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हर सनातन धर्म में देवी देवता की पूजा के समय दीपक जलाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, लेकिन दीपक जलाने के सही नियम क्या है ये जानना बहुत जरूरी है।

(कीर्ति राजपूत)

Deepak Jalane ke Niyam : हिन्दू धर्म में प्रतिदिन नियमित रूप से पूजा पाठ किया जाता है। पूजा के समय धूप, द्रव्य और दीपक जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है। भगवान के सामने दीया जलाकर लोग श्रद्धा से नत मस्तक होते हैं। हिंदू धर्म में कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा पाठ बिना दीया जलाए पूर्ण नहीं होती। बहुत से घरों में नियमित रूप से पूजा करते समय नया दीपक जलाया जाता है, वहीं तो कुछ लोग पुराने दीपक को ही धोकर फिर से जलाते हैं। दीया जलाने को लेकर ऐसी बहुत सी बातें हैं, जिन्हें ध्यान में रखना ज़रूरी है, तो चलिए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से दीया जलाने को लेकर क्या नियम हैं।

दीपक जलाने के नियम

मिट्टी के दीपक
बहुत से लोग अपने घरों में मिट्टी से बने दीपक जलाते हैं, लेकिन इन दीपक को फिर से उपयोग में नहीं लाना चाहिए। मिट्टी के दीपक एक बार जलाने के बाद काले पड़ जाते हैं। माना जाता है कि इन्हें दोबारा जलाना पवित्र नहीं होता।

तांबे या पीतल की दीए
आज के दौर में ज़्यादातर लोग अपने घरों में पूजा के दौरान तांबे,चांदी या पीतल की दीये जलाए जाते हैं। वे इन्हें धोकर दोबारा पूजा में उपयोग करते हैं। हिन्दू धर्मशास्त्रों में धातुओं को पवित्र माना जाता है, इसलिए तांबे या पीतल के दीयों को दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है।

दीयों की साफ़ सफ़ाई
यदि आप भी पूजा में तांबा, पीतल या चांदी जैसी धातु के बने दीयों का इस्तेमाल करते हैं, तो इनकी नियमित साफ़ सफ़ाई करना बहुत ज़रूरी होता है। इन दीयों को अच्छी तरह से साफ़ कर गंगाजल से पवित्र करने के बाद पूजा में दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है।

कभी ना जलाएं खंडित दिया
पूजा पाठ के दौरान कभी भी खंडित हो चुके दीए का उपयोग नहीं करना चाहिए। टूटे या खंडित दीपक का इस्तेमाल करने से घर में नकारात्मकता आती है। दीया चाहे मिट्टी का हो या धातु का खंडित दीया पूजा में उपयोग के लायक नहीं होता है।

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