता कराया और गांव में रावण का दहन न करने का संकल्प लिया।

विवाद के कारण बंद कराया
ओंकारेश्वर मंदिर ट्रस्टी राव देवेंद्र सिंह ने बताया, ओंकारेश्वर में रावण दहन की कोशिशें कुछ वर्ष पूर्व की थी, लेकिन विवाद के कारण बंद करा दिया गया। नगरवासी इस परम्परा का निर्वाह आज भी करते हैं।

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ओंकारेश्वर मंदिर सवारी प्रभारी
आशीष दीक्षित ने बताया, भगवान की सवारी मंदिर में पूजा-पाठ और आरती के बाद शुरू होती है। राजपरिवार के साथ इसमें नगरवासी भी शामिल होते हैं। सभी लोग खेडापति हनुमान मंदिर जाते हैं और वहां पूजा-अर्चना कर आरती में शामिल होते हैं।

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भाईचारा और शांति का संदेश
सवारी और मंदिर में पूजा अर्चना के बाद नगरवासी राजमहल जाते हैं। वहां राव पुष्पेन्द्र सिंह गद्दी पर विराजमान होकर नगरवासियों से भाईचारा और शांति का संदेश देते हैं। पंडित पुजारियों से आशीर्वाद लेते हैं। इसके बाद पूरे नगर में विजयादशमी का पर्व से मनाया जाता है।

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