पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला: HRERA से वसूली का अधिकार छीना, सरकार को दी ये सलाह

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पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट।
Haryana Government: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार की  हरियाणा रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी के फैसले को रद्द कर दिया है। इसे लेकर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए सरकार को निर्देश दिए हैं। 

Haryana Government: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार की हरियाणा रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (HRERA) को अधिकार देने के फैसले को रद्द कर दिया है। HRERA के तहत सरकार ने अधिकारियों से कहा था कि वह कलेक्टर की तरह पावर दिखाते हुए बकाया वसूल कर सकते हैं। लेकिन अब सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट ने चुनौती देते हुए रद्द कर दिया गया है। इसे लेकर न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति एचएस ग्रेवाल की खंडपीठ ने कहा कि HRERA के अधिकारी केवल जांच और मुआवजे की राशि तय करेंगे। लेकिन वह खुद इसकी वसूली नहीं कर सकते।

अधिकारियों को वसूली का अधिकार देना कानून का उल्लंघन- हाईकोर्ट

हाईकोर्ट का कहना है कि 'रियल एस्टेट अधिनियम में अलग-अलग प्राधिकरणों की भूमिकाएं स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं। HRERA के अधिकारियों को वसूली का अधिकार देना इस कानूनी ढांचे का उल्लंघन है।' कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सरकार को नसीहत दी कि उसे नियमों में जरूरी बदलाव करके सही अधिकारियों की नियुक्ति करनी चाहिए। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार को नए सिरे से वसूली प्रक्रिया तैयार करनी होगी। राजस्व विभाग को विशेष अधिकारी नियुक्त करने की जरुरत है। इसके अलावा HRERA को भी अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव करना पड़ेगा।

पिछले साल सरकार ने जारी की अधिसूचना

हरियाणा सरकार की तरफ से पिछले साल 11 मई 2024 को अधिसूचना जारी की गई थी। अधिसूचना में कहा गया था कि HRERA के अधिकारी ब्याज, जुर्माना और मुआवजा जैसी राशियों को सीधे वसूल सकते हैं। इसके पीछे सरकार ने 5 फायदे होने के तर्क दिए थे। सरकार की इस अधिसूचना के खिलाफ वाटिका लिमिटेड ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि HRERA के अधिकारियों को ऐसी शक्तियां नहीं दी जा सकतीं।

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रियल एस्टेट अधिनियम में क्या कहा गया ?

रियल एस्टेट अधिनियम में कहा गया है कि बकाया राशि को भू-राजस्व के बकाया के रूप में ही वसूला करना चाहिए। ऐसे में HRERA अधिकारियों को राशि वसूलने का अधिकार देना नहीं चाहिए। इस अधिकार की आड़ में अधिकारी मनमानी कर सकते है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई की। अब हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 के तहत इस कदम की अनुमति नहीं थी। यह पहले से बनी कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करता है।

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