दावे, वादे और हकीकत : नदी किनारे गड्ढा खोदकर इंतजार.. और फिर उसी से प्यास बुझाना आज भी मजबूरी

आकाश पवार- मरवाही। छत्तीसगढ़ साल 2000 में मध्यप्रदेश से अलग होकर एक नया राज्य बना। तब से लेकर अब तक प्रदेश में कई विकास कार्य हुए, कई बदलाव आए। लेकिन आज भी कई इलाकों में विकास तो दूर मूलभूत सुविधाएं भी नहीं पहुंच पाई हैं। ऐसी ही एक जगह है मरवाही जिले का धनुहारी टोला। साल 2023 में भूपेश सरकार के दौरान नए जिले गौरेला-पेंड्रा-मरवाही का गठन किया गया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी मरवाही से ही थे। उनके समय और उनके बाद भी कई सरकारें आईं और गईं लेकिन कोई भी इस क्षेत्र तक विकास लेकर नहीं पहुंच पाई है।
जिला मुख्यालय से चंद किमी. दूर भी नहीं पहुंचा विकास
छत्तीसगढ़ के जंगल-पहाड़ों की तलहटी में बसे गांवों की स्थिति बद से बद्तर तो है ही लेकिन जिला मुख्यालय और प्रखंड मुख्यालय से सटे गांवों की स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं है। मरवाही के एक गांव कटरा का धनुहारी टोला एक ऐसा क्षेत्र है जहां पर अब तक सरकारी योजनाएं और विकास नहीं पहुंच पाई हैं। यहां पर पीने के पानी की इतनी किल्लत है कि, ग्रामीण पेयजल की व्यवस्था के लिए कई किलोमीटर दूर जंगल में नदी से पानी लाने का काम करते हैं। हर मौसम में पेयजल के संकट से जूझते हैं।
<blockquote class="twitter-tweet"><p lang="hi" dir="ltr">मरवाही जिले के धनुहारी टोला के ग्रामीण नदी किनारे पीने का पानी लेने जाते हुए..<a href="https://twitter.com/GPM_DIST_CG?ref_src=twsrc^tfw">@GPM_DIST_CG</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/Chhattisgarh?src=hash&ref_src=twsrc^tfw">#Chhattisgarh</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/Village?src=hash&ref_src=twsrc^tfw">#Village</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/water?src=hash&ref_src=twsrc^tfw">#water</a> <a href="https://t.co/XQTvLfrDcl">https://t.co/XQTvLfrDcl</a> <a href="https://t.co/T3fRAbBns1">pic.twitter.com/T3fRAbBns1</a></p>— Haribhoomi (@Haribhoomi95271) <a href="https://twitter.com/Haribhoomi95271/status/1768585837158051957?ref_src=twsrc^tfw">March 15, 2024</a></blockquote> <script async src="https://platform.twitter.com/widgets.js" charset="utf-8"></script>
नदी किनारे गड्ढा खोदकर पानी भरने का करते हैं इंतजार
दरअसल, धनुहारी टोला के ग्रामीण पेयजल के लिए एक किलोमीटर की दूरी तय कर ऊंची-नीची पगडंडियों को पार कर एक नदी के पास पहुंचते हैं। वहां पर वे रेत के हिस्से में एक छोटा सा गढ्ढा बनाते हैं जिसे ठोड़ी कहते हैं। वहां से बह रहे पानी को बर्तन में लेकर घर पहुंचते हैं। अधिकतर महिलाएं ही पेयजल की व्यवस्था करती हैं। इसमें मेहनत तो बहुत है साथ ही जंगली इलाका होने के कारण खूंखार जानवरों का भी खतरा है।
सेहत पर भी असर डालता है गंदा पानी
बावजूद इसके ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डालकर नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। गंदा पानी पीने से उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। इस समस्या के निराकरण के लिए अब तक प्रशासन और पंचायत स्तर पर भी कोई पहल नहीं की गई है और यहां के लोगों की समस्याएं जस की तस बनीं हुई है।
