इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय : 48वें स्थापना दिवस समारोह में दिखीं छत्तीसगढ़ी कर्मा-मुरिया समुदाय की झलक

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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा 48 वां  स्थापना दिवस समारोह के दूसरे दिन छत्तीसगढ़ कि सांस्कृतिक धरोहर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ।

भोपाल। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा 48 वां स्थापना दिवस समारोह के दूसरे दिन छत्तीसगढ़ कि सांस्कृतिक धरोहर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस समारोह का शुभारंभ मुख्य अतिथि कपिल तिवारी ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा की भारत की जन जातीय लोक संस्कृति में सप्त मातृका का बोध होता है। जिसमें धरती, प्रकृति, स्त्री, नदी, गाय, भाषा, शक्ति शामिल है। मातृभाषा को सीखने के लिए किसी स्कूल की जरूरत नहीं होती और लोक भाषा का कोई अनुवाद नहीं कर सकता।

माई के जात्रा के दौरान दंड देने कि घटना का किया वर्णन
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बस्तर विश्वविद्यालय एव राष्ट्रीय मानव संग्रहालय समिति के सदस्य डॉ आनंद मूर्ति मिश्रा ने कहा कि छत्तीसगढ़ कि संस्कृति अतुलनीय है। उन्होंने ग्रीक,ईरान, इराक जैसे देशों में रामायण के प्रसंग नाट्यन्तर एवं बस्तर के केशकल में देवी देवता को भी भंगराम माई के जात्रा के दौरान दंड देने कि घटना का उदाहरण देकर संस्कृति कि महत्ता को समझाया।

करम वृक्ष की उपासना से जुड़ा करमा नृत्य की प्रस्तुति रही खास
वहीं शाम की बेला में रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आयोजन किया गया, जिसमें पंडित राम एवं टीम द्वारा सबसे पहले छत्तीसगढ़ी समुदाय का कर्मा नृत्य की प्रस्तुति दी गई, सरगुजा जिले की करमा, पर्व भक्तिभाव से मनाने की परंपरा है, इस दिन बहनें अपने भाइयों की सुख समृद्धि, दीर्घायु होने की कामना के साथ निजर्ला व्रत रख पूजा-अर्चना करती हैं। इसके लिए करम वृक्ष के डंगाल की स्थापना आंगन, घरों में की जाती है।

अभुजमरिया जनजाति के मुरिया नृत्य ने बांधा समा
वहीं बुटुलु राम एवं टीम द्वारा बस्तर जिले की मुरिया नृत्य बस्तर जिÞले की अभुजमरिया जनजाति द्वारा किया जाने वाला एक सुप्रसिद्ध नृत्य है। यह नृत्य फसल और वर्षा के देवता ककसार की पूजा के उपरान्त किया जाता है। ककसार नृत्य के साथ संगीत और घुंघरुओं की मधुर ध्वनि से एक रोमांचक वातावरण उत्पन्न होता है। इस नृत्य के माध्यम से युवक और युवतियों को अपना जीवनसाथी ढूंढने का अवसर भी प्राप्त होता है।

भाषा और संस्कृति का एक दूसरे के साथ है अटूट संबंध
वहीं कार्यक्रम की अगली कड़ी में संदर्भ पुस्तकालय में छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति विषय पर पुस्तक प्रदर्शनी का शुभारम्भ के साथ ही 19 वां वार्षिक इंगारामासं व्याख्यान में प्रोफेसर कमाल कान्त मिश्रा ने संबोधित करते हुए कहा कि भाषा और संस्कृति का एक दूसरे के साथ अटूट संबंध है, भाषा के पतन से उसकी संस्कृति और पहचान भी खत्म हो जाती है। उन्होने संग्राहालय में भाषा दीर्घा कि स्थापना हेतु एक कड़ी योजना बनाने पर बल दिया।

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