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छत्तीसगढ़ हीट आईलैंड में तब्दील हो रहा है। दस साल पहले छत्तीसगढ़ का औसत तापमान मई के महीने में 40 डिग्री से कम होता था, जो अब बढ़कर 43-44 डिग्री तक पहुंच चुका है। 

रायपुर। औसत दर्जे के कोयले और आउटडेटेड फर्नेस ऑयल के उपयोग से धुएं की शक्ल में वायुमंडल तक पहुंचने वाला कार्बन वातावरण की नमी को सोख रहा है, इसकी वजह से सूर्य की किरणें सीधी धरती पर पड़ रही हैं। इसी वजह से छत्तीसगढ़ हीट आईलैंड में तब्दील हो रहा है। दस साल पहले छत्तीसगढ़ का औसत तापमान मई के महीने में 40 डिग्री से कम होता था, जो अब बढ़कर 43-44 डिग्री तक पहुंच चुका है। पर्यावरणविद एवं यूएस से फुल ब्राइट फैलोशिप प्राप्त करने वाले रविवि के प्रो. शम्स परवेज ने कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ में बढ़ती गर्मी पर स्टडी की थी और इसके लिए वायुमंडल में बढ़ती कार्बन की मात्रा को जिम्मेदार पाया था।

उन्होंने बताया कि, वातावरण से लगातार नमी की मात्रा कम हो रही है, जिसकी वजह से तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। इसकी वजह फैक्ट्रयों में लो-क्वालिटी के कोयले और कालातीत फर्नेस का उपयोग है। इनके अपूर्ण दहन से निकलने वाले कार्बन वायुमंडल में लगातार बढ़कर मौजूद आर्द्रता की मात्रा को कम कर रहे हैं, इससे सूर्य से निकलने वाली किरणें सीधे धरती तक पहुंच रही हैं, इससे जल का वाष्पन अधिक मात्रा में हो रहा है और तापमान के साथ गर्मी भी बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि दुर्ग-भिलाई के रोजाना 61 प्रतिशत और रायपुर जिले से 58 प्रतिशत कार्बन का उत्सर्जन हो रहा है, जो छत्तीसगढ़ को हीट आईलैंड में तब्दील कर रहा है। उनके मुताबिक राज्य निर्माण के पहले ऐसी स्थिति नहीं थी और गर्मी ज्यादा असर नहीं दिखाती थी, मगर औद्यौगिक विकास के बाद धुएं की शक्ल में कार्बन का उत्सर्जन बढ़ गया, जिसके विभिन्न दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।

लगातार काटे जा रहे पेड़ कंक्रीटीकरण भी जिम्मेदार

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विभागाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र लेखपाल के मुताबिक पिछले दस-पंद्रह साल से लगातार गर्मी बढ़ रही है, इसका कारण पर्यावरण की अनदेखी है। शहरीकरण की वजह से कंक्रीटीकरण का बढ़ना और जंगलों का कम होना है। जिन स्थानों पर पेड़ होते हैं, वहां का तापमान कम होता है, मगर अब हरियाली कम हो रही है। वृक्षारोपण के लिए लगातार अभियान चलाया जाता है, मगर उनकी देखरेख पर ध्यान नहीं दिया जाता और सूख जाते हैं, जिसका परिणाम बढ़ती गर्मी के रूप में सामने आता है। उनके मुताबिक, बढ़ती गर्मी को नियंत्रित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की आवश्यकता है।

स्वास्थ्य पर भी असर

प्रो. शम्स परवेज के मुताबिक बढ़ती गर्मी का असर मानव स्वास्थ्य पर हो रहा है। गर्मी के दिनों में आने वाली पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से कुछ समय से त्वचा से संबंधित बीमारियों की शिकायतें बढ़ रही हैं। नमी की मात्रा कम होने की वजह से लोग तेज धूप पबर में डिहाईड्रेशन के शिकार हो रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ के अनुसार, औद्यौगिक क्षेत्रों से निकलने वाले धुएं और कार्बन की मात्रा में कमी लाने के लिए शासन स्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

ऐसा हो रहा असर

1. पहले शहर में सौ से डेढ़ सौ फीट में पानी मिल जाता था, मगर बढ़ती गर्मी और वाष्पीकरण की वजह से भूमिगत जलस्त्रोत ढाई से तीन सौ फीट नीचे तक जा चुका है।

2. बढ़ती गर्मी और कार्बन की मौजूदगी का असर फसलों पर हो रहा है। उनकी गुणवत्ता कमजोर हो रही है और उत्पादन पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है।

3. कार्बन उत्सर्जन की वजह से गर्मी के दिनों में वातावरण में नमी की मात्रा सामान्य परिस्थिति में पहले 30 प्रतिशत रहती थी, जो अब घटकर आधी हो चुकी है।

 

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