स्वामी अवधेशानंद गिरि-जीवन दर्शन: 'सत्संग, स्वाध्याय और आत्म-चिन्तन से प्रशस्त होगी सफलता की राह'

Swami Avadheshanand Giri Jeevan Darshan: जीवन का हर क्षण हमारे लिए नए अवसर लेकर आता है। इसका उपयोग भौतिक उपलब्धियों की बजाय आध्यात्मिक चिंतन और आत्म-साक्षात्कार में लगाएं। जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से 'जीवन दर्शन' में समझिए जीवन की सफलता में समय प्रबंधन और मानवीय मूल्यों की भूमिका।
प्रत्येक नया दिन हमारे लिए एक नव आरम्भ, एक नूतन अवसर लेकर आता है। सृजन, नवोन्मेष और नूतन विचार की प्रक्रिया मनुष्य के स्वाभाव में सहज निहित है। आज की अद्भुत वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति इसी सतत् गवेषणात्मक प्रवृत्ति का प्रतिफल है। परन्तु यह ध्यान रहे कि हमारा सृजन केवल यांत्रिक या भौतिक न होकर पारमार्थिक और लोक-मंगलकारी भी हो।
मनुष्य जीवन की वास्तविक सार्थकता तभी है जब वह शुभ कर्म में संलग्न हो। हमारी वाणी, विचार और आचरण सत्य और करुणा के मार्ग पर आधारित हों। यह जागरूकता सदैव बनी रहनी चाहिए कि यह नश्वर संसार क्षणभंगुर है; केवल परमात्मा ही नित्य और शाश्वत सत्य है। हमारा जीवन उसी दिव्य सत्ता की अनुभूति और साक्षात्कार हेतु मिला है।
जीवन के हर क्षण का विवेकपूर्वक उपयोग आवश्यक है। समय जैसे मूल्यवान संसाधन को सत्संग, स्वाध्याय और आत्म-चिन्तन में निवेश करना चाहिए, जिससे लक्ष्य सिद्धि सुगम हो सके। यह शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अविनाशी, अजर-अमर और अखण्ड शुद्ध चैतन्य है। काल के किसी भी आयाम में उसका नाश नहीं होता; इस सत्य का बोध ही हमारे आध्यात्मिक विकास का आधार बनता है।
अतः आवश्यक है कि हम जीवन की दिशा को केवल भौतिक उपलब्धियों तक सीमित न रखें, अपितु आत्म-साक्षात्कार की तत्परता जगाएँ। यही जीवन की चरम सफलता है।
