Pregnancy Heat-Risk: भारत में बढ़े प्रेग्नेंसी हीट-रिस्क डेज... जानिये मतलब और क्या है इसके पीछे का कारण?

भारत में बढ़ रही प्रेग्नेंसी हीट-रिस्क डे की संख्या
लू लगने की वजह से किसी व्यक्ति की जान जा सकती है, लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि बढ़ता तापमान गर्भ में पल रहे नवजात की मौत का कारण बन सकता है। अमेरिका की क्लाइमेट सेंट्रल (Climate Central) ने 247 देशों के 940 शहरों में सर्वे करके यह दावा किया है। अमेरिकी वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की टीम ने 2020 से 2024 के दैनिक तापमान का विश्लेषण कर जांचने का प्रयास किया कि गर्मी का प्रेग्नेंसी पर क्या असर पड़ता है? शोधकर्ताओं ने जब डेटा निकाला तो रिजल्ट देखकर हैरान रह गए।
भारत में औसतन छह दिन जोखिम वाले
क्लाइमेट सेंट्रल की शोध रिपोर्ट सोमवार को प्रकाशित हुई है, जिसमें बताया गया है कि 247 देशों और क्षेत्रों में से 90 फीसद देश और क्षेत्रों में गर्मी की वजह से गर्भावस्था के जोखिम वाले दिनों में दोगुना इजाफा हुआ है। भारत में भी पिछले पांच सालों में हर साल गर्मी की वजह से गर्भावस्था के लिए जोखिम वाले अतिरिक्त दिनों में औसतन 6 दिन की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिसके बाद अतिरिक्त जोखिम वाले दिनों की संख्या 19 दर्ज की गई है। वैज्ञानिकों ने आगे भारतीय शहरों की सूची भी बनाई है, जहां भीषण गर्मी गर्भवती महिला और नवजात, दोनों के लिए दुश्मन साबित हो रही है।
प्रेग्नेंसी हीट-रिस्क डे वाले खतरनाक शहरों की सूची
क्लाइमेट सेंट्रल ने जिन भारतीय शहरों को प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए खतरनाक बताया है, उनमें पणजी सबसे ऊपर है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि पणजी में गर्मी से गर्भावस्था के जोखिम वाले दिनों की औसतन संख्या 39 है, जबकि दूसरे नंबर पर तिरुवंतपुरम में 36 दिन, सिक्किम में 32 दिन, मुंबई में 26 दिन, गोवा में 24 दिन और केरल में 18 दिन गर्भावस्था के लिए जोखिम भरे हैं। अन्य शहरों की बात करें तो चेन्नई, बेंगलुरू और पुण में ऐसे अतिरिक्त औसतन दिनों की संख्या 7 है।
जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण जरूरी
क्लाइमेट सेंट्रल की उपाध्यक्ष क्रिस्टीना डाहल का कहना है कि इस शोध का उद्देश्य गर्मी से गर्भावस्था के दौरान शिशु और मातृ संबंधित देखभाल पर असर जांचना था। शोध में पाया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्मी का अत्यधिक बढ़ना मातृ और शिशु स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहा है। विशेषकर, जिन क्षेत्रों में बेहतर चिकित्सकीय सुविधाएं नहीं हैं, वहां मृत्यु दर बढ़ने की आशंका है। उन्होंने कहा कि मातृ और शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भी ठोस कदम उठाने होंगे।
क्या है गर्मी के जोखिम वाले दिन
ऐसे दिन जहां गर्मी की वजह से बच्चों का समय से पहले जन्म हो जाता है, तो उसे गर्मी के जोखिम वाले दिन कहा जाता है। क्लाइमेट सेंट्रल ने बताया कि उन्होंने उन दिनों की संख्या को काउंट किया, जिनमें तापमान किसी स्थान का तापमान 95 फीसद से अधिक गर्म था। शोध एक से पता चलता है कि यह सीमा दर्शाती है कि बच्चे की प्रीमच्योर डिलीवरी की आशंका बढ़ा देती है। इन अत्याधिक गर्म दिनों को गर्भावस्था में गर्मी के जोखिम वाले दिनों के रूप में परिभाषित करते हैं।
गर्मी का नवजात और मां पर क्या असर
बीएमसी प्रेग्नेंसी एंड चाइल्डबर्थ ने भी एक शोध किया था, जिसमें उन्होंने बताया था कि गर्मी के जोखिम वाले दिन न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक विकास पर भी असर डालता है। प्रेग्नेंसी के दौरान अजन्मे बच्चे की गर्मी के संपर्क में आने पर ये असर पड़ सकते हैं।
- प्री एक्लेम्पसिया जैसी स्थिति में मां के स्वास्थ्य में गिरावट
- जन्म संबंधित परेशानियों को जटिल बना सकता है
- अजन्मे बच्चे के डीएनए में परिवर्तन कर सकता है
- शिशु के टेलोमीयर्स छोटे हो सकते हैं, जो आजीवन जुड़े रहते हैं
- शिशु में मानसिक विकार और अन्य परेशानियां आ सकती हैं
हर शोध कुछ ऐसी ही कहानी बयां कर रहा
इससे पूर्व भी जलवायु परिवर्तन का प्रेग्नेंसी पर पड़ने वाले असर का पता लगाने के लिए कई अध्ययन हो चुके हैं। हर स्टडी ने खुलासा किया है कि गर्मी के प्रेग्नेंसी पर पड़ने वाला असर भयावह है। कई मामलों में गर्मी के संपर्क में आने से गर्भावस्था के 20वें सप्ताह बाद भ्रूण की मृत्यु हो जाती है, वहीं समय से पूर्व जन्म होने वाले बच्चे को भी शारीरिक से लेकर मानसिक तक कई समस्याओं से जूझना पड़ता है। अब क्लाइमेट सेंट्रल की इस रिपोर्ट ने फिर से झकझोर दिया है कि ग्लोबल वार्मिंग पर नकेल कसने के लिए पूरी दुनिया को कठोर कदम उठाने होंगे वरना आने वाली पीढ़ी आपको माफ नहीं करेगी।
