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हरियाणा के दिग्गज नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। पूर्व केंदीय मंत्री की पहचान केवल छोटू राम के नाती के रूप में ही नहीं, बल्कि नेतृत्व को सीधी चुनौती देने वाले नेता के रूप में भी रही है। पढ़िये उनकी एंट्री से कांग्रेस को फायदा होगा या नई चुनौती का सामना करना पड़ेगा।

Lok Sabha Election 2024: बीजेपी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन करने वाले चौधरी बीरेंद्र सिंह का हरियाणा की राजनीति में जाना पहचाना नाम है। उचाना से पहली बार 1977 में विधायक बने बीरेंद्र सिंह करीब 42 साल तक नाना चौ. छोटूराम की राजनीतिक विरासत के वारिस बने रहे। 2014 में कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन की, तो पार्टी ने बिना चुनाव लड़वाए केंद्र में कैबिनेट मंत्री के पद पर बैठा दिया। पत्नी को विधायक और आईएएस की नौकरी छोड़ राजनीति में आए बेटे को लोकसभा भेज दिया। कांग्रेस जो 42 साल के राजनीति कैरियर में नहीं दे पाई, भाजपा ने वह महज 10 साल से कम समय में दे दिया। लेकिन, पार्टी में चरम पर पहुंच चुकी गुटबाजी को ही लोकसभा के टिकट वितरण में देरी की मुख्य वजह मानी जा रही है।

..और अधूरा रह गया एक सपना
बीरेंद्र सिंह को भाजपा ने 10 साल में केंद्र में कैबिनेट मंत्री से लेकर भले ही बीरेंद्र सिंह को सबकुछ दे दिया हो, लेकिन मुख्यमंत्री बनने का सपना यहां भी अधूरा रह गया। यह दर्द 2019 में बेटे को टिकट मिलने पर मंत्री पद जाने के बाद कई बार छलका। 2019 के चुनाव में अपनी परंपरागत सीट पर विधायक पत्नी की हार के बाद जब 2024 के लोकसभा चुनाव में सांसद बेटे की टिकट पर खतरा मंडराता देख वही टीस लेकर कांग्रेस में लौट आए, जिसे लेकर 10 साल पहले कांग्रेस छोड़ी थी। हालांकि भाजपा में रहते हुए बीरेंद्र सिंह 2014 में पत्नी प्रेमलता को विधायक व 2019 में आईएएस बेटे बृजेंद्र सिंह को सांसद बनाकर सफल राजनीतिक लॉचिंग करने में सफल रहे, जो काम वह 42 साल कांग्रेस में रहते हुए कभी नहीं कर पाए थे।

मंत्रीपद जाते ही दिखाने लगे थे तेवर
मंत्रीपद जाने के बाद बीरेंद्र सिंह अक्सर अपने बयानों से सरकार को असहज करते रहे तथा 2024 में बेटे का टिकट कटने की आहट को भांपते हुए बीरेंद्र सिंह ने पहले अपने बेटे को कांग्रेस में भेजा तथा 9 अप्रैल को पत्नी व समर्थकों के साथ करीब 10 साल बाद उन्होंने भाजपा का कमल छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया। अक्सर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले बीरेंद्र सिंह सीधे पार्टी नेतृत्व को चुनौती देते रहे हैं। हिसार से भाजपा ने देवीलाल के बेटे रणजीत चौटाला तो जजपा ने नैना चौटाला को उम्मीदवार बनाया है।

बेटे के लिए टिकट पर ठोक चुके हैं दावा 
कांग्रेस नॉन जाट चेहरे पूर्व डिप्टी सीएम चंद्रमोहन को उतारना चाहती है, तो बीरेंद्र सिंह कांग्रेस में आने से पहले ही अपने बेटे बृजेंद्र सिंह की उम्मीदवारी पर दावा ठोक चुके हैं। इससे अब पहले ही एसआरके व हुड्डा खेमे में बंटी कांग्रेस में गुटबाजी बढ़ने सिर फुटव्वल पहले से अधिक बढ़ सकती है। बेटे को टिकट नहीं मिली, तो भले ही बीरेंद्र सिंह कांग्रेस न छोड़े, लेकिन अपने बयानों से पार्टी को अहसज करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देंगे।

10 साल बाद फिर पढ़ी वही स्क्रिप्ट 
जींद में रैली कर जब बीरेंद्र सिंह ने भाजपा ज्वाइंन की तो कांग्रेस नेतृत्व पर निशाना साधकर मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की खीज निकाली थी। बिना लोकसभा चुनाव लड़े मोदी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने बीरेंद्र सिंह ने कहा था कि कांग्रेस जो सम्मान उसे 42 साल में नहीं दे पाई, वह भाजपा ने चंद महीनों में दे दिया।

अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा ज्वाइंन करते समय बीरेंद्र सिंह ने भाजपा व मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े तो 10 साल बाद कांग्रेस में वापसी के समय सोनिया व राजीव गांधी के साथ राहुल की प्रशंसा करने में हिचक नहीं दिखाई। ऐसे में यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि बीरेंद्र सिंह ने 10 साल पहले कांग्रेस छोड़ते समय भाजपा व मोदी के नेतृत्व में जो स्क्रिप्ट पढ़ी थी, वहीं स्क्रिप्ट मंगलवार को कांग्रेस ज्वाइन करते समय राजीव गांधी, सोनिया गांधी व राहुल गांधी के लिए भी पढ़ी।

बीरेंद्र सिंह के सामने कई चुनौतियां 
पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह का भले ही आधी सदी से अधिक का राजनीतिक अनुभव हो, परंतु 2024 में उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां रहेंगी। इनमें एक चुनौती ये है कि प्रदेश कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की विटो को दरकिनारे कर अपने सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह के लिए हिसार से लोकसभा व लोकसभा के बाद इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पत्नी प्रेमलता के लिए उचाना से टिकट सुनिश्चित करा लें। लोकसभा चुनाव में हिसार सीट से भूपेंद्र हुड्डा की पहली पसंद पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन बिश्नोई हैं। इसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश उर्फ जेपी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा बृजेंद्र को हिसार से लोकसभा की बजाय उचाना से विधानसभा चुनाव लड़वाना चाहते हैं।

टिकट हासिल कर भी लिया तो जीत की राह नहीं होगी आसान
यदि किसी प्रकार बीरेंद्र सिंह सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह को लोकसभा का टिकट दिलवाने में सफल रहे तो विधानसभा चुनाव में हुड्डा प्रेमलता की बजाय अपने किसी खास समर्थक को चुनाव मैदान में उतारने का प्रयास करेंगे, जो लंबे समय से क्षेत्र में सक्रिय बने हुए हैं। हुड्डा को बाइपास कर बीरेंद्र सिंह के लिए लोकसभा में अपने बेटे व विधानसभा में पत्नी का चुनाव जीता पाना बदली परिस्थितियों में अब इतना आसान नहीं होगा। स्वयं बीरेंद्र सिंह की विश्वसनीयता अब पहले जैसी नहीं रही और बृजेंद्र सिंह सांसद और प्रेमलता विधायक के रूप में जनता के बीच अपना प्रभाव छोड़ने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाए।

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